जानिए कैसे बनें बाल ठाकरे एक काटूर्निस्ट से किंग मेकर

एक ऐसा शख्स जिसने सियासी समर में कभी किस्मत नहीं आजमाई. कभी सत्ता के शीर्ष कुर्सी पर नहीं बैठा, फिर भी सत्ता के साथ बना रहा. वो भी एक दो साल नहीं बल्कि करीब चार दशकों तक जिसकी मर्जी के बिना न सरकार बनती थी और न हीं चलती थी सूबे की सत्ता. किंग कोई भी हो लेकिन इस शख्स को सूबे का किंगमेकर कहा जाता था और वो किंगमेकर थे शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे. आज ठाकरे जी की जयंती हैं.

ज़ी हिंदुस्तान वेब टीम Thu, 23 Jan 2020-11:36 am,
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वो गुलामी का दौर था जब बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के एक जाने माने परिवार में हुआ था. बाल ठाकरे के पिता केशव ठाकरे सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक और रंगमंच के कलाकार थे. लेकिन पारिवारिक दिक्कतों की वजह के चलते बाल ठाकरे छठी क्लास के आगे पढ़ाई नहीं कर पाये. 

 

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बाल ठाकरे के पिता उन्हें संगीतकार बनाना चाहते थे. लेकिन बाल ठाकरे ने पिता के रास्ते पर चलते हुए पेंटिंग करने का इरादा बना लिया. सफर चलता रहा और बाल ठाकरे कार्टूनिस्ट बन गए. 22 साल की उम्र में ही बाल ठाकरे की शादी मीना ठाकरे से हो गई. सही मायने में बाल ठाकरे की कार्टूनिस्ट से नेता बनने के सफर की शुरुआत शादी के बाद ही हुई.

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1950 में बाल ठाकरे ने बतौर कार्टूनिस्ट फ्री प्रेस में नौकरी की. महज 25-26 साल की उम्र में ही बाल ठाकरे मराठी और गैर मराठी के फर्क को समझने लगे. मुंबई मराठी लोगों की है और इस पर मराठियों का ही राज होना चाहिए. इस विचारधारा के साथ बाल ठाकरे ने कार्टून बनाने शुरू कर दिए. अब तक उन्हें व्यंग चित्र की ताकत का अहसास हो चुका था.

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50 के इस दशक में महाराष्ट्र नाम का कोई राज्य नहीं था. उस समय बॉम्बे प्रेजीडेंसी हुआ करती थी. आंदोलन के बाद, 1 मई 1960 को बॉम्बे प्रेजीडेंसी से टूटकर दो राज्य बनें. महाराष्ट्र और गुजरात इसी समय बाल ठाकरे ने अखबार की नौकरी छोड़ कार्टून की एक पत्रिका शुरू कर दी, जिसका नाम मार्मिक था. उस वक्त महाराष्ट्र में गैर मराठियों का वर्चस्व था. ज्यादातर सरकारी नौकरियों में ऊंचे ओहदे दक्षिण भारतीयों के पास थे. उनके इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए बाल ठाकरे ने नारा दिया ‘लुंगी हटाओ पूंगी बजाओ’. मराठी मानुष हमलावर हो गया. 

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सरकारी दफतरों, गैर मराठी लोगों पर हमले शुरू कर दिए. बाल ठाकरे ने 19 जून 1966 को अपनी पार्टी बना ली जिसका नाम रखा शिवसेना. पार्टी की पहली रैली के लिए दादर के शिवाजी पार्क में दशहरे का दिन चुना गया, इसी रैली से बाल ठाकरे ने किंगमेकर की भूमिका शुरू कर दी. शिवसेना का पहला सियासी इम्तिहान ठाणे म्युनिसिपल चुनाव में हुआ.

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शिवसेना ने 40 में से 15 सीटों पर कब्जा कर लिया. गिरगांव और दादर की जनता ने बाल ठाकरे में भरोसा जताया. इस चुनाव के बादबाल ठाकरे मराठियों के घोषित नेता बन चुके थे. इसी दौरान बाल ठाकरे समझ गये कि मराठी राजनीति करने से वे राष्ट्रीय नेता नहीं हो सकते. यही वजह है कि साल 1970 में बाल ठाकरे ने खुद को एक हिंदू नेता के तौर पहचान बनाने की कोशिश शुरू कर दी.

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साल 1975 वो साल था जब देश में इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी. विपक्षी नेताओं को जेल भेजा जाने लगा. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने ठाकरे के सामने दो विकल्प रखे या तो दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह गिरफ्तार हो जाएं या फिर मुंबई स्टूडियों मे जाकर इमरजेंसी के समर्थन का ऐलान कर दें. बाला साहेब ने जेल जाना मुनासिब नहीं समझा. वो राजनीति और अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जीना चाहते थे. इसके बाद बाल ठाकरे के परिवार ने भी राजनीति में एंट्री लेनी शुरू कर दी. बाल ठाकरे के सबसे बड़े बेटे का नाम बिंदू माधव ठाकरे, दूसरे बेटे का नाम जयदेव ठाकरे और सबसे छोटे बेटे का नाम उद्धव ठाकरे. वहीं बाल ठाकरे के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे का एक बेटा राज ठाकरे भी था. जिसे सालों तक बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता रहा.

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बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जे जे स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनीति में रूचि लेना शुरू कर दिया. राज ठाकरे भी बाला साहेब की तरह शुरू में कार्टून बनाने लगे. साल 1990 में पहली बार राज की सियासत में एंट्री हुई. राज ठाकरे को शुरू में विद्धार्थी सेना का अध्यक्ष बनाया गया. राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे के हर अंदाज को बारीकी से देखकर उसकी कॉपी करने लगे थे जिसकी वजह से शिवसेना में जूनियर बाल ठाकरे के रूप में उनका कद तेजी से बढ़ने लगा.

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1989 में पहली बार शिवसेना का एक उम्मीदवार सांसद पहुंचा. 1995 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना बीजेपी गठबंधन की जीत हुई. महाराष्ट्र में बाला साहब इतना बड़ा चेहरा होने के बाद मुख्यमंत्री नहीं बने लेकिन सत्ता की चाबी उन्हीं के पास रही.

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बाला साहेब ने खुद को और परिवार को हमेशा सत्ता और कुर्सी से दूर रखा. एक वक्त था जब महाराष्ट्र की सियासत का रास्ता मातोश्री से ही होकर गुजरता था. लेकिन वो वक्त और था. अब हालात  बदल चुके हैं. जनता अब उसे ही सुनना और देखना चाहती है जो सक्रिय रूप से उसके लिए काम करता है. 17 नवंबर, 2012 के दिन बाल ठाकरे देहांत हो गया था.

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