क्या डीके शिवकुमार के गढ़ कनकपुरा में सेंध लगा पाएगी बीजेपी? समझिए समीकरण
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बस 2 दिन ही बचे हैं. कर्नाटक में 10 मई को मतदान और 13 मई को इसका रिजल्ट आएगा. सभी पार्टीया अपनी-अपनी सरकार बनने का दावा कर रही है. कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार के गड़ पर इस बार भाजपा सफलता मिलेगी या नहीं यह देखने वाली बात होगी.
वोक्कालिगा समुदाय और शिवकुमार के गढ़ में भाजपा कांग्रेस को चुनौती दे रही है. आर अशोक कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार के सामने कनकपुरा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. कांग्रेस नेता शिवकुमार सात बार विधायक निर्वाचित हुए हैं, जिनमें से 2008 से अभी तक तीन बार वह कनकपुरा से चुने गए हैं. शिवकुमार इससे पहले 1989 से लगातार चार बार साठनुर से निर्वाचित हुए और परिसीमन के बाद विधानसभा सीट समाप्त होने के कारण वह 2008 से कनकपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं.
कनकपुरा के राजनीतिक परिदृष्य में शिवकुमार के प्रवेश से पहले यह सीट जनता पार्टी/जनता दल का गढ़ हुआ करता था और 1983 से 2004 तक सिंधिया लगातार छह बार चुनाव जीते थे. जनता परिवार के वरिष्ठ नेता रामकृष्ण हेगड़े ने 1983 में मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से उपचुनाव लड़ा था.
राजनीतिक हलके में ‘डीके’ के नाम से लोकप्रिय शिवकुमार कर्नाटक में कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं. शिवकुमार की चुनावी लोकप्रियता में स्थिर गति से हो रही वृद्धि के मद्देनजर उनके समर्थकों का मानना है और आशा है कि कांग्रेस नेता एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज करेंगे और इस बार मुख्यमंत्री बनेंगे. भाजपा वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य में बदलाव का प्रयास कर रही है और विधानसभा क्षेत्र से शिवकुमार की धाक खत्म करना चाहती है.
आलोचक इस सीट को व्यंग्यात्मक रूप से ‘रिपब्लिक ऑफ कनकपुरा’ कहते हैं और कांग्रेस नेता पर आरोप लगता रहता है कि उन्होंने क्षेत्र में इस कदर पकड़ बना ली है कि विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं बची है. भाजपा नेता अशोक ने कहा कि उनकी उम्मीदवारी के बाद क्षेत्र में दो दशक में पहली बार सही मायने में चुनाव हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में शिवकुमार के खिलाफ और भाजपा के पक्ष में लहर है.
कनकपुरा के मतदाताओं का एक हिस्सा ‘माटी के बेटे’ शिवकुमार की जीत को लेकर आश्वस्त है, और वे चाहते हैं कि उनका नेता मुख्यमंत्री बने. हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि भाजपा ने अशोक को मैदान में उतारकर जो चौंकाने वाला फैसला लिया है, वह चिंता पैदा कर रहा है. हालांकि बीजेपी ने कनकपुरा के साथ अशोक को पद्मनाभनगर सीट से भी उडम्मीदवार बनाने की जरूरत पर सवाल उठाया. शिवकुमार को 1985 में साठनूर से देवे गौड़ा के खिलाफ हार मिली थी.