अन्नदाताओं को बरगलाने की सियासी `ममता` नहीं चलेगी
पश्चिम बंगाल की ममता दीदी और और उनकी धुर विरोधी वामपंथी पार्टियों को किसानों से हमदर्दी है या फिर वो मोदी विरोध में किसानों को अपनी सियासत का चारा बना रही हैं? पीएम मोदी ने अटल संवाद में जिस अंदाज में किसानों को ये समझाया, उसने टीएमसी और उसकी धुर विरोधी लेफ्ट की एक साथ सुलगाकर रख दी..
नई दिल्ली: पीएम मोदी ने दो टूक पूछ लिया कि जो पार्टियां बंगाल से दिल्ली तक किसान आंदोलन के समर्थन का हल्ला खूब मचा रही हैं, वो ये सवाल पूछने की जहमत भी क्यों नहीं उठा रही हैं कि बंगाल के 73 लाख किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना का फायदा लेने से जबरिया क्यों रोका जा रहा हैं?
बंगाल के 23 लाख किसानों के सवालों पर चुप्पी?
सवाल तो बनता है ना कि क्यों ममता दीदी (Mamata Didi) ने बंगाल के उन 23 लाख किसानों के आवेदन को जानबूझकर अटका रखा है, जो पीएम किसान सम्मान निधि के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली सालाना 6 हजार रुपये की आर्थिक मदद चाहते हैं. ये वो किसान हैं, जिन्होंने कृषि मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर खुद को पीएम किसान सम्मान निधि योजना के लिये रजिस्टर्ड किया था, लेकिन लगातार मांगे जाने पर भी ममता बनर्जी सरकार उनका ब्योरा केंद्र को नहीं भेज रही हैं.
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2018 में शुरू किये गए पीएम किसान सम्मान निधि योजना का फायदा देश के साढ़े ग्यारह करोड़ किसानों को मिल रहा है. देश के 29 राज्यों में सिर्फ पश्चिम बंगाल (West Bengal) ने केंद्र सरकार की इस योजना पर रोक लगा रखी है. सवाल है क्यों? सवाल इसलिये भी है, क्योंकि केंद्र की इस योजना का फायदा लेने वाले हर अन्नदाता के बैंक खाते में मोदी सरकार दो सालों में 14 हजार रुपये डाल चुकी है. और बंगाल का किसान मन मसोसकर सब देख रहा है. पीएम मोदी पिछले दो सालों में कई बार ममता सरकार से पीएम किसान सम्मान निधि योजना में शामिल होने का अनुरोध कर चुके हैं.
इसी साल सितंबर में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने तो इसके लिये बाकायदा ममता बनर्जी को चिट्ठी भी लिखी. लेकिन ममता अपनी जिद पर अड़ी हैं. वजह ये है कि ममता दीदी पीएम किसान सम्मान निधि का पैसा किसानों के खातों के बजाय सीधे बंगाल सरकार के खाते में चाहती हैं.
केजरीवाल तो समझ गए थे, दीदी कब समझेंगी?
पीएम किसान सम्मान निधि योजना पर सियासत करने की कोशिश दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी की थी, लेकिन जैसे ही उन्हें समझ में आया कि दिल्ली चुनाव करीब है. ऐसे में किसानों का फायदा रोकेंगे तो दिल्ली की सत्ता से तंबू उखड़ जाएगा तो उन्होंने पलटी मार ली. दिल्ली में पीएम किसान सम्मान निधि योजना को लागू कर दिया. लेकिन ममता बनर्जी अपनी जिद में केजरीवाल से सीख लेती नजर नहीं आ रही हैं. बंगाल में पीएम किसान सम्मान निधि योजना को लागू नहीं करने की वजह पूछो तो वो अपनी सरकार की कृषक बंधु योजना के फायदे गिनाने लगती हैं.
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ये सच है कि ममता बनर्जी ने सिंगूर मामले में किसानों की जमीन लौटाई, किसानों के लिये 'माटीर खातिर' अभियान चलाया. लेकिन आज की जमीनी हकीकत ये है कि पश्चिम बंगाल में जूट के किसान परेशान हैं. धान उगाने वाले किसान भी इस अंदेशे में रहते हैं कि उनका धान कौन खरीदेगा. किसान आंदोलन के नाम पर अपनी सियासत चमकाने के लिये ममता बनर्जी ने 23 दिसंबर की तारीख भी चुनी, जिस दिन पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह की जन्म जयंती थी.
बंगाल के किसान की आमदनी तीनगुनी तो पलायन क्यों?
ये तारीख पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसानों से सियासी हमदर्दी जताने के लिये चुनी गई थी. इस मौके पर ममता ने दावा किया कि पश्चिम बंगाल के किसानों की आमदनी उनके राज में तीनगुनी हो चुकी है. जवाब में बीजेपी ने नाबार्ड के आंकड़े का आईना पश्चिम बंगाल सरकार को दिखा दिया. जिसके मुताबिक किसानों की आमदनी के मामले में साल 2016-17 में पश्चिम बंगाल देश के 29 राज्यों में 24वें नंबर पर था.
ममता बनर्जी सरकार से बड़ा सवाल तो ये भी है कि अगर पश्चिम बंगाल में किसानों की आमदनी उनके राज में तिगुनी हुई, तो फिर बंगाल के किसान मजदूरी के लिये दूसरे राज्यों का रुख करने को मजबूर क्यों हैं? कड़वी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के बाद पश्चिम बंगाल चौथा राज्य है, जहां से काम की तलाश में बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे हैं.
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इन्हीं वजहों को ध्यान में रखकर मोदी सरकार ने खेती में सुधार के तीनों कानूनों को लागू किया है, ताकि हिन्दुस्तान के किसानों की जिंदगी में छाया अनिश्चितता का अंधेरा छंट सके और वो अपनी उपज का सही दाम बाजार से हासिल कर सकें. लेकिन ऐसे वक्त में किसानों को तीनों कृषि कानूनों की सही तस्वीर दिखाने की जगह उन्हें बेजा आशंकाओं से डराया जा रहा है. पीएम मोदी अन्नदाताओं से इसी हकीकत को समझने की लगातार अपील कर रहे हैं.
अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं, जहां किसान संपन्न नजर आता है, वहां उनकी बेहतरी की बुनियाद कृषि सुधार के ऐसे ही कानूनों ने रखी है, जैसा मोदी सरकार लेकर आई है. ये बात विपक्ष भी समझता है. लेकिन राजनीतिक जमीन बचाने के लिये किसानों को मोहरा बनाने से वो नहीं चूक रहे हैं.
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