नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी (Congress party) को हिंदुओं की भावनाओं की कतई चिंता नहीं. इसीलिए वह पूछ रही है कि जब असम (Asam) में मदरसे सरकारी खर्चे से नहीं चल सकते तो फिर कुंभ (Kumbh mela) का आयोजन सरकारी खर्चे से क्यों? 

उदित राज के जरिए कांग्रेस ने उठाया मुद्दा
हिंदू हितों के विरुद्ध ये सवाल उठाया कांग्रेस नेता उदित राज (Udit Raj) ने. उदित ने ट्वीट कर ये सवाल किया कि  ''सरकार द्वारा कोई भी धार्मिक शिक्षा या अनुष्ठान नहीं किए जाने चाहिए. सरकार का खुद का कोई धर्म नहीं होता है. यूपी सरकार इलाहाबाद में कुंभ मेले के आयोजन में 4200 करोड़ रुपये खर्च करती है, वह भी गलत है.''
उदित के बयान का चहुंओर विरोध
उदित के इस ट्वीट से बवाल मच गया. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि उदित राज को सनातन धर्म की कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने उदित राज पर वोट के लिए ओछी राजनीति करने का भी आरोप लगाया है. महंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि अगर कुम्भ नहीं होता तो हम और आप भी नहीं होते और देश में मुगलों का शासन होता. 


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वहीं बीजेपी (BJP) ने उदित राज की टिप्पणी पर सीधे प्रतिघात किया. संबित पात्रा ने ट्वीट करके हमला सीधे कांग्रेस पर निशाना साधा. उन्होंने लिखा कि "मित्रों ये है गांधी परिवार की सच्चाई..पहले एफिडेविट दे कर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि 'भगवान श्री राम (Lord Ram) मात्र काल्पनिक है ..उनका कोई अस्तित्व नहीं' और अब प्रियंका वाड्रा जी का कहना है की कुंभ मेला भी बंद होना चाहिए..तभी तो दुनिया कहती है राहुल और प्रियंका 'सुविधा-वादी' हिंदू है."
बवाल होने पर उदित ने ट्विट हटाया
राजनीतिक चीख पुकार के बीच कुछ ठहरे हुए सवाल हैं. मसलन बीजेपी क्यों बेहिचक सीधे और तीखे हमले कांग्रेस पर करती है? वो राहुल-प्रियंका को बेधड़क सुविधावादी हिंदू कहती है? और कांग्रेस की तरफ से एक प्रतिक्रिया तक नहीं आती. न उदित राज के पक्ष में न बीजेपी की टिप्पणी की प्रतिक्रिया में. दरअसल कांग्रेस पूरी तरह 'कन्फ्यूज़्ड' है. ठीक वैसे ही जैसे उदित 'कन्फ्यूज़' रहे दिन भर कुंभ के ऊपर दी गई टिप्पणी को लेकर. तभी तो ट्वीट के कुछ ही घंटों के भीतर बवाल होने पर उन्होंने 'अपना लिखा मिटा डाला'. जब ज़ी मीडिया ने उनसे सवाल किया कि आप अगर अपनी बात पर कायम थे तो ट्वीट मिटाया क्यों? तो उनका जवाब था, मैं उसे वापस डालूंगा. तो क्या ये हिट एंड रन टैक्टिस थी? उदित राज ने ये भी सफाई दी कि उनकी बातों का लेना देना, न किसी कांग्रेसी नेता से नहीं है, न पार्टी से.


हिट एंड रन नहीं, कांग्रेस की सधी चाल
उदित राज कांग्रेस के दलित चेहरे हैं.  उदित के ज़रिए कांग्रेस को जो मैसेज देना था वो उसने दे दिया. अब ज़रा इस खेल को समझिए- कांग्रेस के उदित से कुंभ को लेकर ट्वीट कराने के पीछे बड़ी रणनीति थी.
1. मुमकिन था बीजेपी उदित राज पर सीधा हमला बोलती
2. एक दलित नेता अगर मुस्लिम हित की बात करता तो मैसेज दलित समाज तक जाता


लेकिन अफसोस ये है कि कांग्रेस का मूल्यांकन फिर कमज़ोर साबित हुआ. एक तो बीजेपी ने उदित के बजाए सीधा हमला राहुल-प्रियंका और कांग्रेस पर किया. दूसरा उदित राज दलितों के इतने बड़े नेता नहीं कि उनकी लाइन दलित समाज की लाइन बन जाए. उदित राज की राजनीति तभी तक दलित समाज के बीच में है जब तक उनका कोई बेहतर विकल्प समाज के भीतर से निकल कर नहीं आ जाता. 


देश में फूट डालना चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस का एक फार्मूला जिस पर वो लगातार बड़े सधे तरीके से काम कर रही है, वो फिर सामने आया- दलित-मुस्लिम वोट बैंक. कांग्रेस की नज़र इस वोट बैंक पर है. तो कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों की नज़र दलित समाज पर. वो किसी भी सूरत में इस समाज को हिंदुओं से अलग करने की साजिश रच रहे हैं.



कांग्रेस का मानना है कि अगर दलित कट्टरपंथियों के साथ खड़े हुए तो उसे बड़ी आसानी से जनता की आवाज़ करार देते हुए अराजकता फैलाई जा सकती है. अफसोस इस बात का है कि कांग्रेस को सत्ता के लिए ऐसे संगठनों और उनकी देश विरोध शातिर चाल से भी परहेज नहीं.


रसातल में पहुंची कांग्रेस हिंदू विरोधी नीति
दरअसल कांग्रेस धार्मिक की तुष्टिकरण की राजनीति आज की नहीं है. राम मंदिर मुद्दे से लेकर धारा 370 और सीएए के विरोध तक की आक्रामक राजनीति में कांग्रेस के इसी वोट बैंक को साधने छटपटाहट दिखती है. 2018-19 में प्रयागराज के महाकुंभ के सफल आयोजन ने भी 2019 के चुनाव में एक बड़ा प्रभाव डाला था. तब से ही कुंभ में कांग्रेस को उसकी राजनीतिक लकीर दिखाई देती रही है. इसकी आलोचना के जरिए मुस्लिम वोट बैंक को साधने की. उदित राज के रूप में कांग्रेस को माकूल चेहरा मिला. सेक्युलरिज्म के नाम पर एपीज़मेंट यानि तुष्टिकरण कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा रहा है. हिंदुओं के मोहभंग का एक बड़ा कारण ये भी रहा है. उदाहरण के तौर पर-
- गुजरात दंगों पर चर्चा लेकिन गोधरा पर चुप्पी
- सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम 2011
- हिंदू आतंकवाद के नाम को गढ़ने की साजिश
- बाटला हाउस एनकाउंटर पर सोनिया के आंसू
- SIMI आतंकियों के एनकाउंटर पर दिग्विजय के सवाल

कांग्रेस को हिंदुओं से क्या परेशानी है?
इसलिए बहुसंख्यक आबादी पूछती है कांग्रेस से आखिर उसे हिंदुओं से परेशानी क्या है? रही बात कुंभ और मदरसे पर जारी राजनीति की. तो ये सिर्फ उकसाने वाली बात लगती है. मदरसा शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा है जबकि कुंभ भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है. मदरसे बंद किए हैं तो संस्कृत पाठशालाएं भी बंद हुईं लेकिन कांग्रेस ने सिर्फ मदरसों का ही ज़िक्र किया.



मदरसों की कट्टरपंथी शिक्षा को लेकर सवाल उठते हैं जबकि कुंभ में धर्म विशेष के खिलाफ किसी भड़काया नहीं जाता. कश्मीर में तो कई मदरसों से निकले छात्र आतंकवाद में शामिल पाए गए. कुंभ भारत की वैश्विक बंधुत्व की भावना को प्रगट करता है.
राष्ट्रवादी हिंदुत्व की काट तलाश में जुटी कांग्रेस 
पिछले करीब 6 सालों में रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस अब राष्ट्रवादी हिंदुत्व की काट खोजने में लगी है. समाजवादी पार्टी-बीएसपी से उसकी गलबहियां कांग्रेस को किसी किनारे पर नहीं पहंचा पाई हैं. वो मंझधार में है. राहुल जनेऊ से लेकर गोत्र दिखा और बता कर हार चुके हैं. प्रियंका भी बेअसर हैं. दिक्कत इस बात की है कि कांग्रेस का हर दांव उसके हिंदू विरोधी छवि को गाढ़ा करता दिखता है.
उससे बार-बार यही पूछा जाता है कि आखिर कांग्रेस को हिंदुओं से मुश्किल क्या है?


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