नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जब किसी एक शहर के म्युनिसिपल चुनाव दमखम झोंक देते हैं, तो इसके पीछे जरूर कोई बहुत बड़ी वजह होगी. ये बात बंगाल की दीदी "ममता बनर्जी" को समझ लेना चाहिए.


ममता दीदी की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं!


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बिहार विधानसभा चुनाव में NDA ने महागठबंधन को पटखनी देकर एक बार फिर से सरकार बना ली. लेकिन, AIMIM को एक अच्छी जीत बिहार में मिली, जश्न हैदराबाद में मना और संदेश बंगाल तक पहुंचा कि ये ओवैसी और AIMIM है, जो देश में मुस्लिम वोटों की सबसे बड़ी ठेकेदार बन सकती है.


बिहार के बाद ओवैसी ने बंगाल में मुस्लिम वोटों की राजनीति शुरू करते हुए ममता बनर्जी को संकेत दे दिया है कि इस बार मुसलमानों के वोटों में ममता के साथ AIMIM का भी बंटवारा होगा. ओवैसी ने कहा, "NRC की ओर NPR पहला कदम है. भारत के गरीबों को ऐसी प्रक्रिया में मजबूर नहीं किया जाना चाहिए जिससे कि वो 'संदिग्ध नागरिक' के तौर पर चिन्हित कर दिए जाएं. अगर NPR के शेड्यूल को फाइनल किया जा रहा है तो इसका विरोध करने के लिए भी कार्यक्रम को फाइनल किया जाएगा."


लव जेहाद के मुद्दे पर भी हिंदू और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण शुरु हो चुका है, और NRC-NPR के अलावा लव जेहाद का मुद्दा ऐसा है, जो हैदराबाद नगर निगम चुनाव के अलावा बंगाल चुनाव में भी चोट करेगा.


बंगाल में करीब 27 % मुस्लिम वोटर हैं, जो ममता बनर्जी के लिए बड़ा वोटबैंक है
ये 27% मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा की 294 में से 100 से ज्यादा सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं
ओवैसी बंगाल की 65 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर AIMIM उम्मीदवार उतार सकते हैं
- ओवैसी NRC और लव जेहाद के मुद्दे पर मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की शुरुआत कर चुके हैं


दीदी को सता रहा है कुर्सी छिनने का डर


ममता बनर्जी को भी यही डर है कि ओवैसी की पतंग, TMC उम्मीदवारों के वोट काटेगी और मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ, तो सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा.


2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 42 में से 18 सीटें जीती थीं, और 41 % वोट जुटाए थे. TMC को इन चुनावों में 22 सीटें और 44% वोट मिले थे. इस चुनाव में बीजेपी TMC से सिर्फ 4 सीटें और 3 पर्सेंट वोट से पीछे थी. लेकिन ओवैसी की पार्टी बंगाल में पूरी ताकत से उतरी, तो TMC के वोट घट सकते हैं. क्योंकि ममता पर हिंदुओं के तुष्टिकरण की कोशिशों के आरोप लग रहे हैं और ओवैसी सीधे ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, जो सीधे मुसलमानों से जुड़ते हैं.


ओवैसी चाहते हैं कि AIMIM को अब राष्ट्रीय पहचान मिले. इसके लिए बिहार से बंगाल और बंगाल से लेकर राजस्थान तक चुनावों में AIMIM चुनाव की तैयारी कर रही है. AIMIM राष्ट्रीय स्तर पर उभरी, तो ख़तरा सबसे ज्यादा ख़तरा कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, TMC जैसी उन पार्टियों को है, जिनपर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगते हैं.


बंगाल का सियासी समीकरण समझिए


पश्चिम बंगाल में दीदी की जबरदस्त धमक है, लेकिन ममता बनर्जी के लिए ओवैसी एंड कंपनी सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती है. भले ही लोकसभा चुनाव में भाजपा के खाते में 41 फीसदी वोट गए हो, लेकिन जब बात विधानसभा चुनाव की आती है तो समीकरण पूरी तरह से बदल जाता है. राजधानी दिल्ली इसकी सबसे बड़ी उदाहरण साबित हुई है. भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल सिर्फ एक चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि सबसे बड़ी चुनौती है.


भाजपा की अभी असली चाल तो बाकी है!


बंगाल में दीदी की दादागिरी को कम करने के लिए भाजपा कोई उनसे बड़ा 'दादा' मैदान पर उतार सकती है. वो 'दादा' दीदी की हवा टाइट करने के लिए काफी होगा, इसके अलावा दीदी की गुंडई को कम करने के लिए भाजपा दीदी के खिलाफ किसी महिला चेहरा को भी उतार सकती है. दोनों के नाम के आगे गांगुली भी हो सकता है... खैर, फिलहाल इसके बार में कुछ भी कहा जाना अभी उचित नहीं होगा, क्योंकि अभी सिर्फ आसार ही लगाए जा सकते हैं. लेकिन अगर भाजपा ने ऐसी कोई भारी-भरकम चाल चली तो दीदी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो सकती है.


दीदी की दादागिरी का नजारा तो सिर्फ बंगाल ही नहीं, पूरा देश देखता आया है. चाहें बंगाल में CBI की एंट्री हो या फिर अमित शाह की रैली पर पाबंदी हो. बंगाल में एकछत्र राज ममता बनर्जी का ही चलता है. तभी तो, दीदी के इस राज को परास्त करने के इरादे से भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है. बिहार के बाद भाजपा बंगाल में पांव पसारना चाहती है और इसके लिए वो हैदराबाद में दहाड़कर दीदी तक आवाज पहुंचाने की कोशिश में है.


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