Puducheery : क्या है राष्ट्रपति की `खुशी` जो किरण बेदी के साथ नहीं रही
पुडुचेरी राज्यपाल मामले में यह निर्णय इसलिए बड़ा बन जाता है कि राष्ट्रपतियों द्वारा ऐसे फैसले कम ही मौकों पर लिए गए हैं. डॉ. किरण बेदी के लिए राष्ट्रपति के प्रेस सचिव की संक्षिप्त अधिसूचना यह बताती है कि इस फैसले में बेदी को राज्यपाल पद से हटाए जाने में राष्ट्रपति की मौन सहमति है.
नई दिल्लीः डॉ. किरण बेदी मंगलवार को पुडुचेरी की राज्यपाल पद से हटा दी गईं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सौंदर्यराजन को पुडुचेरी के उपराज्यपाल पद का अतिरिक्त प्रभार सौंपा है. LG का पदभार संभालने के बाद से उनकी यह नई जिम्मेदारी प्रभावी हो जाएगी और वह पुडुचेरी के उपराज्यपाल की नियमित व्यवस्था होने तक इस पद पर रहेंगी.
किरण बेदी को पद से हटाया जाना इस वक्त चर्चा का विषय बना हुआ है साथ ही सियासत के बाजार में यह सवाल भी तैर रहा है कि आखिर डॉ. किरण बेदी पुडुचेरी के राज्यपाल पद से क्यों हटाई गईं और यह किस तरह का फैसला है.
क्या है अनुच्छेद 156(1)
संवैधानिक प्रावधानों को देखें तो यह कई मायनों में बड़ा फैसला रहा है. राष्ट्रपति और राज्यपाल के बीच परस्पर संबंध के तौर पर संविधान में अनुच्छेद 155 दर्ज है. यह कहता है कि राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा.
इसके बाद अनुच्छेद 156 (1) यह कहता है कि राष्ट्रपति की अनुशंसा या प्रसादपर्यंत (सामान्य भाषा में राष्ट्रपति की प्रसन्नता) ही राज्यपाल पद ग्रहण करेगा. यानी कि राष्ट्रपति की इच्छा समाप्त होने के बाद राज्यपाल का पद निरस्त हो जाएगा.
क्या है इस फैसले का मतलब?
यह निर्णय इस मामले में बड़ा बन जाता है कि राष्ट्रपतियों द्वारा ऐसे फैसले कम ही मौकों पर लिए गए हैं. डॉ. किरण बेदी के मामले में राष्ट्रपति के प्रेस सचिव की संक्षिप्त अधिसूचना जारी करना यह बताता है कि इस फैसले में बेदी को राज्यपाल पद से हटाए जाने में राष्ट्रपति की मौन सहमति है.
यानी यह ऐसा आदेश है जो बताता है कि राष्ट्रपति ने अपनी प्रसन्नता वापस ले ली है और राज्यपाल के पद से किसी को क्यों हटाया जा रहा है इस पर कोई सवाल नहीं.
अरुणाचल में 2016 का मामला
सियासती पन्नों को पीछे पलटते चलें तो इस तरह के मौके कम ही दिखाई देते हैं जब राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 156 (1) का प्रयोग किया है. मोदी सरकार की ही बात करें तो साल 2016 का समय याद आता है. सितंबर 2016 में अरुणाचल के राज्यपाल का पद संकट में आया था.
तब के राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा को राष्ट्रपति ने 156(1) का प्रयोग करके हटाया था. हालांकि केंद्र की मोदी सरकार (modi government) ने इस बारे में उदाहरण पेश किया था उन्होंने राष्ट्रपति को इस अधिकार से के प्रयोग से पहले राज्यपाल से स्वयं इस्तीफा देने के लिए कहा था.
अक्टूबर 1980- प्रभुदास पटवारी मामला
इसी तरह अक्टूबर 1980 में तमिलनाडु के राज्यपाल प्रभुदास पटवारी को बर्खास्त कर दिया गया था. इस दौरान भी राज्यपाल मामले में राष्ट्रपति की क्षमता दर्शाने वाला अनुच्छेद 156 (1) ही प्रयोग किया गया था, जो कि कहता है कि राज्यपाल पद पर बने रहने के लिए राष्ट्रपति की प्रसन्नता जरूरी है.
इस समय यही सामने आया था कि राष्ट्रपति की "खुशी" का उपयोग (यानी 156(1) अनुच्छेद) किसी भी राज्यपाल को राजनीतिक कारणों से खारिज करने के लिए किया जा सकता है, और बिना कोई कारण बताए.
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किरण बेदी को हटाने की हो रही थी मांग
यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि वह इस अनुच्छेद को कब और कैसे प्रयोग करते हैं. किरण बेदी और राजखोवा के मामले को देखें तो दोनों का ही बैकग्राउंड प्रशासनिक अधिकारियों वाला रहा है. इधर 2019 के आखिरी से किरण बेदी के लिए राज्य की चुनी हुई बॉडी मुश्किलें पैदा कर रही थीं. पुडुचेरी के सीएम कई लगातार उन्हें पद से हटाने की मांग कर रहे थे.
इस तरह यह कहा जा रहा है कि बतौर राज्यपाल डॉ. किरण बेदी की अति सक्रियता उनके हटाए जाने का कारण बनीं. दूसरा यह भी कि BJP राज्य में अगले चुनाव के दौरान जिन दलों से गठबंधन करने वाली है, वह भी किरण बेदी से खुश नहीं थे. इनमें AINRC प्रमुख तौर पर शामिल है.
हालांकि इन सबसे परे अनुच्छेद 156(1) का प्रयोग होना यह बताता है कि दुर्लभ से दुर्लभतम प्रयोग भी होते रहें, सियासत इसी का नाम है.
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