दक्षिण भारत के महान सम्राट कृष्णदेव राय की शौर्यगाथा
दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली और महान साम्राज्य विजयनगर के शासक थे कृष्ण देवराय. मध्यकाल में दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य की प्रतिष्ठा, प्राचीनकाल के मगध, उज्जैनी और थाणेश्वर साम्राज्य जैसी ही थी. उत्तर भारत के चंद्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, हर्षवर्धन और महाराजा भोज के समान ही यशस्वी सम्राट कृष्ण देवराय की ख्याति थी. राजा कृष्ण देवराय ने अपनी मातृभूमि की रक्षा और सम्मान के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था.
नई दिल्ली: महान राजा कृष्ण देवराय का जन्म 16 फरवरी 1471 ई को कर्नाटक के हम्पी में हुआ था. उनके पिता का नाम तुलुवा नरसा नायक और माता का नाम नागला देवी था. नरसा नायक सालुव वंश के एक सेनानायक थे. नरसा नायक ही सालुव वंश के दूसरे और अंतिम कम उम्र के शासक इम्माडि नरसिंह के संरक्षक थे. बाद में नरसा नायक ने शासक इम्माडि नरसिंह को रास्ते से हटाकर 1491 में विजयनगर की सत्ता हासिल की.
8 अगस्त 1509 को राजा बने कृष्णदेव राय
1503 ई. में नरसा नायक की मृत्यु के बाद कृष्ण देवराय के बड़े भाई वीर नरसिंह सिंहासन पर बैठे. चालीस वर्ष की उम्र में किसी अज्ञात बीमारी से वीर नरसिंह की भी मृत्यु हो गई और तब 8 अगस्त 1509 ई. को कृष्ण देवराय का राजतिलक किया गया.
विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर प्रथम बुक्काराय थे. उन्होंने सल्तनत की कमजोरी का फायदा उठाकर होयसल राज्य यानि को हासिल कर लिया था. जिसके बाद हस्तिनावती यानि हम्पी को विजयनगर साम्राज्य की राजधानी बनाया. हम्पी, कर्नाटक में स्थित है. हम्पी के मंदिरों-महलों के खंडहरों को देखकर समझा जा सकता है कि प्राचीन विजयनगर कितना विशाल और भव्य रहा होगा.
लंबे समय तक दक्षिण के बड़े हिस्से पर रहा कृष्णदेव राय का शासनकाल
कृष्णदेव राय, तुलव वंश से थे. उन्होंने विजयनगर पर 1509 से 1525 ई. तक शासन किया. राजा कृष्णदेव राय कूटनीति में माहिर थे. उन्होंने अपनी बुद्धिमानी से आन्तरिक विद्रोहों को शांत कर बहमनी के राज्यों पर अधिकार हासिल किया था. कृष्ण देवराय ने राज संभालने के बाद अपने साम्राज्य का विस्तार अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक कर लिया था. जिसमें आज के कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, गोवा और ओडिशा प्रदेश आते हैं. महाराजा कृष्ण देवराय के राज्य की सीमाएं पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अंतिम छोर तक थीं. हिन्द महासागर में स्थित कुछ द्वीप भी उनके आधिपत्य में थे.
शस्त्रों के साथ शास्त्रों के भी प्रवीण थे कृष्णदेव राय
राजा कृष्णदेव ने कला और साहित्य को भी प्रोत्साहित किया. वे तेलुगु साहित्य के महान विद्वान थे. कुमार व्यास का 'कन्नड़-भारत' कृष्ण देवराय को समर्पित है. उन्होंने तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अमुक्त माल्यद’ या 'विस्वुवितीय' की रचना की. कृष्ण देवराय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक ‘जाम्बवती कल्याण’ की भी रचना की थी. इसके अलावा संस्कृत में उन्होंने 'परिणय’, ‘सकलकथासार– संग्रहम’, ‘मदारसाचरित्र’, ‘सत्यवधु– परिणय’ भी लिखा.
कृष्ण देवराय के दरबार में तेलुगु साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि हुआ करते थे. जिन्हें 'अष्ट दिग्गज' कहा गया है. ये 'अष्ट दिग्गज' मंत्रिपरिषद में शामिल थे और समाज कल्याण के कामों पर नज़र रखते थे. राजा तक प्रजा की सीधी पहुंच थी.
राजा कृष्ण देवराय के दरबार के सबसे प्रमुख सलाहकार थे रामलिंगम यानि तेनालीराम. कृष्ण देवराय का अनुसरण करते हुए अकबर ने भी अपने नवरत्नों में बीरबल को रखा था.
आंध्र के पितामह कहे जाते हैं कृष्णदेव राय
कृष्ण देवराय को 'आंध्रभोज', 'अभिनव भोज', और 'आन्ध्र का पितामह' कहा जाता था. सम्राट कृष्णदेव राय जहां भी गए, वहां उन्होंने आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए प्राचीन मंदिरों का निर्माण करवाया. राजगोपुरम्, रामेश्वरम्, राजमहेन्द्रपुरम, अनन्तपुर तक अनेक मंदिर बनवाए. खुद धार्मिक और विष्णु भक्त होने के कारण मंदिर कला को प्रोत्साहन दिया. उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मंदिर और हजार खम्भों वाले मंदिर का भी निर्माण करवाया. स्थापत्य कला के क्षेत्र में कृष्ण देवराय ने 'नागलपुर' नामक नए नगर की स्थापना की. मंदिरों के कारण विद्यालयों का जाल भी विजयनगर साम्राज्य में बिछ गया था.
जीवनकाल में ही बन गए थे लोककथाओं के नायक
राजा कृष्ण देवराय की उदारता और प्रजा के प्रति दयालुता विश्व विख्यात थी. उन्होंने पुर्तगालियों से व्यापारिक संबंध बनाए, उन्होंने तुगंभद्रा पर बड़ा बांध और नहर का निर्माण करवाया. अपने जीवनकाल में ही राजा कृष्ण देवराय लोककथाओं के नायक बन गए थे. उनके पराक्रम की कहानियां पूरे भारत में प्रचलित होने लगी थी.