नई दिल्लीः आजाद हिन्द फौज जापानी सैनिकों के साथ रंगून से 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इम्फाल के मैदानी क्षेत्रों तक पहुंच गई. 22 सितम्बर 1944 को बोस ने अपने  सैनिकों के सामने सबसे बड़ी हुंकार भरी. उन्होंने साफ कहा कहा कि हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आजाद हिंद फौज ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा और बर्मा से युद्ध लड़ा. पहली बार कोहिमा में भारतीय झंडा लहराया. अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों में हड़कंप मच गया.


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अमेरिका ने जापान पर गिराया परमाणु बम
एक समय तो ऐसा लग रहा था कि नेताजी का दिल्ली चलो का सपना पूरा हो जाएगा. लाल किले पर तिरंगा लहराने के दिन नजदीक थे. इसी बीच मानवता के इतिहास को कलंकित करने वाली घटना घटी. अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर 6 और 9 अगस्त को परमाणु बम गिराकर हजारों बेगुनाह लोगों को सबसे खौफनाक मौत दे दी. इस नरसंहार से जनरल टोजो पूरी तरह टूट गए और 15 अगस्त 1945 को मित्र राष्ट्रों के सामने सरेंडर कर दिया.



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जापान का सरेंडर नेताजी की रणनीति पर भारी पड़ा
जापान और जर्मनी का सरेंडर नेताजी की दिल्ली चलो की मुहिम पर सबसे बड़ा आघात साबित हुआ. जनरल टोजो ने सरेंडर कर दिया. हिटलर ने आत्महत्या कर ली, लेकिन भारत का महामानव सुभाष न तो झुकने वाला था और न ही टूटने वाला. हालांकि वक्त ने जापान की धरती में कुछ ऐसी करवट ले ली कि इतिहास की दिशा बदल गई.  23 अगस्त 1945 को पूरी दुनिया को जापान की न्यूज एजेंसी ने एक सनसनीखेज और दुखद खबर दी.



18 अगस्त की वह दुखद तारीख, जो रहस्य बन गई
खबर ये थी कि 18 अगस्त को ताइवान के तैहोकू, जिसे अब ताइपेई के नाम से जाना जाता है, से जापान जाते हुए नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें उनकी मौत हो गई. 20 अगस्त को तैहोकू में ही उनकी अंत्येष्टि की गई. कहा ये जाता है कि 7 सितंबर 1945 को उनकी अस्थियां टोक्यो लाई गईं जहां रैंकोजी टैंपल में आज भी रखी हुई हैं. लेकिन अब ये बात साफ हो गई कि उस दिन ताइपेई में न तो कोई विमान हादसा हुआ और ना ही नेताजी की मौत.


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