Ram Mandir Pran Pratishtha: जानिए क्या होती प्राण प्रतिष्ठा, मंत्र-उच्चारण से लेकर पूजा-पाठ तक सब कुछ
Meaning of Pran Pratishtha: 22 जनवरी को रामलला अयोध्या में विराजित होंगे. इस दिन प्राण प्रतिष्ठा होने का शुभ मुहूर्त है. बता दें कि कोई भगवान की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करने से पहले प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है. आइए जानते हैं कि प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ क्या होता है.
Ayodhya Ram Mandir Pran Pratishtha: 22 जनवरी का हर किसी को बेसब्री से इंतजार है. इस दिन भगवान राम अपने गर्भगृह में विराजेंगे. हर तरफ रामलला खुशी का माहौल है. रामलला के अयोध्या नगरी में विराजने की तैयारी लगभग पूरी हो गई है. बता दें कि रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा शुभ मुहूर्त सिर्फ 84 सेकंड का है, जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा. इन दिनों हर कोई प्राण-प्रतिष्ठा का नाम सुन रहा है, लेकिन क्या वास्तव में आप इस शब्द का अर्थ जानते हैं? आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि आखिर प्राण-प्रतिष्ठा शब्द का मतलब क्या होता है और इसके क्या विधि विधान है. आइए जानते हैं प्राण-प्रतिष्ठा के बारे में सभी जरुरी जानकारी...
क्या होता है प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ?
बता दें जब भी किसी मंदिर में मूर्ति स्थापना होती है, तो उस समय वो केवल पत्थरों की होती है, लेकिन इन पत्थरों की मूर्तियों को जीवंत करने के लिए प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है. बता दें प्राण-प्रतिष्ठा के बिना कोई भी मूर्ति मंदीर में स्थापित नहीं होती है. मूर्ति स्थापना के समय प्राण-प्रतिष्ठा जरूर किया जाता है. वहीं मूर्ति को जीवंत करने को ही प्राण-प्रतिष्ठा कहा जाता है.
ये जानना भी जरूरी...
सबसे पहले आपको यह जानना भी जरुरी है कि प्राण और प्रतिष्ठा का क्या मतलब होता है? बता दें कि प्राण का मतलब जीवन शक्ति होता है, तो वहीं प्रतिष्ठा का मतलब स्थापना होता है. प्राण-प्रतिष्ठा का मतलब होता है कि पत्थर की मूर्ति में भगवान का वास होना होता है. प्रतिष्ठा किए जाने के बाद पत्थर की मूर्ति इश्वर धारण कर लेते हैं.
प्राण-प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त
बता दें कि मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के लिए शुभ मुहूर्त और सही तारिक का होना अनिवार्य माना जाता है. बिना मुहूर्त और शुभ तिथि के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करना फलदायक नहीं माना जाता है. बात दें कि मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करने से पहले गंगाजल से स्नान करवाते हैं. इसके बाद स्वच्छ कपड़े मूर्ति को पोछकर नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं. इसके बाद भगवान की प्रतिमा को साफ़ स्थान पर विराजित करके चंदन का लेप लगाकर उनका श्रंगार किया जाता है. इसके बाद मंत्र उच्चारण और विधि विधान से भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है.
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