नई दिल्लीः ईस्टर यानी पवित्रता का दिन, नवजीवन की नई शुरुआत का समय. मसीह के अनुयायी इस दिन को अपने प्रभु की वापसी के रोज के तौर पर मनाते हैं. गुड फ्राइडे के बाद पड़ने वाला रविवार ईस्टर संडे कहलाता है. यह नाम दिशा आधारित अर्थ लिए हुए है. पूर्व दिशा को जागृति की दिशा माना जाता है, ईसा मसीह की वापसी और नवजीवन में लौटने को ईस्टर कहा गया. क्योंकि दया और आशा की किरण फिर से पूरी चमक के साथ संसार में बिखर रही थी. 


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जीवित हो उठे थे प्रभु ईसा
गुड फ्राइडे के दिन ईसा मसीह ने सत्य की रक्षा करते हुए और लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देते हुए सूली पर चढ़कर अपने प्राण त्याग दिए थे. माना जाता है कि गुड फ्राइडे पर प्रभु यीशु की मृत्यु के बाद रविवार के दिन फिर से जीवित हो गए. तब से इस खुशी में ईस्टर संडे का प्रर्व मनाया जाता है. 


पुनर्जन्म में विश्वास
ईसाई समाज पुनर्जन्म में आस्था रखता है. वह मानता है कि आत्मा अजेय और अमर है. इसी आधार पर ईसा मसीह वापस लौटते हैं. उनके दोबारा जीवित होने को नव जीवन में बदलाव का प्रतीक माना जाता है, जिस दिन वह जीवित होते हैं उसे ही ईस्टर संडे कहते हैं. यहां एक बार फिर मसीह के पंथ और सनातन परंपरा में तालमेल नजर आता है. दरअसल आत्मा के अनश्वर होने का सिद्धांत भारतीय मनीषा में है. इसी आधार पर गीता नैनं छिन्दंति शस्त्राणि का दर्शन सामने रखती है. 


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ईस्टर संडे की मान्यताएं
ईस्टर संडे को खजूर इतवार के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि सूली पर लटकाए जाने के तीसरे दिन पर प्रभु यीशु फिर से जीवित हो गए थे. प्रभु यीशु के दोबारा जीवित होने को सबसे पहले मरियम मगदलीनी नामक महिला ने देखा था  फिर अन्य महिलाओं को इसके बारे में बताया था. इसलिए सबसे पहले यह पर्व सुबह सवेरे महिलाओं के द्वारा आरंभ होता है.


अंडे से होती है सजावट, नवजीवन का प्रतीक है अंडा
इस दिन सभी लोग गिरजाघरों में एकत्रित होकर पवित्र बाइबल पढ़ते हुए प्रभु यीशु के उपदेशों को याद किया जाता है. ईस्टर संडे के दिन अंडों से सजावट की जाती है क्योंकि अंडे को बहुत ही शुभ माना जाता है. अंडे नया उत्साह और नई उंमग से भरने का संदेश देता है. इस दिन लोग एक दूसरों को अंडों को उपहार में देते हैं.


40 दिन रहे थे साथ
शुरुआती समय में ईसाई धर्म को मानने वाले अधिकांश यहूदी थे. जिन्होंने प्रभु यीशु के जी उठने को ईस्टर घोषित कर दिया. ईसाई धर्म के अनुयायी ऐसा मानते हैं कि पुन: जीवित होने के बाद चालीस दिन तक प्रभु यीशु शिष्यों और मित्रों के साथ रहे और अंत में स्वर्ग चले गए.


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