नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 की शुरुआत के साथ देशभर में इस वक्त श्रद्धा का केंद्र उत्तराखंड की यही पावन भूमि है. यह वह स्थान है जहां देवी गंगा ने एक बार मुड़कर अपने पिता हिमालय की ओर देखा, गोमुख में जटा बंध खोले खड़े महादेव शिव को प्रणाम किया. एक बार फिर से आकाश में निहार कर ब्रह्न देव को देखने की कोशिश की और फिर महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे चल पड़ी. 


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ऋषिकेष (Rishikesh) में गंगा नदी पहाड़ों से उतर कर मैदानी भाग की ओर बढ़ती हैं और हरिद्वार वह पहला मैदान है जिसकी भूमि को देवी गंगा अपने अमृत तुल्य जल से सींचती हैं. श्रद्धालुओं की मान्यता है कि गंगा जल केवल अमृत तुल्य नहीं है, बल्कि इसमें वही अमृत मिला हुआ है, जो युगों पहले समुद्र मंथन से निकला था. जिसके लिए देवों और दानवों दोनों ने श्रम किया था. जिसके लिए एक बार फिर देव-दानव लड़ पड़े थे और अमृत कुंभ से छलका हुआ अमृत नदियों में जा मिला था.


अमृत कुंभ से अमृत छलका कैसे? इसके लिए पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं.


मंथन को आज कई दिन बीत चुके थे और अब देवों और देवताओं सभी की निगाहें सागर तल की ओर ही लगी हुई थीं. 13 रत्न समुद्र देव पिछले कई दिनों में दे चुके थे. देवी लक्ष्मी (Lordess Lakshmi) के आगमन से इंद्र समेत संसार का वैभव वापस आ गया था. बस नहीं बाहर आया था तो अमृत.



देव और दानव, वासुकि की रस्सी को घुमाते जाते और एक निगाह समुद्र की गहराई तक डाल लेते. मंथन का क्रम चल ही रहा था कि मंदराचल की मथानी में कुछ हलचल हुई. ऐसा लगा जैसे उसके टकराने से कोई आवाज आई हो. यह आवाज नहीं ब्रह्म का स्वर था. ऊं की ध्वनि. इस ध्वनि के प्रकट होते ही सारे संसार में प्रकाश छा गया.


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मंथन से प्रकट हुए धन्वंतरि


देव-दानवों दोनों ने ही मंथन छोड़ा और और अपनी आंखे मलने लगे. तीव्र प्रकाश के कारण वह कुछ देख नहीं पा रहे थे. धीरे-धीरे जब उनकी आंखे सामान्य हुईं तब देवताओं ने देखा कि उनके ही समान दिव्य काया वाली देह, जिसकी चार भुजाएं हैं और उन्नत मुखाकृति वाला है. 



उसके हाथों में एक दिव्य कुंभ है. इस समय संसार उसी कुंभ के प्रकाश से प्रकाशित हो रहा है. उधर दानवों ने एक नजर डाली और ईर्ष्या से बोले, लगता है देवताओं की भीड़ में एक और नया आ गया. लेकिन दैत्य सेनापति राहु सचेत था. उसने कहा- इसके हाथ में कुंभ (Kumbh) है? क्या ये... राहु ने जानबूझ कर अपने शब्द चबा लिए.


अमृत देखकर देव-दानव दोनों हुए अधीर


इधर, समुद्र से निकले देव स्वरूप ने ब्रह्मदेव को प्रणाम किया और अपना परिचय देने लगे. उन्होंने कहा-प्रणाम ब्रह्न देव, मैं आपकी ही इच्छा से उत्पन्न हुआ हूं. इसलिए आपका इच्छा पुत्र हैं. समुद्र से मेरा उद्भव हुआ है इसलिए वे भी मेरे पिता हैं. देवी लक्ष्मी मेरी बड़ी बहन हैं क्योंकि वह भी सागरपुत्री हैं. इसलिए मैं धन का ही एक स्वरूप हैं. आरोग्य धन का रूप होने के कारण मैं धन्वन्तरि हूं.



अपने साथ मैं इस दिव्य कुंभ में अमृत लेकर उत्पन्न हुआ हूं... धन्वन्तरि ने आखिरी शब्द खत्म भी नहीं किया था कि देवों-दैत्यों दोनों में हलचल मच गई. राहु अन्य राक्षसों के साथ बड़ी तेजी से धन्वन्तरि की ओर लपका. देवता उससे भी तेज गति से उसी ओर बढ़ी. किसी ने भी ब्रह्मदेव के रोकने की आवाज नहीं सुनी.


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इंद्र पुत्र ने झटक लिया अमृत


राहु धन्वन्तरि के हाथ से अमृत छीन लेने के लिए हाथ बढ़ा ही रहा था कि एक विशाल कौवे ने आकर अमृत कुंभ झटक लिया. वह इसे आकाश में लेकर उड़ चला. राक्षसों की एक टुकड़ी उसके पीछे उड़ते हुए भागी, लेकिन वह कौवा कोई सामान्य नहीं था, बल्कि मायावी था. वह इधर-उधर ओझल होते हुए भाग रहा था. राहु ने समझ लिया कि यह कौवा नहीं इंद्र का पुत्र जयंत है. अपनी चोंच में कुंभ दबाए जयंत आकाश में इधर-उधर भाग रहा था.



इसी दौरान राक्षस कई बार उसके ठीक पीछे आ गए और अमृत कलश झटकने की कोशिश की. इस छीना झपटी में चार बार अमृत, कलश से छटक कर गिर गया. पृथ्वी पर वह गंगा, शिप्रा और गोदावरी नदी के जल में मिल गया. इनमें से गंगा नदीं में दो बार अमृत गिरा. एक तो हरिद्वार में और दूसरी बार प्रयागराज में जहां गंगा-यमुना और सरस्वती का संगम होता है.


Haridwar में लगने वाला Mahakumbh पुराणों की इसी कथा के कारण पवित्र और पावन माना जाता है.


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