वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को प्रगटे थे भगवान नृसिंह, जानिए कथा
हिरण्कश्यप ने प्रह्लाद को जीवित जलाने की नाकाम कोशिश की. इस प्रक्रम में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भी जल मरी. भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद को बार-बार बचा लिया.
नई दिल्लीः भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु से हिरण्यकश्यप शोक और क्रोध के मिश्रित भाव से भर गया था. गुरु शुक्राचार्य ने बताया कि जिस वराह के हाथों हिरण्याक्ष को मृत्यु मिली वह कोई साधारण वराह नहीं था, बल्कि श्रीहरि का अवतार था.
उन्होंने ही अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और सागर तल से धरती को बाहर निकाला. यह सारी कथा सुनकर हिरण्यकश्यप श्रीहरि से बुरी तरह चिढ़ गया और फिर अपने क्रोध को पालते हुए बदला लेने की राह देखने लगा.
ब्रह्मदेव से मांगा वरदान
उसने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया कि वह न किसी मनुष्य द्धारा मारा जा सके न ही किसी पशु द्वारा. न ही दिन में मारा जा सके न रात में. न शस्त्र से मरे और न अस्त्र से, न घर के अंदर और न ही घर के बाहर. ऐसा वरदान मिलने के बाद वह खुद को अजेय समझने लगा और क्रोध के साथ-साथ अहंकारी भी हो गया.
इसके बाद उसने इंद्र देव का राज्य छीन लिया और तीनों लोक में रहने वाले लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. उसने खुद के भगवान होने की घोषणा कर दी और विष्णु पूजा बंद करा दी.
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पुत्र ने ही किया हिरण्यकश्यप का विरोध
हिरण्कश्यप के स्वभाव से विपरीत उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. पिता के लाख मना करने और प्रताड़ित करने के बाद भी वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहता था. हिरण्कश्यप चाहता था कि उसका पुत्र उसे भगवान समझकर पूजे. जब प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप की बात नहीं मानी तो उसने अपने ही बेटे को पहाड़ से धकेल कर मारने की कोशिश कि लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की जान बचा ली.
स्तंभ फाड़कर प्रगटे नृसिंह भगवान
इसके बाद हिरण्कश्यप ने प्रह्लाद को जीवित जलाने की नाकाम कोशिश की. इस प्रक्रम में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भी जल मरी. भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद को बार-बार बचा लिया.
अंत में क्रोधित हिरण्कश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को दीवार में बांध कर आग लगा दी और बोला बता तेरा भगवान कहां है, प्रह्लाद ने बताया कि भगवान यहीं हैं, जहां आपने मुझे बांध रखा है. जैसे ही हिरण्कश्यप ने अपनी गदा से प्रह्लाद को मारना चाहा, वैसे ही भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंभा फाड़कर बाहर निकल आए और हिरण्कश्यप का वध कर दिया.
6 मई (वैशाख चतुर्दशी) को है नृसिंह जयंती
जिस दिन भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध करके भक्त प्रह्लाद के जीवन की रक्षा की, उस दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है. भगवान नृसिंह को पराक्रम का देवता माना गया है. हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप दोनों ही ऋषि कश्यप की संतान थे. भगवान ने अपने दो अवतारों के जरिए दो पापियों का अंत किया था.
ऐसे करें पूजन
नृसिंह जयंती के अवसर पर सुबह जल्दी स्नान कर पूजा स्थल पर भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. भगवान की पूजा के लिए फल, फूल, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखें. गंगाजल, काले तिल, पंचगव्य व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें. भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्र का जाप करें. इस दिन व्रती को भगवान नृसिंह का आशीर्वाद पाने के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए.
कीजिए उस स्थान के दर्शन, जहां खेलीं-कूदी और पली-बढ़ीं देवी सीता