नई दिल्लीः पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने वाले दिनों श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ हो चुका है. सनातन संस्कृति में पितरों को जल देना, तर्पण करना जरूरी है. यह मनुष्य को उसकी पीढ़ियों से जोड़े रखता है. सामान्य बोलचाल में भी हम कहते हैं कि व्यक्ति को आगे-पीछे सोचकर चलना चाहिए.


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इसका गूढ़ अर्थ यही है कि एक हाथ में मनुष्य पूर्वजों को अपनी उंगली थमारे रखे और दूसरे हाथ में भविष्य को थामकर रखे. तर्पण कल आज और कल की इसी सुंदर अभिव्यक्ति सूत्रधार है. 
 



इसके अलावा यह पूरी प्रक्रिया प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का जरिया भी होता है. तर्पण के दौरान पितरों को प्रकृति प्रदत्त शुद्ध पदार्थ ही समर्पित किए जाते हैं. इनमें कुशा, तिल, जौ, अक्षत प्रमुख रूप से शामिल हैं. श्राद्ध के लिए जरूरी इन प्रकृति प्रदत्त अवयवों के महत्व पर डालते हैं एक नजर-


श्रीहरि के रोम हैं कुशा
श्राद्ध कर्म में सबसे महत्वपूर्ण अवयव है कुशा. मान्यता है कि भगवान विष्णु के वराह अवतार के रोम अंकुर ही धरती पर कुशा हैं. इनके जरिए पूर्वज-पितरों से शीघ्र संपर्क हो जाता है. इसके अतिरिक्त कुशा तेज का भी प्रतीक है जिससे हर क्षण तेजोमय तरंगें निकलती हैं.



इन तरंगों के प्रभाव से श्राद्ध स्थस पर रज-तम गुणों का प्रभाव कम हो जाता है, जिससे कि नकारात्मक शक्तियों के अनिष्ट कारी प्रभाव कम हो जाते हैं. कुश पितरों को मार्ग दिखाता है. श्राद्ध में समूल कुश का प्रयोग करना चाहिए. 


काले तिल यम के हैं प्रतीक
पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान तिल का प्रयोग भी जरूरी होता है।. क्योंकि तिल की उत्पत्ति भी विष्णु जी से हुई है. ये नारायण के पसीने से निकला है. ऐसे में इससे पिंडदान करने से मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है.



तिल से भी निकलने वाली रज-तम तरंगे मृत्यलोक में भटक रही पितर आत्माओं को श्राद्धस्थल तक बुलाने में सहयोगी होती है. श्राद्ध स्थल पर तिल छिड़क दिए जाते हैं, जिससे यह एक निश्चित क्षेत्र बन जाता है, जिसमें वही पितृ आत्माएं आती हैं, जिनका आह्वान किया जा रहा है. काले तिल पितर की तृप्ति का साधन हैं. 


अक्षतः पितरों को संतुष्ट करने वाला देवअन्न
पितर आत्माओं की तृप्ति के लिए उन्हें अक्षत अर्पण किया जाता है. अक्षत जीवन का आधार है और धन-धान्य का पहला प्रतीक है. पितरों को चावल की खीर अर्पित की जाती है. इसमें मिला हुआ मिष्ठान्न रस का और दूध चेतना का प्रतीक व ,स्त्रोत है.



पितर इन्हें पाकर संतुष्ट होते हुए इसी प्रकार परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद देते हैं. खीर खाना उनकी हर अतृत्प इच्छा की पूर्ति का संकेत है. 


जौः तृष्णा की तृप्ति है जौ
जौ दान महादान. जौ यानी यव अनाजों में सर्व शेष्ठ है. यह सोने के ही समान शुद्ध और खरा है. इसलिए यह उन तमोगुणी वैभव का प्रतीक है, जिनके प्रति मनुष्य जीवन रहते लालायित रहते हैं. इनके प्रति जीवन रहते मोह नहीं कम हो पाता और मृत्यु के बाद भी यह इच्छा अतृप्त ही रह जाती है.



तर्पण में जो का प्रयोग पितरों को वैभव की संतुष्टि देता है. इसके साथ ही जौ नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है. इसलिए श्राद्ध पूजन में जौ का प्रयोग किया जाता है.  


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