नई दिल्लीः शरद पूर्णिमा, नवरात्र के नौ दिन की शुद्धिकरण की प्रक्रिया के बाद वातावरण पवित्र हो जाता है. इसके बाद प्रकृति ऋतु परिवर्तन की ओर बढ़ रही होती है. वायुमंडल में हवा के दाब और सूर्य के ताप के प्रभाव से संघनन प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो कि ओस कणों को रूप में धरती पर गिरने लगती है.


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शीत का अहसास होने लगता है. आसमान स्वच्छ हो जाता है. जब इसी स्निग्ध स्नेहिल वातावरण में चंद्र देव अपनी समस्त कलाओं और रश्मियों के साथ प्रकट होते हैं तो उनका रूप कुछ और ही अधिक उज्जवल होने लगता है. उनकी श्वेत धवल छवि अमृत सरीखी हो जाती है. 


आरोग्य के पर्व का दिन है शरद पूर्णिमा
समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के कारण वह अमृत और धनलक्ष्मी के भाई हैं. इसलिए वह आरोग्य और ऐश्वर्य के भी प्रदाता हो जाते हैं. मान्यता है कि चंद्रमा की शीतल रश्मियां शरद पूर्णिमा की रात को अमृत वर्षा करती हैं. मानव जाति के लिए यह प्रकृति का बड़ा उपहार है.



आरोग्य और ऐश्वर्य का यही पर्व शरद पूर्णिमा कहलाता है. आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिंमा इसी आरोग्य पर्व का दिन है. 


खीर महज मिष्ठान्न नहीं सहज औषधि है
खीर खाने की परंपरा के पीछे भी आयुर्वेदिक तर्क हैं. जब बालक जन्म लेता है तो उसका सर्वाहार दुग्ध ही होता है, मां का दूध उसे जीवन शक्ति प्रदान करता है और संपूर्ण पोषण देकर उसे पुष्ट और बलवान बनाता है. धीरे-धीरे वह बड़ा होता है तो गाय का दुग्ध पीने के साथ वह बाहरी दुनिया के आहार को ग्रहण करता है.



लेकिन जब ठोस भोजन दिए जाने की बात आती है तो सबसे पहले वह दूध-चावल की तरल खीर ही खाता है. क्योंकि खीर में पौष्टिक दूध तो है ही, साथ ही बाहरी दुनिया का बल प्रदान करने के लिए अक्षत यानी कि चावल भी मिश्रित है. 


ऐश्वर्य का प्रतीक है अक्षत
कार्बोहाइड्रेट का पहला स्त्रोत चावल बालक को पुष्टता प्रदान करता है. इसलिए आरोग्य के विषय में खीर का स्थान च्यवनप्राश से भी पहले है. क्योंकि च्यवन प्राश ऋतु आधार पर ही खाई जा सकने वाली महज औषधि है,



जबकि खीर किसी भी ऋतु में खाया जा सकने वाला आरोग्य का वरदान है. इसीलिए देवी लक्ष्मी को खीर का भोग लगाते हैं. घरों में पूजा में उनकी प्रतिष्ठा भी चावल के दानों पर करते हैं. देव वंदना में अक्षत चढ़ाने का प्रावधान है और माता धन के साथ धान्य के रूप में ऐश्वर्य प्रदान करती हैं. 


आज रात लें आरोग्य का वरदान
शरद पूर्णिमा इसी आरोग्य और अमृत तत्व की प्राप्ति का मार्ग है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में गाय के दूध से बनी खीर को खुले पात्र में डालकर रात्रि में खुली चांदनी में रखना चाहिए. अगले दिन प्रात काल भगवान को भोग लगाकर निराहार इस खीर का सेवन करना चाहिए.



यह आरोग्य प्राप्ति के लिए भगवान का दिया गया वरदान है. इस बार पूर्णिमा 30 अक्टूबर को शाम 5:46 से लेकर 31 अक्टूबर शाम 5:38 तक है. इसलिए 30 अक्टूबर को रात्रि की पूर्णिमा होने के कारण शरद पूर्णिमा तथा अर्घ्य देने वाली पूर्णिमा 30 अक्टूबर को ही मनाई जा रही है.उचित है. 


यह है आयुर्वेदिक लाभ
खीर खाना, पित्त को नियंत्रित करता है. इसलिए पित्त के असंतुलन से बचने के लिए इस समय खास तौर से खीर खाने की परंपरा है. खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है और मलेरिया के खतरे को कम करती है.


 


दरअसस मच्छर के काटने से शरीर को संक्रमित करने वाला रोगाणु दरअसल हमारे पित्त को ही अनियमित करता है. इसलिए खीर खाना इस बीमारी से बचने का सरल उपाय है. खीर बनाते हुए चीनी के स्थान पर मिश्री का प्रयोग करना अधिक बेहतर होता है. 


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