क्या प्रेरणा देते हैं देवी के नौ आध्यात्मिक स्वरूप, विस्तार से जानिए
नवरात्र का उत्सव साधना का उत्सव है. आत्म चिंतन और प्रकृति से एकाकार का समय है. वर्ष के पहले नौ दिन देवी को समर्पित होते हैं क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ का आधार देवी का स्वरूप ही है.
नई दिल्लीः देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का आदि स्वरूप ही शक्ति स्वरूप है और देवी ही इसकी प्रथम आद्या हैं. वह परमपिता ब्रह्मदेव की इच्छा शक्ति हैं, विष्णु की पालक शक्ति हैं और शिव के संहार की इच्छा में भगवती की ही शक्ति समाहित है. इसलिए इन्हें आदिशक्ति, महाविद्या और परमशक्ति के तौर पर जाना जाता है.
यही कारण है कि सनातन वर्ष परंपरा के प्रारंभिक नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित होते हैं. भगवती की सूक्ष्म शक्ति से परे यह नव स्वरूप प्राथमिक, दिव्य और मानव जाति के लिए प्रेरणा हैं. इन स्वरूपों के मर्म पर डालते हैं नजर-
प्रथम देवी शैलपुत्रीः हिमालय की पुत्री
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है. पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने कारण देवी शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं. देवी का यह स्वरूप इच्छाशक्ति और आत्मबल को दर्शाता है और इसके लिए प्रेरित करता है. सती दाह की घटना के बाद आदिशक्ति ने पुनः महादेव की अर्धांगिनी बनने के लिए आत्मबल दिखाया और जन्म लेकर तपस्या कर महादेव को फिर से प्राप्त किया.
देवी का यह मानवीय स्वरूप बताता है कि मनुष्य की सकारात्मक इच्छाशक्ति ही भगवती की शक्ति है. नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है. प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं. देवी की इस मंत्र के साथ वंदना करें.
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वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।
द्वितीय ब्रह्मचारिणीः तप की देवी
देवी का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली यह देवी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं . ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है. मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है. उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. नवदुर्गा के दूसरे दिन साधक का मन
स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है. इस मंत्र से साधना करें.
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
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तृतीय चंद्रघण्टाः नाद की देवी
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघण्टा हैं. माता के मस्तक पर घण्टे के आकार का चंद्र शोभित है. यही इनके नाम का आधार है. देवी एकाग्रता की प्रतीक हैं और आरोग्य का वरदान देने वाली है. असल में नाद ही सृष्टि की चलायमान शक्ति है. यह ऊंकार का स्त्रोत है और सृष्टि की प्रथम ध्वनि है.
घंटा ध्वनि सभी ध्वनियों में सबसे शुद्ध और शांत प्रवृत्ति वाली है. यह ऊर्जा क बढ़ाती है. जो लोग एकाग्र नहीं रह पाते, क्रोधी स्वभाव और विचलित मन वाले हैं, मां चंद्रघंटा की शरण लें. और इस मंत्र से उपासना करें.
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
चतुर्थ कूष्माण्डाः जननी स्वरूपा
मां का यह स्वरूप ब्रहमांड का सृजन करता है. अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा. इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है. अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए.
मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है. सरल शब्दों में कहें तो मां की आराधना व्याधियों और विकारों को नष्ट करती है. देवी नवीनता का प्रतीक हैं और सृजन की शक्ति हैं. अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा मां की उपासना इस मंत्र से करनी चाहिए.
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
पंचम स्कन्दमाताः वत्सला स्वरूप
मां दुर्गा का यह पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता कहलाता है. भगवान स्कन्द यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहते हैं. पांचवें दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है. देवी कमलाआसन पर विराजित हैं औऱ इस रूप में भगवान विष्णु की पालक शक्ति हैं.
इन्हीं की प्रेरणा से श्रीसत्यनारायण प्रभु भक्त वत्सल हैं और पिता तुल्य हैं. इसी प्रेरणा वह संसार का पालन करते हैं और प्रत्येक जीव का रंजन करते हैं. देवी का यह स्वरूप चित्त में शीतलता और दया भरने वाला और अभय देने का प्रतीक है. देवी की पूजा इस मंत्र से करें.
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
षष्ठम कात्यायनीः ऋषि पुत्री, वीरांगना स्वरूप
मां दुर्गा का यह छठा स्वरूप अमोघ शक्ति और गौरव देने वाला है. देवी के इस नाम के पीछे की वजह ऋषि कात्यायन के घर जन्म लेना है. उनकी पुत्री होने से वह कात्यायनी कहलाती हैं. यह स्वरूप कर्मठता का प्रतीक है और नारी जाति को प्रेरणा देता है कि वह अपनी दया, तपस्या और त्याग जैसे गुणों के साथ वीरांगना भी है.
अबला तो किसी भी स्वरूप में नहीं. यह स्वरूप क्षमाशील भी है और दंडदेने वाला भी. देवी को दानव घातिनी भी कहते हैं. शुंभ निशुंभ औऱ रक्तबीज जैसे दानवों का अंत देवी ने इसी स्वरूप में किया. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. मां की अर्चना इस मंत्र से करें.
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
सप्तम कालरात्रिः शुभफला शुभांकरी देवी
अंधकार में भी आशा की किरण और अभय देने वाला देवी का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है. भयानक स्वरूप के बाद भी शुभफल देने वाली देवी शुभांकरी नाम से पूजित होती हैं. सातवें दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं.
देवी का यह रौद्र स्वरूप शिव के संहार स्वरूप की प्रेरणा है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं. जिससे भक्त भयमुक्त हो जाते हैं. देवी का आभार इस मंत्र से प्रकट करें.
एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी।।
अष्टम महागौरीः पुण्यतेज स्वरूप
मां दुर्गा का यह आठवां स्वरूप आठवें दिन पूजित होता है. यह धवल वर्ण के वस्त्र धारण करने वाली और गौर वर्ण की देवी हैं इसलिए महागौरी कहलाती हैं. देवी का यह स्वरूप शिवप्रिया स्वरूप है जो उनके साथ कैलाश में विराजित हैं.
अभय देने वाली, दया व ममता की मूर्ति और पुण्य फल देने वाली देवी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं. देवी की उपासना इस मंत्र से करें.
श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
नवम सिद्धिदात्रीः सिद्धियां प्रदान करने वाली
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों की अधिष्ठाता हैं. नाम से स्पष्ट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं. नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं. इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए. वीर हनुमान को देवी कृपा से ही आठों सिद्धियां और नव निधियों का वरदान प्राप्त हुआ था. देवी की उपासना इस मंत्र से कीजिए.
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।