Commonwealth Games: क्या है देश दुनिया में वेटलिफ्टिंग का इतिहास, कैसे ये खेल बना भारत के लिए मेडल की खान
बर्मिंघम में जारी कॉमनवेल्थ गेम्स में वेटलिफ्टिंग का दबदबा देखने को मिल रहा है जिसमें भारतीय खिलाड़ियों ने चौथे दिन की समाप्ति तक 3 गोल्ड समेत कुल 7 पदक अपने नाम कर लिये हैं.
Commonwealth Games: बर्मिंघम में जारी कॉमनवेल्थ गेम्स में वेटलिफ्टिंग का दबदबा देखने को मिल रहा है जिसमें भारतीय खिलाड़ियों ने चौथे दिन की समाप्ति तक 3 गोल्ड समेत कुल 7 पदक अपने नाम कर लिये हैं. वेटलिफ्टिंग के खेल की बात करें तो यह पूरी तरह से व्यक्ति की मानवीय ताकत और बहादुरी की कहानी होती है. यह ऐसा खेल है जिसकी जड़ें अफ्रीका, साउथ एशिया और प्राचीन ग्रीस से जुड़ी हुई हैं और 19वीं सदी में इसे नये आयाम भी मिले.
वजन उठाने की कला पर निर्भर इस स्पर्धा ने हमेशा ही लोगों को चौंकाने का काम किया है और इसी को देखते हुए 1905 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय वेटलिफ्टिंग फेडरेशन का गठन भी हुआ. इस खेल का नाम ही इसके बारे में सब बताता है कि सबसे ज्यादा वजन उठाने वाला व्यक्ति ही विजेता बनता है लेकिन इसके बावजूद कुछ नियम हैं जिसके तहत इसे खेला जाता है.
इन नियमों के तहत खेला जाता है वेटलिफ्टिंग का खेल
नियमों की बात करें तो वेटलिफ्टिंग के खेल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में 2 स्टेज पर खेला जाता है. पहला स्टेज होता है 'स्नैच' तो वहीं दूसरे स्टेज का नाम है 'क्लीन एंड जर्क'. स्नैच का मतलब है कि जब वेटलिफ्टर वजन को एक बार में उठाता है और मोशन में उसे अपने सिर से ऊपर ले जाता है, वहीं पर क्लीन एंड जर्क के राउंड में वेटलिफ्टर को पहले बारबेल को उठाकर छाती तक लाना पड़ता है और थोड़ा सा रुककर उसे सीधी कोहनी के साथ सिर के ऊपर ले जाना होता है.
यहां पर वेटलिफ्टर को बजर की आवाज आने तक बारबेल को ऊपर ही रखना होता है. एक वेटलिफ्टर को स्नैच और क्लीन एंड जर्क के 3 प्रयास दिये जाते हैं. इस दौरान दोनों कैटेगरी में जो उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है उसे जोड़ा जाता है और जिसने सबसे ज्यादा वजन उठाया होता है उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है.
वेटलिफ्टिंग के खेल में अगर एक से ज्यादा खिलाड़ी समान वजन उठाते हैं तो जिस खिलाड़ी का वजन कम होता है उसे विजेता घोषित किया जाता है और अगर दोनों का वजन भी बराबर हो तो जिसने कम प्रयास में ज्यादा वजन उठाया है उसे विजेता बनाया जाता है. यहां पर भी अगर बराबरी देखने को मिलती है तो टाई ब्रेकर होता है.
पहले वन हैंड लिफ्टिंग का भी होता है आयोजन
इसके तहत हर खिलाड़ी को अपने अगले प्रयास में वजन बढ़ाने की छूट दी जाती है. और जो भी पहले विफल होता है वो हार जाता है.वेटलिफ्टर्स को अपनी कलाई और अंगूठे को चोट से बचाने के लिये उसके आस-पास टेप लगाने की छूट होती है. वेटलिफ्टिंग को ओलंपिक्स के पहले संस्करण से ही खेलों में शामिल किया गया था जिसमें वो एथलेटिक्स के फील्ड एंड ट्रैक इवेंट का हिस्सा बनी थी. हालांकि 1904, 1908 और 1912 के ओलंपिक खेलों में इसे शामिल नहीं किया गया था लेकिन 1920 के ओलंपिक खेलों में इसने वापसी की थी.
1896 में जब ओलंपिक खेलों का आगाज हुआ तो वेटलिफ्टिंग का आयोजन दो कैटेगरी में होता था, इसमें एक इवेंट में दोनों हाथ का इस्तेमाल होता था तो वहीं पर दूसरे इवेंट में सिर्फ एक हाथ, 1924 के ओलंपिक खेलों के साथ ही एक हाथ की वेटलिफ्टिंग पर रोक लगा दी गई.
जानें कैसा रहा है भारतीय वेटलिफ्टर्स का प्रदर्शन
भारतीय वेटलिफ्टिर्स की बात करें तो वेटलिफ्टिंग के खेलों में पहली बार 1936 में बर्मा के रहने वाले यू जॉ वेक ने बर्लिन ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लिया था लेकिन दंडमुंडी राजगोपाल पहले भारतीय मूल के खिलाड़ी बने जिन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया. 1948 तक भारत के पास सिर्फ दो ही वेटलिफ्टर्स थे जिसमें दंडमुंडी राजगोपाल के साथ डैनियल पोन मॉनी का नाम शामिल है.
भारतीय वेटलिफ्टर्स की बात करें तो वो ओलंपिक खेलों में लगातार भाग जरूर ले रहे थे लेकिन 2000 से पहले तक वो टॉप 10 में भी जगह बना पाने में नाकाम रहे थे. साल 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने इतिहास रचते हुए वेटलिफ्टिंग में भारत के लिये ब्रॉन्ज मेडल जीतकर एक नये अध्याय की शुरुआत कर दी. जिसे 2020 के टोक्यो ओलंपिक्स में मीराबाई चानू ने सिल्वर जीतकर आगे बढ़ा दिया.
कॉमनवेल्थ गेम्स की बात करें तो भारत वेटलिफ्टिंग में सबसे ज्यादा पदक जीतने वाला दूसरा देश है जिसने 2018 के खेलों तक 43 गोल्ड, 48 सिल्वर और 34 ब्रॉन्ज समेत कुल 125 पदक जीते हैं.
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