नई दिल्ली:  क्या आप पीनट बटर, बिस्कुट,आइसक्रीम, केक और ब्रेड जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का सेवन करना बेहद पसंद करते हैं? अगर हां तो आज ही सावधान हो जाएं. हाल ही में सामने आई एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि ये फूड्स जैंथम और ग्वार गम जैसे इमल्सीफायर्स से भरपूर हैं, जो डायबिटीज के खतरे को बढ़ा सकते हैं. 


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क्या होता है इमल्सीफायर?  
इमल्सीफायर का इस्तेमाल ज्यादातर प्रोसेस्ड फूड के स्वाद को बढ़ाने और उसे स्थिर रखने के लिए किया जाता है. यह 2 तरह के लिक्विड के मिश्रण से बनकर तैयार होता है. आमतौर पर इमल्सीफायर का इस्तेमाल कुकीज, पीनट बटर, केक, पेस्ट्री, चॉकलेट, आइसक्रीम, फ्लेवर्ड योगर्ट, डेयरी प्रोडेक्ट्स और मियोनीज जैसे फूड प्रोडक्ट्स में होता है. यह इनके शेल्फ लाइफ को भी बढ़ाने का काम करता है. 'द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी' में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक फैटी एसिड, कैरेजेनन, मॉडिफाइड स्टार्च, लेसिथिन, सेल्युलोज,मसूड़ों और पेक्टिन के मोनो और डाइग्लिसराइड्स समेत इमल्सीफायर्स को टाइप 2 डायबिटीज के विकास के खतरे से जोड़ा है. बता दें कि इससे पहले इमल्सीफायर को ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर से भी जोड़ा जा चुका है.  


रिसर्च में हुआ ये खुलासा 
फ्रांस के 'INRAE नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर फूड एंड एनवायरनमेंट' के रिसर्चर्स ने इमल्सीफायर के सेवन को लेकर यह रिसर्च की है. रिसर्च में बताया गया कि किस तरह के इमल्सीफायर का कितना सेवन आपकी जान को खतरे में डाल सकता है. 104,139 वयस्कों में करीबन 14 साल तक हुई इस स्टडी में साल 2009 और 2023 के बीच टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को ज्यादा देखा गया. 


रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने इमल्सीफायरों के लगातार संपर्क में आने वाले 1,056 मामलों को डाइग्नॉज किया, जिसमें नियमित 100gm कररागीनन से  3 प्रतिशत खतरे को देखा. इसके अलावा  500 mg ट्रिपोटेशियम फॉस्फेट से 15 प्रतिशत खतरा,  नियमित 100 mg मोनो और डायएसिटाइल टार्टरिक एसिड एस्टर मोनो और फैटी एसिड के डाइग्लिसराइड्स से 4 प्रतिशत खतरा बताया गया.  इसके अलावा प्रति दिन 500mg सोडियम साइट्रेट से 4 प्रतिशत खतरा,  नियमित 500 mg ग्वार गम से 11 प्रतिशत खतरा,  प्रति दिन 1,000mg अरबी गम से  3 प्रतिशत खतरा और प्रति दिन 500gm से 8 प्रतिशत खतरा देखा गया.            


एडिटिव्स को लेकर जागरुकता 
रिसर्च को लेकर इंसर्म में मैथिल्डे टौवियर अनुसंधान निदेशक और INRAE में जूनियर प्रोफेसर बर्नार्ड सॉउर ने कहा, 'ये रिजल्ट फिलहाल सिंगल ऑब्जर्वेशनल स्टडी से जारी किए गए हैं और इनका इस्तेमाल किसी कारणात्मक संबंध स्थापित करने के लिए नहीं किया जा सकता है. उन्हें दुनिया भर में अन्य महामारी विज्ञान अध्ययनों में दोहराया जाना चाहिए और विषविज्ञान और पारंपरिक प्रयोगात्मक अध्ययनों के साथ पूरक किया जाना चाहिए, ताकि इन खाद्य योजक इमल्सीफायर और टाइप 2 डायबिटीज की शुरुआत को जोड़ने वाले तंत्र को और अधिक जानकारी दी जा सके.' उन्होंने आगे कहा,' हमारे परिणाम उपभोक्ताओं की बेहतर सुरक्षा के लिए फूड इंडस्ट्री में एडिटिव्स के इस्तेमाल के आसपास के नियमों के पुनर्मूल्यांकन पर बहस को समृद्ध करने के लिए प्रमुख तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं.'


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