नई दिल्ली: धरती का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका है. यहां से सूर्य लगभग 9 करोड़ 40 लाख मील की दूरी पर है. धरती पर 9,650 किलोमीटर से ज्यादा मोटा वातावरण है, जो हमारे सांस लेने के लिए ऑक्सीजन से भरा पड़ा है. यह वातावरण हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाने में मदद करता है, लेकिन चांद धरती के बिल्कुल विपरीत है. यहां शायद ही कोई पानी या पोखर है. यहां का वातावरण भी बेहद कमजोर है. वहां कोई बादल, बारिश या बर्फ नहीं है बस एक आसमान है, जो अंतरिक्ष का कालापन है. सूर्य के कारण इसकी सतह पकी हुई है. 


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चांद की सतह पर बर्फ 
लंबे समय तक एस्ट्रोनॉमर्स और अन्य वैज्ञानिकों ने सोचा था कि चांद पर पानी की संभावना बिल्कुल नहीं है. इसको लेकर NASA के अपोलो अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा से कई चट्टानों के नमूने वापस लाए. वे सभी सूखे थे और उनमें पीने लायक पानी पानी नहीं था, हालांकि हाल के अंतरिक्ष यान के दौरे से पता चला कि वहां कुछ पानी है. साल 2009 में NASA ने एक अंतरिक्ष यान 'लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट' या LCROSS को चांद की सतह पर गिरा दिया. ऐसा होते ही पानी की बर्फ बाहर निकल गई. इससे वैज्ञानिकों को पुष्टि हुई की पानी की बर्फ गड्ढों के में थी, हालांकि ये तय करना मुश्किल है कि वहां कितना पानी है. चांद के 10 हजार या उससे अधिक क्रेटर बड़े छेद हैं, जिनके क्षेत्र इतने छायांकित हैं कि सूर्य की रोशनी कभी भी अंदर तक नहीं जाती है. ये जगह वास्तव में ठंडे हैं (-184 C से भी कम). एक बार जब ये जमे हुए पानी के अणु गड्ढों में फंस जाते हैं, तो वे लगभग हमेशा के लिए बने रहते हैं, जब तक कि कुछ गर्मी या ऊर्जा उन्हें उखाड़ न दे.


चांद पर कैसे बना बर्फ? 
साल 2023 में वैज्ञानिकों ने स्ट्रेटॉसफेरिक ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रेएर्ड एस्ट्रोनॉमी ( SOFIA) का इस्तेमाल करके चांद के उन सतह पर पानी की तलाश की जहां, क्रेटर उतने ठंडे नहीं थे. उस दौरान उन्हें मिट्टी के कणों के अंदर पानी मिला, हालांकि ये अभी तक कोई नहीं जानता कि चांद में कितना पानी है और वह कितनी गहराई तक जा सकता है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर चांद को पानी कहां से मिला. वैज्ञानिकों के मुताबिक कुछ युगों पहले धूमकेतु जो मूल रूप से बरर्फ के गंदे गोले होते हैं अपने धूमकेतू पानी को छोड़कर पृथ्वी से टकराए थे. इससे धरती में महासागर बनें. शायद इसी तरह चांद को भी पानी मिला होगा. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबों साल पहले चांद में प्राचीन ज्वालामुखी वॉटर वेपर छोड़ते थे. ये जलवाष्प पाले के रूप में सतह पर उतरे. समय के साथ उस पाले में परतें जमा हो गईं. इसका ज्यादातर हिस्सा बर्फ के रूप में चांद के गड्ढों पर पहुंच गया होगा. 


एस्ट्रोनॉट्स के लिए पीने का पानी 
पानी भारी होता है. इसे स्पेस्क्राफ्ट के जरिए इसे चांद तक पहुंचाना बेहद मुश्किल होता है. ऐसे में अंतरिक्ष यात्री चांद पर पहले से मौजूद पानी का इस्तेमाल करने का तरीका खोज रहे हैं, हालांकि चंद्रमा का पानी पीने लायक बिल्कुल भी नहीं है. इसमें चांद की मिट्टी के छोटे-छोटे टुकड़े और कुछ अणु शामिल हैं. चंद्रमा की कॉलोनियों में रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को खुद से इकट्ठा किए गए पानी को शुद्ध करने की जरूरत पड़ेगी.  यह एक पेचीदा प्रक्रिया है, जिसके लिए काफी मेहनत और संसाधनों की जरूरत होगी. 


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