लखनऊ: भारत में एक तरफ लोग कोरोना वायरस जैसी वीभत्स महामारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उत्तर भारत के राज्यों में किसानों की फसलें टिड्डियों की वजह से बर्बाद हो रही हैं. लॉकडाउन की वजह से गरीब किसान और मजदूर की समस्याएं पहले से ही बढ़ी हुई थीं ऊपर से टिड्डियों के दल ने कई राज्यों में नया संकट उत्पन्न कर दिया है. हालांकि कृषि विशेषज्ञों ने टिड्डियों से बचाव के कई उपाय बताये हैं और साथ ही चिंताजनक बात ये है कि मानसून आने के कारण मानसूनी हवाएं चलने से टिड्डियों के समूह फिर से आ सकते हैं.


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राजस्थान में टिड्डियों का प्रकोप सर्वाधिक


आपको बता दें कि टिड्डी दल देश के अलग-अलग हिस्सों में अपना असर दिखा चुका है. राजस्थान के 22 से ज्यादा जिलों में यह दल तकरीबन 95000 हेक्टेयर से ज्यादा फसलों को चट कर चुका है. राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में भी टिड्डियों का आतंक सामने आया है.  राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में टिड्डी दल की जुलाई में मानसूनी हवाओं के साथ दोबारा वापसी होने की संभावना है.


पाकिस्तान से भारत में आये टिड्डी दल


कई कृषि आयुक्त और कृषि विशेषज्ञ बता रहे हैं कि टिड्डी दल पाकिस्तान से आ रहे हैं. कृषि विभाग के अनुसार जैसे-जैसे जिलो में टिड्डी प्रकोप बढ़ता जा रहा है, वैसे ही संसाधनों में बढ़ोतरी की जा रही है. खेतों में ट्रैक्टर दमकल, ड्रोन से कीटनाशक का छिड़काव किया जा रहा है. टिड्डियों को मारने के लिए तकरीबन 50 लीटर कीटनाशक का छिड़काव करवाया जा चुका है.


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ब्रिगेड सेंटर में टिड्डियों के अंडे दबाने से खत्म होगा प्रकोप


विशेषज्ञ बताते हैं कि टिड्डियों को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि जहां इनका ब्रिगेड सेंटर है, वहीं पर गहरा गड्ढा खोदकर इन के अंडों को दबा दिया जाए ताकि ये आगे नहीं बढ़ पाए. ऐसा माना जाता है कि एक वयस्क मादा टिड्डी अपने 3 महीने के जीवन चक्र में 3 बार करीब 90 अंडे देती है, ऐसे में अगर यह अंडे नष्ट नहीं हुए तो प्रति हेक्टेयर में 4 से 8 करोड़ तक टिड्डियां प्रति वर्ग किलोमीटर में पैदा हो सकती हैं.


उल्लेखनीय है कि मानसून आने से पहले टिड्डी दल के अंडों को पूरी तरह से खत्म करना आवश्यक है वरना ये समस्या बड़ा रूप ले सकती है क्योंकि मानसून के बाद किसान खेतों में फसल बोना शुरू कर देता है.