नई दिल्लीः श्री हित राधा केलि कुंज आश्रम वृंदावन में प्रेमानंद जी महाराज के सानिध्य में कल 'हितोत्सव' बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया, जिसमें अद्भुत आनंद की वर्षा हुई. वंशी स्वरूप हितावतार रसिकाचार्य श्रीहितहरिवंश महाप्रभु के प्राकट्य महामहोत्सव पर श्रीहित प्रेमानन्द जी महाराज ने मंगलमयी बधाईओं का गान किया एवं श्रीहरिवंशमहाप्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि श्रीश्यामसुन्दर के करकमलों में विराजित वंशी, जिसने द्वापरांत में कृष्णावतार काल में ब्रजांगनाओं को महारस का आस्वादन कराया था. 


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वहीं वंशी ही श्रीराधा स्वामिनी की आज्ञा से कलिमल ग्रसित जीवों के शुष्क हृदय में महाप्रेमरस का प्रकाश करने हेतुकिंवा अत्यंत गोपनीय वृन्दावन नित्यविहार रस प्रकट करने के लिए आज इस मोहिनी एकादशी को रसिक शेखर श्रीहितहरिवंश महाप्रभु के रूप में अवतरित हुई.


महाप्रभुका जन्मतात्कालीन दिल्ली के बादशाह के राजगुरु पं. व्यास मिश्र की धर्मपत्नी श्रीमती तारा रानी के गर्भ से बैशाख शुक्ल एकादशी, ई. 1502 (वि.स.1559) को मथुरा से 12 कि॰मी॰ दूर आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित 'बाद' ग्राम में हुआ था (यद्यपि महाप्रभु के माता-पिता देवबंद, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश के मूल निवासी थे किन्तु वे उस समय ब्रजयात्रा पर आए हुए थे). 


राधावल्लभ संप्रदाय के संस्थापक महाप्रभु श्रीहितहरिवंशचंद्र जी सोलहवीं शताब्दी में आविर्भूत विभूतियों में से एक अनन्यतम विभूति थे. जिनके प्राकट्य महामहोत्सव को राधावल्लभ संप्रदाय में हितोत्सव के रूप में मनाने की प्राचीन परम्परा है. हितोत्सव मनाने के लिए बड़ी मात्रा में श्रद्धालु वृन्दावन में श्रीप्रेमानन्दजी महाराज के आश्रम पर पहुंचे और लाखों की संख्या में आए श्रद्धालुओं ने सुबह 2:30 बजे परिक्रमा मार्ग में प्रेमानन्द जी महाराज के दर्शन किये. इसके बाद राधा केलि कुंज में अद्भुत आनंद वर्षा हुई और खूब नाच-गान के साथ प्रियाप्रीतम के प्रेमरूपी बधाई बांटी गई.


प्रेमानंद जी महाराज, यह कहते हुए भावुक हो गए कि हमारे आचार्य ने,हम जैसे निर्बलों को, साधनहीनों को भी, गौर-श्याम जोड़ी प्रदान कर दी अर्थात् दम्पति श्रीश्यामा-श्याम रूपी सम्पति हम जैसे अनधिकारियों को भी दे दिया. महान उदार, करुणामय,प्रिया-प्रियतम की कृपा का साक्षात् स्वरूप श्रीहरिवंशचन्द्र जू का प्रादुर्भाव उत्सव हमारे लिए सब से बड़ा उत्सव है. ऐसे परम दयाल, रसिक चूड़ामणिश्रीहरिवंश महाप्रभु के चरणों में हमारा निवेदन है कि वो हम सबको  रसपुष्टता के साथ-साथ स्वप्रतिपादित सिद्धान्त मार्ग पर चलने की दृढ़ता प्रदान करें.


श्रीहरिवंश महाप्रभु की शिक्षायें –समस्त चराचर जगत् को अपने इष्ट का स्वरूप समझकर सब जीवों से निष्काम प्रीतिका व्यवहार करो. श्रीश्यामा-श्याम की लीला-स्थली श्रीधामवृन्दावन का अखंड वास या आश्रय स्वीकार करो. अपनी वाणी निरन्तर ‘राधा-राधा’ का रटन करते रहो एवं मन से उनका ध्यान करो. अपने शरीर को सदैव रसिकों के सत्संग में रखकर, मन को प्रेम रस में निमग्न करो तथा सारे संसार को काल कवलित जानकर इससे उदासीन हो जाओ.