एक नाकाम जनरल, गलवान घाटी और खूनी साजिश, जानिए इस हिंसा की असली मंशा
चीनी जनरल झाओ ज़ोंग को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का बेहद करीबी माना जाता है. इसे शी जिनपिंग की ``आंख और कान`` तक कहा जाता है. ये वही जनरल झाओ ज़ोंगकी हैं जो वियतनाम युद्ध में मिट्टी खा चुके हैं तो 2017 के डोकलाम विवाद में भी इन पर घड़ों पानी पड़ गया था.
नई दिल्लीः कई दशकों के बाद लद्दाख की चीन से सटी सीमा पर जो खूनी हिंसक झड़प हुई थी, उसे अब श्र दिन बीत चुकी हैं. घटना के पहले दिन से यह पूरा मामला जैसा दिखाया जा रहा था, वैसा नहीं लग रहा था. अब एक रिपोर्ट में इसकी तस्दीक भी हो गई है कि सीमा पर हुई यह झड़प न सिर्फ एक खूनी साजिश थी, बल्कि फरेब, झूठ और वहशीपने का पूरा पैकेज था.
पुख्ता हुआ चीन का झूठ
गलवान घाटी में हुए संघर्ष को लेकर अमेरिका की एक खुफिया रिपोर्ट सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों ने कम से कम 35 चीनी सैनिकों ने जवाबी कार्रवाई के दौरान मार गिराया था.
याद है, चीन ने दावा किया था कि भारत ने आक्रमण की शुरुआत की थी. बेशक उसने झूठ कहा था, और अब यह झूठ और भी पुख्ता हो गया है.
एक अमेरिकी रिपोर्ट से सामने आया सच
चीन की बदनीयत विस्तारवादी नीति से दुनिया वाकिफ है. ताइवान इसी वजह से बखूबी संघर्ष कर रहा है. गलवान घाटी में हुई हिंसा चीन की इसी बदनीयति का हिस्सा थी, जिसके बाद उसने प्रोपोगैंडा गढ़ना शुरू किया कि चीन तो शांतिप्रिय देश है. एक अमेरिकी रिपोर्ट ने इस झूठ को तार-तार करके रख दिया है.
जानिए इस खूनी सच के बारे में
खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक एक वरिष्ठ चीनी कमांडर ने भारत को सबक सिखाने के मकसद से भारतीय सैनिकों के खिलाफ हमला करने का आदेश दिया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक गलवान घाटी का असली खलनायक है चीनी आर्मी का वेस्टर्न थियेटर कमांड प्रमुख, जनरल झाओ ज़ोंगकी जिसने गलवान वैली के ऑपरेशन को मंज़ूरी दी थी.
कौन है चीन का ये क्रूर जनरल
चीनी जनरल झाओ ज़ोंग को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का बेहद करीबी माना जाता है. इसे शी जिनपिंग की ''आंख और कान'' तक कहा जाता है. ये वही जनरल झाओ ज़ोंगकी हैं जो वियतनाम युद्ध में मिट्टी खा चुके हैं तो 2017 के डोकलाम विवाद में भी इन पर घड़ों पानी पड़ गया था.
अब यह तीसरी बार है कि उन्हें गलवान में भी मुंह की खानी पड़ी है. इस तरह जनरल झाओ ने फिर दुनिया के सामने चीन की नाक कटा दी. जनरल झाओ ज़ोंगकी को घात लगाकर हमला करने की कला में निपुण माना जाता है.
यह थी वह योजना
चीन के इस क्रूर और महत्वाकांक्षी जनरल को लगा था कि भारत पर छल से हमला करके उसकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया जाए और बातचीत की बारी आने तक भारत को कूटनीतिक तौर पर इतना हतोत्साहित कर दिया जाए कि वो चीन की शर्तों को मान ले, लेकिन जनरल का ये दांव उल्टा पड़ गया. चीन का छल बैकफायर कर गया
रिपोर्ट की एनालिसिस करने पर तीन बातें साफ हो जाती हैं
1. चीन का ये दावा झूठा है कि ये झड़प LAC पर तनाव के बढ़ने का नतीजा थी
2. दरअसल चीन, भारत को अमेरिका से बढ़ते सहयोग के लिए सज़ा देने की कोशिश कर रहा था क्योंकि यूएस कोरोनावायरस को लेकर चीन के ख़िलाफ दंडात्मक कदम उठा रहा है और दुनिया को भी उसके ख़िलाफ लामबंद कर रहा है.
3. साफ है कि ऐसे समय पर चीन भारत, अमेरिका समेत दुनिया को अपनी ताकत दिखाना चाहता था
ये है असली कहानी
अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक 15 जून को एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी और दो गैर-कमीशन्ड अधिकारी बिना हथियारों के उस मीटिंग प्वाइंट पहुंचे जहां उन्हें चीनी सैनिकों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करनी थी. लेकिन वहां पहले से ही कील लगी रॉड्स और बल्लों से लैस दर्जनों चीनी सैनिकों मौजूद थे जिन्होंने उन पर आक्रमण कर दिया.
सोची-समझी थी साजिश
इसके बाद पीछे से कुछ और भारतीय सैनिक भी आगे बढ़े और लाठी-डंडों और पत्थरों के साथ ख़ूनी संघर्ष छिड़ गया जिसमें 20 भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए और भारतीय जांबाज़ों ने 35-40 चीनी सैनिक को मौत के घाट उतार दिया.
साफ है कि भारतीय सैनिक बातचीत के लिए समझौते के अनुरूप ही बिना हथियार निकले थे लेकिन ये चीन की सोची-समझ साज़िश थी जिसे उसने अंजाम दिया और फिर झूठ पर झूठ उगलना शुरु कर दिया.
मृत चीनी सैनिकों का गुप-चुप अंतिम संस्कार
यूएसए टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी जनरल झाओ ज़ोंगकी ने इस पूरे ऑपरेशन की कमान संभाली थी और इसमें मारे गए चीनी सैनिकों के लिए एक गुपचुप मेमोरियल सर्विस आयोजित की गई और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया बिना किसी को कानोंकान भनक लगे लेकिन चीनी सोशल मीडिया पर खुसुर-पुसुर शुरु हो गई थी.
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चीन दम दिखाना चाहता था, लेकिन कमजोरी सामने आ गई
इसके बाद चीन में सेंसर्स भी एक्टिवेट हो गए और सोशल मीडिया पर उठ रहे सवालों को दबाया जाने लगा. उन सोशल मीडिया एकाउंट्स पर कार्रवाई शुरु हो गई जिन्होंने चीनी सैनिकों पर पोस्ट डालते समय "हार" और "अपमान" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया.
साफ था कि चीन चाहता था कि दुनिया को उसका झूठा दम दिखे, ना कि उसकी कमज़ोरी. चीन की मंशा थी कि दुनिया को पता ही ना चले कि उसने जो धोखे से भारतीय सैनिकों पर हमला किया था उसमें उसे नाकामी हाथ लगी और भारत के वीर सैनिकों ने उसके जवानों के छल के भी छक्के छुड़ा दिए.
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