नई दिल्ली.   इस माह डब्ल्यूएचओ का एक सत्र शुरू होने वाला है जो सिर्फ दस दिनों के लिए है. इस स्थिति में कोरोना वायरस को लेकर चीन कि अ-पारदर्शिता सवालों के घेरे में है और उसके खिलाफ जांच की आवाजें पहले से ज्यादा बुलंद हो रही हैं. अब इस विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस सत्र  के पूर्व ही कई देश चीन के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं. 


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''चीन ने दुनिया को सचेत नहीं किया''


 चीन के वुहान शहर से चल कर दुनिया पहुंचा कोविड-19 सारी दुनिया पर महामारी बन कर छाया हुआ है. पिछले चार महीनों में लाखों लोगों की जान इस संक्रमण से जा चुकी है. ऐसी हालत में कई कोरोना पीड़ित देशों का चीन पर आरोप है कि  उसने दुनिया को वायरस के बारे में पहले से सावधान नहीं किया इसलिए दुनिया में इतनी जानें गई हैं और दुनिया में इतने बड़े स्तर पर संक्रमण फैला है.


विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी लगे हैं आरोप 


चीन की बदनीयती पर किसी को अब कोई शक नहीं रहा है. चीन अपने ऊपर खड़े किये गए किसी भी सवाल का सही जवाब भी नहीं डे सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी सवाल पूछे गए हैं और उस पर चीन का पक्ष लेने के आरोप लगे हैं.  चीन और डब्ल्यूएचओ के निदेशक टेड्रेस अधनोम ग्रेब्रेसियस पर सबसे ज्यादा हमला अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो द्वारा किया गया है. 


यूरोपीय संघ भी कुपित है चीन पर


अमेरिका ही सिर्फ चीन और डब्ल्यूएचओ से नाराज नहीं है बल्कि यूरोपीय यूनियन तो उससे भी कहीं अधिक चीन और डब्ल्यूएचओ से खफा है. हाल ही में यूरोपीय संघ ने साफ़ तौर पर कह दिया है कि वह डब्ल्यूएचओ की इस माह की सभा में एक प्रस्ताव रखने जा रही है जिसके माध्यम से डब्ल्यूएचओ के प्रदर्शन सहित कोरोना वायरस महामारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की समयानुकूल समीक्षा की जा सके. अब संघ को अमेरिका ने सुझाव दिया है कि इस प्रस्ताव पर और भी कई देशों के साथ विमर्श के बाद तैयार करना चाहिए जिससे इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था की वार्षिक बैठक में चीन पर दबाव कायम किया जा सके.


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