नई दिल्ली.  मिडिल ईस्ट के लिहाज से ये एक अच्छी खबर है. दशकों से अशांत मिडिल ईस्ट में शान्ति लाना लगभग वैसी ही बात है जैसी पाकिस्तान और भारत के संबंधों का सुधर जाना. भारत अपने शांतिपूर्ण अस्तित्व पर चाहे जितना भी कायम रहे, पकिस्तान अशांति फैलाने का कोई मौक़ा नहीं चूकता. ठीक इसी प्रकार अगर ट्रम्प फॉर्मूला कामयाब हो जाए तो मिडिल ईस्ट में शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है लेकिन ऐस होना लगभग नामुमकिन है. इसकी एक वजह तो ये भी है कि खुद इस फॉर्मूले का जनक अमेरिका इस क्षेत्र में वास्तविक शान्ति नहीं चाहता क्योंकि उसके व्यावसायिक और वैश्विक हित मिडिल ईस्ट की अशांति में ही छुपे हुए हैं.


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ट्रम्प की घोषणा - मिडिल ईस्ट में शान्ति बहाल करेंगे !


डोनाल्ड ट्रम्प की घोषणा तो यही बताती है कि अमेरिका मध्य पूर्व में शान्ति चाहता है. पर इस चाहत में कितनी शिद्द्त है और कितनी औपचारिकता, ये बहुत जल्द सामने आ जाएगा. अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मिडिल ईस्ट में शांति बहाल करने के लिए  के लिए अपनी महात्वाकांक्षी योजना की घोषणा कर दी है. ट्रंप ने अपने वक्तव्य में कहा है कि उनकी योजना फिलिस्तीन और इज़राइल के बीच एक व्यावहारिक समाधान है जिसमें किसी तरह की दिक्कत पेश नहीं आएगी.


''दोनों देशों का नुकसान नहीं होने देंगे''


ट्रम्प ने कहा कि उनकी शान्ति-योजना के अंतर्गत दोनों देशों के हितों को ध्यान में रखा जाएगा. फिलिस्तीन और इज़राइल के लोगों को उनके घर से उजाड़ा नहीं जाएगा. लेकिन जो बात ट्रम्प ने आगे कही वह फिलीस्तीन के नज़रिये से बहुत अहम है. ट्रम्प ने बयान में यह जोड़ कर सबको चौंका दिया कि अब यह फिलीस्तीनियों के लिए अंतिम अवसर होगा. वे चाहें तो इस फॉर्मूले पर अमल करके शान्ति ला सकते हैं वरना इसके बाद कुछ नहीं हो सकेगा.  



घोषणा की व्हाइट हाउस में 


अमरीकी राष्ट्रपति की शान्ति बहाली की इस घोषणा में ध्यान देने योग्य बात ये है कि उन्होंने ये घोषणा इज़राइल या फिलीस्तीन जा कर नहीं की, बल्कि अमरीका के वाशिंगटन स्थित अपने व्हाइट हाउस से ही कर डाली और इस घोषणा के दौरान उनके साथ खड़े थे इज़राइली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू. 


दूसरी तरफ फिलीस्तीन ने ठुकराई यह पहल 


एक तरफ दुनिया के सामने शान्ति के अग्रदूत बनने की दिशा में कदम बढ़ाते नज़र आये अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तो दूसरी तरफ फिलीस्तीन ने उनकी शान्ति-योजना को साफ़-साफ़ नकार दिया. वजह बिलकुल साफ़ है, एक तो फिलीस्तीन को पता है कि अमरीका के लिए सबसे पहले उसका मित्र राष्ट्र इज़राइल है और उसके बाद ही दुनिया का कोई दूसरा देश अमरीका के लिए महत्वपूर्ण है. दूसरी बात ये भी थी कि यह शान्ति-योजना फिलीस्तीन की जानकारी में इसकी घोषणा के पूर्व ही आ चुकी थी जिसके विश्लेषण के बाद उसे इसमें किसी तरह की दिलचस्पी नज़र नहीं आई. 


ट्रम्प का पीस-फॉर्मूला 


डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पीस-फॉर्मूले को इज़राइल की आकांक्षा का व्यावहारिक रूप बताते हुए प्रस्तुत किया. ट्रम्प ने कहा कि इज़राइल उस प्रस्तावित नक्शे को जारी कर रहा है जिसमें शान्ति के लिए क्षेत्रीय समझौते का हुलिया बयान किया गया है. इसके अंतर्गत पूर्वी जेरुसलम में फिलीस्तीन को राजधानी बनाने की जगह दी जायेगी जहां पर अमरीका को अपना दूतावास खोलने का अधिकार होगा. फिलीस्तीन के नज़रिये से नागवार गुजरने वाली दूसरी ज्यादा बड़ी बात इस पीस-फॉर्मूले में यह सामने आई कि इज़राइल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक के क्षेत्रफल में किसी तरह की कटौती नहीं की जायेगी, वह वैसा का वैसा ही रहेगा. 


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