नई दिल्ली: Japanese Economy: भारत अगले साल दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनोमी बन सकता है. यह IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) का अनुमान है. फिलहाल जापान दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था है. जल्द ही भारत जापान से आगे निकल जाएगा. यह जापान के लिए तीसरा झटका होगा, इससे पहले चीन और जर्मनी भी जापान से आगे निकल चुके हैं. एक वक्त पर जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हुआ करता था. कहा जाने लगा था कि जापान अमेरिका से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. लेकिन बीते कुछ सालों से जापान की उल्टी गिनती शुरू हो गई और अर्थव्यवथा लगातार लुढ़कती जा रही है. आइए, जानते हैं कि जापान के बुरे दिन क्यों चल रहे हैं?


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क्या कहता है IMF का आकलन
IMF ने कहा है कि 2025 में डॉलर टर्म में नॉमिनल GDP के आधार पर भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. भारत की इकॉनमी 4.34 ट्रिलियन डॉलर पहुंच सकती है. जबकि फिलहाल चौथे स्थान पर कब्जा रखने वाले देश जापान की इकॉनमी 4.31 ट्रिलियन डॉलर ही रहने का अनुमान है.


2010 तक था दूसरी सबसे बड़ी इकॉनोमी
आज से करीब 30 साल पहले जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनोमी बन गया था. 1993 में जापान की इकॉनोमी 4.54 ट्रिलियन डॉलर हो गई थी. तब भारत की अर्थव्यवस्था केवल 280 अरब डॉलर हुआ करती थी जापान 2010 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनोमी रहा. लेकिन बाद में गिरावट आना शुरू हुई, जो अब भी जारी है.


ये हैं संभावित कारण
टोक्यो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर तेशुजी ओकाजाकी ने पहले ही अपने आकलन में कह दिया था कि भारत जापान से इकॉनोमी के मामले में मजबूत हो सकता है. आइए, जानते हैं जापान की कमजोर होती अर्थव्यवस्था के पीछे के संभावित कारण क्या हैं?


1. रोबोट्स का इस्तेमाल: जापान में टेक्नोलॉजी तेजी से बढ़ी, इसने ह्युमन कैपिटल (कामगार वर्ग) को रिप्लेस कर दिया है. ज्यादातर कंपनियों और फक्ट्रीज में रोबोट्स ही काम करते हैं. ये सस्ते जरूर हैं, लेकिन इनमें पर्याप्त विकास नहीं हुआ, इसलिए इतने काबिल नहीं हैं कि लेबर की कमी पूरी कर सकें. 


2. ऑटो सेक्टर कमजोर पड़ा: प्रोफेसर तेशुजी ओकाजाकी कहते हैं कि जापान अपने ताकतवर ऑटो सेक्टर के लिए जाना जाता था. लेकिन जैसे ही इलेक्ट्रिक व्हीकल का चलन बढ़ा, तो जापान का ऑटो सेक्टर कमजोर पड़ता गया.


3. येन करेंसी कमजोर हुई: जापान में हाल के सालों में येन करेंसी में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. डॉलर के मुकाबले येन काफी कमजोर हुआ है. बीते 50 साल में येन अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर है.  बैंक ऑफ जापान ने स्पेंडिंग और इन्वेस्टमेंट को बढ़ाने के लिए 2016 में निगेटिव इंटरेस्ट रेट शुरू किया. इससे येन और कमजोर हुआ.  


4. कामगार वर्ग की कमी: अब जापान चाहे तो भी फिर से लेबर से काम नहीं ले सकता. क्योंकि जापान की बड़ी आबादी बूढ़ी है. नौजवानों की कमी है. यहां पर विदेशी कामगारों के लिए सख्त नियम हैं. इसलिए वे भी यहां आसानी से नहीं पहुंच पाते. 


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