नई दिल्ली: म्यांमार के तख्तापलट पर दुनिया के कई देशों ने चिंता जाहिर की है. ऐसे में भारत ने भी इस सैन्य तख्तापलट और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) की गिरफ्तारी पर अपनी प्रतिक्रिया जारी की है. भारत का कहना है कि म्यांमार में लोकतंत्र को ही बरकरार रहना चाहिए.


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भारत (India) के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वो म्यांमार के हालात का करीब से निरीक्षण कर रहें है. म्यांमार में सेना द्वारा सत्ता का जबरन कब्जा करना और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सू की और उनकी पार्टी National League for Democracy (NLD) के कुछ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भारत म्यांमार पर कड़ी निगरानी बनाए हुए है.


आखिर क्या है पूरा मसला?  


म्यांमार (Myanmar) सैन्य टेलीविजन के मुताबिक सेना ने एक साल के लिए देश पर नियंत्रण कर लिया है. सेना के कमांडर इन चीफ मिन आंग लाइंग के हाथों में देश की बागडोर आ गई है. इसके साथ ही उन्होंने म्यांमार में राष्ट्रीय emergency का ऐलान कर दिया है. सेना के अनुसार पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में वोटर लिस्ट में बड़ी हेरा-फेरी हुई है. बता दें कि ये चुनाव NDL 83% सीट के साथ बहुत सरलता से जीत गई थी. वहीं सेना की समर्थक पार्टी Union Solidarity and Development Party (USDP) को मात्र 33 सीट में ही सिमट कर रहना पड़ा. इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि "म्यांमार में हुई हरकतें काफी चिंताजनक हैं." साथ ही विदेश मंत्रालय ने कहा कि "भारत हमेशा म्यांमार में लोकतंत्र के साथ रहेगा. हमारा मानना है कि कानून का शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाना चाहिए".



पिछले साल अक्टूबर में भारत के दो प्रमुख अधिकारी म्यांमार गए थे. ये दोनो थे विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला (Harsh Shringla) और भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवाना (MM Naravane). इस मुलाकात से ये साफ था कि म्यांमार की सेना के साथ भारत के संबंध बड़े जटिल होने वाले हैं.


कौन हैं मिन आंग लाइंग?


64 साल के जनरल मिन आंग लाइंग (Min Aung Hlaing) म्यांमार के प्रमुख कमांडर और फिलहाल म्यांमार के सर्वोच्च नेता हैं. 30 मार्च 2011 को उन्हे सेना प्रमुख बनाया गया था. इस दौरान म्यांमार लोकतंत्र की ओर धीरे धीरे आगे बढ़ा रहा था. सेना में आने के बाद मिन ने ज्यादातर समय म्यांमार की पूर्वी सीमा पर विद्रोहियों से लड़ाई करने में बिताया. ये इलाका म्यांमार के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए जाना जाता है.



इन्होंने म्यांमार में तख्तापलट में सबसे अहम किरदार निभाया है. इन्होंने साल 1972-74 तक यंगून यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की. जब लाइंग कानून की पढ़ाई कर रहे थे, तब म्यांमार में राजनीति में सुधार की लड़ाई छिड़ी हुई थी.


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क्यों जरूरी है अच्छे संबंध?  


भले ही भारत म्यांमार में लोकतंत्र का साथ दे रहा हो, लेकिन भारत ने उत्तर-पूर्वी राज्यों की सुरक्षा संबंधी कारणों की वजह से सेना के साथ निकट संपर्क बरकरार रखे हैं. पिछले दशक से उत्तर-पूर्वी राज्यों के कई आतंकवादी समूहों का बेस म्यांमार में हैं. ऐसे में भारतीय सेना ने म्यांमार की सेना के सहयोग के साथ कई Joint Operation का संचालन किया है.



भारत का ये भी मानना है कि म्यांमार की सेना के साथ अच्छे संबंध हमारे पड़ोसी देशों पर चीन के प्रभाव को नियंत्रण में रखेगा. इसी वजह से भारत ने म्यांमार के रोहिंग्या के प्रति रवैये की खुल कर आलोचना नहीं की.


देश की सुरक्षा के लिए म्यांमार की जरूरत?


2002-2005 तक भारत के म्यांमार ambassador रहे राजीव भाटिया (Rajeev Bhatia) ने कहा कि म्यांमार के तख्तापलट का कारण है उनके अंदरूनी राजनीति, विचारधारा और व्यक्तित्व कलह. इसपर भारत की प्रतिक्रिया भूत से सीखे गए पाठों पर ही निर्धारित होगी. उन्होंने कहा "सबसे पहले तो लोकतंत्र को एक झटका लगा है. लेकिन, फिर देश की सुरक्षा और रणनीतिक हित को मद्दे नजर रखते हुए भारत के सिद्धांतों और हितों को बैलेंस किया जाएगा. लोकतंत्र (Democracy) में विश्वास रख के हम म्यांमार के सत्ताधारियों के साथ समझौता करने का तरीका निकालेंगे."



अमेरिका (America) समेत कई पश्चिमी देशों ने म्यांमार में प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है. लेकिन भारत म्यांमार के साथ संबंध ना बिगाड़ने के लिए ऐसा कोई निर्णय नहीं लेगा. सबसे बड़ी बात यहां ये है कि अगर ये मसला UN में उठाता है तो इसपर भारत और चीन दोनों का मत एक ही होगा


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