73 साल से अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है इजरायल, सारे अरब देश मिलकर भी नहीं कर पाए बाल बांका
इजरायल के आजादी के 24 घंटे के भीतर ही अरब देशों ने उसपर बोला था हमला, लेकिन इजरायल ने चटाई थी धूल
नई दिल्ली, आकाश सिंह: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रही खूनी जंग ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है. ये लड़ाई भले ही दुनिया के एक कोने में लड़ी जा रही हो लेकिन नफरत के इस धमाके की आवाज हर किसी के कानों में गूंज रही है. इस लड़ाई से शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा जो अछूता हो. इसके कई कारण है.
लेकिन उन तमाम कारणों में जो सबसे बड़ी वजह है वह ये कि फिलिस्तीन और इजरायल का संघर्ष नया नहीं है. इस सदियों पुरानी अदावत में हजारों जानें जा चुकी हैं और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं. लेकिन हकीकत ये है कि अबतक इस लड़ाई का कोई परिणाम सामने नहीं आया है. न ही आने की उम्मीद दिखाई देती है.
इन देशों के अस्तित्व में आने से कहीं पहले से लड़ाई लड़ी जा रही है. हां इन सबके जो हुआ वो ये कि इजरायल मजबूत होता गया है. दुनिया का एकमात्र यहूदी देश जिसने लंबे समय तक दुनिया के कई कोनों में उपेक्षा, शोषण सहा आज वो बहुत मजबूत है.
हालात ये हैं कि विश्व के मानचित्र में नजर पर खूब जोर डालने पर मिलने वाला छोटा सा देश इजरायल इतना शक्तिशाली हो चुका है कि उसे हराने के लिए अरब देशों समेत कई शक्तियां लगी हैं लेकिन उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रही हैं. लेकिन इजरायल की कहानी पर आने से पहले जरा समझिए यहूदियों के शोषण और इजरायल के उद्भव की कहानी का सार.
ईशा मसीह से पहले
इजरायल के राजा सुलैमान ने यहूदी लोगों के लिए यरूशलेम में एक मंदिर बनवाया था. लेकिन इजिप्ट और रोमन साम्राज्य के लोगों ने इस मंदिर पर आक्रमण किया. जिसका असर ये हुआ कि यहूदी लोग भारी संख्या में यहां से भाग गए. इसके बाद जब यरूशलेम पर मुस्लिमों ने कब्जा जमाया तो भी कई दशकों तक यहूदियों का पलायन जारी रहा. इसके बाद 19वीं शताब्दी में एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें यहूदियों से अपील की गई कि वे फिलिस्तीन और इजरायल में फिर से आएं.
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हिटलर ने सताया तो फिर इजरायल पहुंचे यहूदी
पहले विश्वयुद्ध (1914-19) में जर्मनी को हार का सामना करना पड़ा था. इस हार के लिए हिटलर ने यहूदियों को जिम्मेदार माना और अपने देश से यहूदियों को भगाना शुरू किया. यहूदियों पर हिटलर के जुल्म की कहानी किसी से छिपी नहीं है. इसी बीच यहूदी फिर से इजरायल की ओर आना शुरू हुए. फिर दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोग से 1948 में इजरायल नामक देश अस्तित्व में आया.
अब शुरू होती है इजरायल और फिलिस्तीन की असली लड़ाई
इजरायल ने जैसे ही अपनी आजादी का ऐलान किया, इसके महज चौबीस घंटे के अंदर ही अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने उस पर हमला कर दिया. भारत के मणिपुर राज्य से भी छोटे इजरायल के लिए ये लड़ाई कठिन जरूर थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. करीब अगले एक साल तक ये लड़ाई चलती रही. नतीजा ये हुआ कि अरब देशों की सेनाओं की हार हुई. इस लड़ाई में करीब 7 लाख फिलिस्तीनियों को अपने घर छोड़ना पड़ा और वे शरणार्थी बन गए.
युद्द होते रहे लेकिन मजबूत होता रहा इजरायल
देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर वाली लाइन इजरायल पर बिल्कुल सटीक बैठती है. इजरायल छोटा भी था और दुश्मनों से घिरा हुआ भी. लेकिन हौसले उसकी ताकत थे. नतीजा रहा कि ये देश धीरे-धीरे शक्तिशाली होता गया.
अकेले भी लड़े, इकट्ठे होकर भी पर इजरायल का कुछ न बिगाड़ सके
अबतक की कहानी ऐसी रही है कि 1948 के बाद से लेकर अबतक 1956, 64, 67, 73, 78, 87, 91, 93,94, 95, 2000, 2002, 2006, 2008,14,15, 17, 18 और 2021 इन तमाम सालों में कभी फिलिस्तीन ने अकेले तो कभी फिलिस्तीन ने समूह बनाकर तो कभी अरब देशों ने इकट्ठा होकर इजरायल को हराने की कोशिश की लेकिन उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके.
उल्टा इजरायल और मजबूत होता गया. अभी भी जब इजरायल और फिलिस्तीन में जंग चल रही है तो 57 सदस्यीय इस्लामिक देशों के संगठन आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कार्पोरेशन ने इजरायल की आलोचना की है.
इजरायल के ताकत की दुनिया कायल
इजरायल जब दुनिया के नक्शे पर आया था तब लोगों का कहना था कि यह देश ज्यादा दिनों तक टिकने वाला नहीं है. इसके कई कारण थे. क्योंकि न तो इस देश के पास ज्यादा खनिज संपदा थी और न ही उर्वरक मिट्टी. लेकिन इस देश ने हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया. लेकिन आज वो हाईटेक सुपरपॉवर है.
सबसे ज्यादा आधुनिक हथियार बेचता है. दुनिया की दवाइयों के बहुत से पेटेंट उसके पास हैं. वो हर तरह की रिसर्च में बहुत आगे है वो अपनी जीडीपी का 4.5 फीसदी खर्च शोध पर करता है. उसने अपने देश में हर सेक्टर में ऐसा सिस्टम तैयार किया, जिसे मिसाल माना जाता है.
महिला हो या पुरुष सेना में सेवा जरूरी
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का जिक्र होते ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते हैं. इजरायल में हर नागरिक के लिए सेना में सेवा देना ज़रूरी है. चाहे महिला हो या पुरुष-उसे सेना में सेवा देनी ही होती है. इजरायल के तकरीबन सारे ही नेता और प्रधानमंत्री सेना में काम करके ही सत्ता में आए.
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