नई दिल्ली.  चीन के राजदूत का इजराइल में मृत पाया जाना निस्संदेह एक संदेहास्पद घटना है. इस घटना का आज के उस दौर में होना, जब चीन पर दुनिया की उंगलियां उठी हुई हैं, एक बहुत अच्छा लक्षण नहीं है. सबसे बड़ी बात और सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्यों ये घटना अमेरिका में नहीं हुई? अमेरिका में ऐसी ही एक संदेहास्पद मौत अवश्य हुई है किन्तु उसे राजनैतिक हत्या नहीं माना गया बल्कि वो सीधे तौर पर एक कोरोना-हत्या ही कही जा सकती है. लेकिन मोसाद और नेतान्याहू के देश में चीन के सर्वोच्च प्रतिनिधि की संदेहास्पद मौत कई तरह के सवालों को जन्म दे रही है.  


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अधिकतम बढ़ सकता है वैश्विक तनाव 


इस संदेहास्पद मृत्यु के बाद जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस घटना को लेकर सन्नाटा है वो रहस्यपूर्ण है. इज़राइल ने कोई सफाई नहीं दी, न ही चीन ने कोई सवाल-जवाब किया - ये बात भी अजीब सी है. इज़राइल, चीन और अमेरिका की खामोशी में भविष्य का शोर न छुपा हो, बस यही दुआ की जा सकती है क्योंकि ये बात बढ़ भी सकती है और केवल बढ़ ही नहीं सकती है, अपितु तीसरे विश्व युद्ध को न्योंता भी दे सकती है. हालांकि आज की तारीख में दुनिया का कोई देश युद्ध नहीं चाहेगा.  


क्यों इज़राइल में ही हुई ये संदेहास्पद मृत्यु?


इज़राइल एक ऐसा देश है जो समझौतेवादी देश नहीं है और विश्व के राजनीतिक मानचित्र पर इसकी एक बहादुर और निर्भीक राष्ट्र की छवि है. राष्ट्रवाद, वीरता और निर्भीकता के अतिरिक्त एक और गुण इस राष्ट्र को विशेष बनाता है और वो है इसका मित्र-वादी चरित्र. इज़राइल सबसे मित्रता नहीं करता लेकिन जिससे करता है, उससे मित्रता निभाना उसे अच्छी तरह आता है. ऐसे में एक बड़ा प्रश्न जो पूछा नहीं जा रहा है, वो ये है कि (चीनी प्रतिनिधि की) ये संदेहास्पद मृत्यु इज़राइल में ही क्यों हुई ?


 



दो दिन पहले ही की थी पोम्पिओ की आलोचना  


बताया जाता है कि मृत पाये गये चीनी राजदूत डु वेई ने दो दिन पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की उन टिप्पणियों की आलोचना की थी जिनमें इजराइल में चीन के निवेश की उन्होंने निन्दा की थी और चीन के ऊपर कोरोना वायरस की जानकारियां छुपाने का आरोप लगाया था. यद्यपि ये बात बहुत महत्वपूर्ण इसलिए नहीं है क्योंकि इससे इस बात का संकेत नहीं मिलता कि किसी की आलोचना किसी आलोचना करने वाले की 'मौत' की वजह बन जाए. आलोचना एक सामान्य राजनीतिक गतिविधि है किन्तु आलोचना की इतनी बड़ी प्रतिक्रिया होना एक सामान्य राजनैतिक घटना नहीं है. परंतु इस आलोचना के भीतर या इसके साथ या आगे-पीछे अवश्य ही कोई ऐसी बात हो सकती है जो सामने नहीं आई है और उसका इस संदेहास्पद मृत्यु से कोई लेना-देना भी हो सकता है.


जगजाहिर है अमेरिका-इज़राइल मैत्री 


चीन उन सज्जन राष्ट्रों में नहीं है जो सबका विश्वास करके चलते हैं और अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव बनाये रखने के लिए जाने जाते हैं. इसलिए साजिशाना सोच वाले चीन को अमेरिका पर संदेह न हो, इसका तो प्रश्न ही नहीं उठता. उसे संदेह नहीं बल्कि विश्वास भी हो सकता है कि अमेरिका के कहने पर इज़राइल ने काण्ड  कर दिया है क्योंकि जगजाहिर है ये कि बरसों पुरानी अमेरिका-इज़राइल मैत्री बेदाग भी है और अटल भी.



 


कहीं संदेहास्पद मौत का जवाब ऐसा ही न हो  


इज़राइल में हुई अपने प्रतिनिधि की संदेहास्पद मृत्यु पर चीनी खामोशी कहीं किसी साजिश का ताना-बाना बुनने में तो नहीं लगी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अब एक सीधे सज्जन राष्ट्र की तरह सवाल-जवाब करने की बजाये जैसे को तैसा की कार्रवाई की तैयारी चल रही हो चीन में. यदि ऐसा हुआ तो ऐसी ही घटना फिर देखने में आ सकती है जो इज़राइल और / या अमेरिका को चौंका सकती है. 


मोसाद पर लगेगा सीधा आरोप 


यह सर्वविदित तथ्य है कि मोसाद इज़राइल की वो घातक गुप्तचर एजेन्सी है जो शोर नहीं करती लेकिन निशाना पक्का लगाती है. मोसाद के लिए किसी भी देश में अपने दुश्मन को उड़ा देना बहुत दुष्कर कार्य नहीं है. ऐसे में इज़राइल में ही देश के 'शत्रु' को यमलोक पहुंचाना उसके लिए कोई बड़ा काम वैसे भी नहीं है. किन्तु प्रश्न यहां ये भी है कि मोसाद ऐसा क्यों करेगी, जबकि उसे पता है कि संदेह उस पर ही आना है? 



चीन का संदेह इसे सीधी चुनौती मान सकता है


ऐसा भी हो सकता है कि इस संदेहास्पद मृत्यु से कोई बड़ा राज़ जुड़ा हुआ हो जिसके एक छोर पर डु वेई हो. इज़राइल में डु वेई ने जब माइक पोम्पिओ की आलोचना की थी तो चीन के इजराइल में निवेश वाली टिप्पणी या चीन की कोरोना पर जानकारी छुपाने के आरोप वाली टिप्पणी - इन दोनों में ही इतना दम नज़र नहीं आता कि आलोचना करने को वाले को इतना बड़ा दण्ड दे दिया जाये. यदि कोई राज पर्दे के पीछे छुपे होने से बेनकाब नहीं हुआ है तो साफ  तौर पर चीन को यह संदेह भी हो सकता है कि यह संदेहास्पद मृत्यु नहीं है, और इस घटना को अन्जाम देने के लिये मोसाद को सक्रिय किया गया है. ऐसी गलतफहमी की हालत में तब इसे चीन अपने लिये एक चुनौती मान सकता है.  


फरवरी में क्यों नियुक्त किया था इज़राइल में ?


एक बात आसानी से गले नहीं उतर रही है कि डु वेई फरवरी तक यूक्रेन में चीन का राजदूत था. जनवरी में कोरोना ने चीन में उत्पात मचाना शुरू कर दिया था. ऐसे में अगले माह फरवरी में जबकि चीन में इस महामारी ने हड़कंप मचा दिया था, तब कोरोना से ध्यान हटा कर डु वेई को इज़राइल भेज देना क्या साबित करता है? क्या डु वेई को इज़राइल में किसी मिशन पर भेजा गया था और तीन माह में ही इसकी भनक मोसाद को लग गई थी?



 


डु वेई की पत्नी और बेटा कहां हैं?


इस संदेहास्पद मृत्यु पर इज़राइल की पुलिस ने अभी इतना ही बताया कि मृतक डु वेई की मृत्यु के कारण स्पष्ट नहीं हैं और पुलिस अपनी जांच में लगी हुई है. अहम बात जो इज़राइल पुलिस ने कही वो ये थी कि डु वेई की पत्नी और उनका बेटा दोनों ही घर पर नहीं थे. मगर इससे जुड़ी दूसरी बात न इज़राइल पुलिस ने कही है न चीन के द्वारा इस पर कुछ कहा गया है कि मृतक चीनी राजदूत की पत्नी और पुत्र कहां हैं? क्या वे तेल अवीव में डु वेई के साथ नहीं रहते थे? यदि वे तेल अवीव में डु वेई के साथ नहीं रहते थे तो इसका मतलब ये भी हो सकता है कि डु वेई को पता था कि परिवार को साथ रखना परिवार के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है इसलिए उनकी पत्नी और बेटा उनसे दूर चीन में ही थे. तब यह बात काफी हद तक साफ़ हो जाती है कि अचानक इज़राइल भेजे गए डु वेई किसी ख़ास मिशन पर थे जो अभी तक पर्दे के पीछे है.    


किसी तीसरे पक्ष की हरकत भी हो सकती है?


यदि यह मृत्यु संदेहास्पद नहीं है तो ये आशंका भी सही हो सकती है कि  विवाद पैदा करने की दृष्टि से किसी तीसरे पक्ष ने इस काम को अंजाम दिया हो जो घर बैठ कर खिड़की से पड़ौसियों की लड़ाई के मज़े लेना चाहता हो. यद्यपि इज़राइल में किसी तीसरे पक्ष के लिए ऐसा करना आसान नहीं है क्योंकि इज़राइल की राष्ट्रीय सुरक्षा मोसाद सम्हालती है. किन्तु इसकी आशंका इसलिए भी हो सकती है कि कोई भी व्यक्ति अपने घर पर बुला कर अपने मेहमान की जान नहीं लेगा क्योंकि तब दुनिया को सफाई देने के लिए उसके पास बहुत कुछ नहीं बचता.



 


संदेहास्पद मृत्यु के दिन ही शपथग्रहण हुआ है नेतान्याहू का 


एक बात ये सबसे अहम है जिस पर चीनी दिमाग जरूर अटक गया होगा कि ये संदेहास्पद मृत्यु 17 मई को इज़राइल की राजधानी तेल अवीव में ठीक उसी दिन हुई है जिस दिन इसी शहर में दूसरी तरफ इज़राइल के सर्वोच्च नेता बेंजामिन नेतान्याहू अपने शपथग्रहण कार्यक्रम में व्यस्त थे. बाहर से देखने वालों के लिए संदेह का ये कारण बहुत महत्वपूर्ण है और इस तरह के संदेह करने वालों के लिये यह मान लेना मुश्किल नहीं होगा कि इस घटना के लिये यही दिन जानबूझ कर चुना गया है ताकि ये दिखाया जा सके कि राष्ट्र के सर्वोच्च नेता तो व्यस्त थे इसलिए इस घटना से उनका कोई लेना-देना कैसे हो सकता है.   


चीन के पास हो सकता है इस संदेहास्पद मृत्यु  का सुराग 


इसकी भी पर्याप्त संभावना है कि डु वेई को आभास हो गया होगा कि उस पर हमला हो सकता है और उसकी जान पर संकट मंडरा रहा है. ऐसी हालत में उसने चीन से सम्पर्क भी किया होगा और इस सिलसिले में तब चीन में अपने आकाओं से उसकी बात भी हुई होगी. डु वेई द्वारा चीन को दिए गए अंतिम और आपातकालिक  संदेश में इस संदेहास्पद मृत्यु के बहुत से सुराग छुपे हो सकते हैं. यदि ऐसा हुआ है अर्थात डु वेई ने चीन से अपने ऊपर होने वाले हमले की आशंका से जुड़ी कोई जानकारी साझा की है, तो बिलकुल साफ़ है कि चीन की चुप्पी क्या कहती है. इस संदेह में ही वो सब कुछ छुपा है जिसे चीन या तो कभी नहीं बताएगा क्योंकि वह उसके खिलाफ ही जा सकता है या फिर ये भी हो सकता है कि चीन इस संदेहास्पद मृत्यु को हत्या करार दे कर इसका प्रतिशोध लेने के बाद उसे सार्वजनिक करना चाहे. यदि डु वेई इज़राइल में किसी मिशन का हिस्सा था तो ये बात कभी सामने नहीं आएगी.



 


चीन नहीं करना चाहेगा सीधी कार्रवाई


इस संदेहास्पद मृत्यु को हत्या करार देना और उसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना चीन के लिये समझदारी नहीं होगी. ऐसा करके चीन द्वारा अमेरिका के सबसे करीबी दोस्त इजराइल से प्रतिशोध के भाव का प्रदर्शन साफ नजर आयेगा जो कि इजराइल और अमेरिका दोनो से एक साथ टकराने जैसी बात होगी. इसलिये दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारी देश चीन अभी ऐसा करना नहीं चाहेगा क्योंकि ये मामला उतना बड़ा है भी नहीं. इजराइल में चीन ने हाल ही में निवेश किया है और अमेरिका से भी वह व्यापार समझौते पर बात करना चाहता है इसलिये सीधी तौर पर इन दोनो को ही इस मामले में जिम्मेदार वह ठहराना नहीं चाहेगा. ऐसी हालत में संदेह के आधार पर प्रतिशोध के लिये चीन के पास गुप्त रूप से दांत के बदले दांत की तर्ज पर कार्रवाई करने का ही विकल्प शेष रहता है. और चीन ऐसी अपरिपक्वता कदापि नहीं दिखायेगा कि त्वरित कार्रवाई करे. इसलिये यदि चीन सिर्फ संदेह के आधार पर गुप्त प्रतिशोध चाहेगा तो उसके लिये वह पर्याप्त प्रतीक्षा भी करेगा.   


 


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