नई दिल्ली: आजकल सोशल मीडिया में एक नया शब्द छा रहा है - ‘XITLER’. शी जिनपिंग और हिटलर को मिलाकर बना ये शब्द नया नहीं है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


बस अब तक चीन ने अपनी दमनकारी नीतियों के दम पर इसे दबा दिया था पर अब और नहीं, सोशल मीडिया पर ये नाम धीरे-धीरे काफी लोकप्रिय हो गया है. 



शी जिनपिंग को नाज़ी और हिटलर जैसी संज्ञाओं से नवाज़ा जाता रहा है. 



फरवरी 2017 में न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसके मुताबिक एक छात्र जिसने ‘XITLER’ स्लोगन वाली टीशर्ट पहन ली थी, वो पहले गायब हो गया और बाद में उसपर मुकदमा भी चला था. बाद में ढेरों धमकियों के बीच उसके परिवार ने मीडिया से बात करने तक से इंकार कर दिया था और अपने वकीलों को भी फायर कर दिया था. केस का क्या हुआ आगे इसकी जानकारी नहीं मिलती. साफ है शी जिनपिंग के मुस्कुराते चेहरे के पीछे एक तानाशाह है.




कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि शी जिनपिंग तो माओ से भी आगे निकल गए हैं और अब उनकी तुलना दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाह – अडोल्फ हिटलर से की जाती है.


XI JINPING + HITLER = XITLER


1.      पहली समानता


हिटलर की ही तर्ज पर औरों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने को अपना हक समझना


2.      दूसरी समानता


जैसे हिटलर ने यहूदियों का ख़ात्मा किया था वैसे ही चीन में हानों के अलावा तिब्बतियों, उइगुर मुस्लिमों, हुई मानचू, यी और मंगोलों जैसी दूसरी नस्लों पर अत्याचार जारी है.


3.      तीसरी समानता


चीन के तानाशाही शासन पर हिटलर की ही तरह मास सर्वेलेंस, ​​सामूहिक उत्पीड़न, सेंसरशिप और मानवाधिकारों के हनन के गंभीर आरोप हैं.


4.      चौथी समानता


शी को उनकी युवावस्था में काफी अत्याचार सहना पड़ा था, माओ ने एक दूरदराज़ के गाँव में निर्वासित कर दिया. हिटलर को भी अपने पिता की मृत्यु के बाद गरीबी में दिन काटने पड़े थे.


5.      पांचवीं समानता


दोनों ने ही पावर मिलते ही अपने प्रतिद्वदियों को एक के बाद एक ठिकाने लगाना शुरु कर दिया था.



जिनपिंग के अंदर का तानाशाह उभर चुका है
इसमें कोई शक नहीं कि अपनी दमनकारी नीतियों के चलते चीन धीरे-धीरे 21वीं शताब्दी का नाज़ी जर्मनी बन चुका है, तो फिर शी जिनपिंग को ‘XITLER’ कहे जाने पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.


ऐसा माना जाता है कि नाज़ी जर्मनी की तरह ही चीन के कॉन्सन्ट्रेशन कैंप्स में लाखों उइगुर मुस्लिम यातनाएं झेलने को मजबूर हैं.


दुनिया भर के अख़बारों को ख़बर है लेकिन चीन है कि मानता नहीं और ये अत्याचार बदस्तूर जारी है. 



दुनिया पर कब्ज़ा करने की फिराक में शी जिनपिंग की आंखें हांगकांग से हिमालय तक गड़ी हैं. मिशन साफ है पूरी दुनिया पर चीन का आधिपत्य. अपने इस टार्गेट को पाने के लिए कुछ भी करेगा ड्रैगन, झूठ-फरेब के जाल बुनने से लेकर छद्म युद्ध और छल-प्रपंच से दूसरे देशों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने तक.


‘XITLER’ महज़ एक शब्द ही नहीं है, बल्कि दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी है 
याद रहे, हिटलर की दमनकारी और आक्रमणकारी नीतियों के ख़िलाफ दुनिया बड़ी देर से हरकत में आई थी.  वो भी तब जब उसने ऑस्ट्रिया पर कब्ज़ा कर लिया और पोलैंड पर हमला बोल दिया.


आज भी कमोबेश वही इतिहास दोहराया जा रहा है. पिछले तीन दशकों के दौरान चीन ने बार-बार ये साफ कर दिया है कि वो किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान नहीं करता और ना ही मानवाधिकार जैसा कोई शब्द उसकी डिक्शनरी में है. उसकी पॉलिसी है छल-कपट और आक्रामक राष्ट्रवाद लेकिन दुनिया ने अब तक आंखें मूंद रखी थीं.


कोरोनावायरस के हमले के बाद दुनिया एक झटके के साथ जाग उठी है. हिटलर की तरह ही ‘XITLER’ ने भी राजनैतिक, कूटनीतिक और सैन्य, कई फ्रंट खोल लिए हैं. अब देखना ये है कि क्या ‘XITLER’ का ख़ात्मा भी हिटलर की तरह ही होगा?