नई दिल्ली: पेरू में अमेजन के जंगलों में रहने वाली जनजाति माशको पिरो की दुलर्भ तस्वीरें सामने आई हैं.  ये जनजाति अलग-थलग रहना पसंद करती है.'सर्वाइववल इंटरनेशनल' की ओर से जारी इन तस्वीरों में जनजाति के सदस्यों को नदी किनारे आराम करते दिखाया गया है. ये नजारा माशको पिरो की हेल्थ को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच देखा गया है.   


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तस्वीरों में दिखी जनजाति 
लोकल इंडीजिनियस ग्रुप FENAMAD के मुताबिक क्षेत्र में लगातार बढ़ती पेड़ों के कटाई के कारण इस जनजाति को अपनी पारंपरिक क्षेत्र से बाहर जाना पड़ रहा है. इसके अनुसार माशको पिरो शायद खाने और सुरक्षित वातावरण की तलाश में बस्तियों के करीब जा रहे हैं.


 



सर्वाइववल इंटरनेशनल' की रिपोर्ट के मुताबिक ये तस्वीरें जून के अंत में ब्राजील के बॉर्डर से लगे दक्षिण-पूर्वी पेरू प्रांत के माद्रे डी डिओस में एक नदी के तट के पास ली गई थीं. 


घिर रहा आवासीय संकट 
'सर्वाइवल इंटरनेशनल' की डायरेक्टर कैरोलीन पियर्स ने कहा,' इन तस्वीरों से पता चलता है कि माश्को पीरो बड़ी संख्या में अकेले रहते हैं, जो उस जगह से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है, जहां लकड़हारे अपना काम शुरू करने वाले हैं.' हाल ही के दिनों में इस जनजाति के 50 से भी ज्यादा लोग यीन लोगों के एक गांव, जिसे मोंटे साल्वाडो कहा जाता है वहां दिखाए दिए थे. वहीं 17 लोगों का एक और ग्रुप पास के एक गांव प्यूर्टो नुएवो में दिखाई दिया था.'सर्वाइवल इंटरनेशनल' के मुताबिक माश्को पीरो जो माद्रे डी डिओस में 2 नेचुरल रिजर्व के बीच में स्थित क्षेत्र में रहते हैं. ये ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करते हैं. आमतौर पर ये कभी कभार ही दिखाई देते हैं. कई लकड़ी वाली कंपनियों के पास माश्को पीरो के रहने वाले इलाकों में लकड़ी के ठेके हैं.


कौन हैं माश्को पीरो? 
माश्को पीरो जनजाति दुनिया से बिल्कुल कटकर रहती है. इन्हें दुनिया में चल रही किसी भी चीजों से कोई मतलब नहीं है. न ही इन्हें संसार से कोई फर्क पड़ता है. अमेजन के जंगलों में रहने वाली इन जनजाति को नोमोल नाम से भी जाना जाता है. इनकी भाषा पीरो है. इनकी जमीन पर जंगलों की कटाई बढ़ने से ये भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर निकलते हैं. माश्को पीरो जनजाति शिकार के जरिए अपने खाने का इंतजाम करती है. 


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