नई दिल्लीः इतिहास के पन्नों को अगर पलटें तो कई ऐसी कहानियां निकलकर सामने आती हैं, जिनसे न सिर्फ हमारा वर्तमान बल्कि हमारा भविष्य भी जुड़ा होता है. ऐसी ही एक कहानी है भारत के गुलाम बनने की. क्या आपको पता है कि एक कंपनी की छोटी सी गलती और साजिश के चलते भारत कई सालों तक अंग्रेजों का गुलाम बना रहा था. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है वो किस्सा.


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मुगल बादशाह की एक गलती और...
ईस्ट इंडिया कंपनी ने गुजरात के सूरत में 11 जनवरी 1613 को मुगल बादशाह की इजाजत मिलने के बाद अपना प्रोडक्शन शुरू किया था. इस कारखाने में रजाई-गद्दे और कपड़े बनाए जाते थे. मुगह बादशाह जहांगीर ने अपनी खास रणनीति के तहत कंपनी को इजाजत दी थी. बाद में इसी कंपनी के जरिए अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बना लिया और न सिर्फ मुगल शासन को खत्म किया बल्कि अपना कानून भी चलाने लगे.


कपड़े बनाने से गुलामी तक की कहानी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसंबर 1600 को हुई थी. 1608 में विलियम हॉकिन्स ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज लेकर सूरत आया था. इसके बाद कंपनी ने भारत में अपना पहला कारखाना सूरत में खोला था. पहले इस कंपनी को जॉन कंपनी के नाम से भी जाना जाता था. ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी ने कंपनी को भारत के साथ व्यापार करने के लिए 21 साल तक की छूट दी थी.


ऐसे शुरू हुआ गुलामी का दौर
ईस्ट इंडिया कंपनी ने साल 1615 में थॉमस रो को अपने राजदूत के रूप में कारोबार बढ़ाने का जिम्मा सौंपा था. रो ने ही जहांगीर के साथ मिलकर कंपनी का कारोबार फैलाने और भारत में ब्रिटिश फौज लाने का रास्ता साफ किया था. बताते हैं कि थॉमस रो भारत में करीब 3 साल रहा और सूरत के अलावा बंगाल से कंपनी को व्यापार की छूट दिला दी. इंग्लैंड वापस जाने से 6 महीने पहले पुर्तगालियों ने सूरत बंदरगाह पर हमला किया तो मुगलों ने अंग्रेजी नौ सेना से मदद मांगी.


तब रो ने शासक शाहजहां को इस बात पर राजी कर लिया कि मदद के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी पर किसी प्रकार का व्यापारिक प्रतिबंध या टैक्स नहीं लगाया जाएगा. बस यहीं से हिंदुस्तान इंग्लैंड की मुट्ठी में जाना शुरू हुआ. हालांकि जब यहां से थॉमस रो इंग्लैंड वापस गया तो उसने अपनी यात्रा को असफल बताया था.


जहांगीर की एक गलती पड़ी भारी
अंग्रेजों को कारोबार की अनुमति देने में जहांगीर की एक रणनीति थी. जहांगीर और अंग्रेजों ने मिलकर 1618 से लेकर 1750 तक भारत के अधिकांश हिंदू रजवाड़ों को कब्जे में ले लिया था. तब तक बंगाल अछूता था और उस समय सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब था. बाद में 1757 उसे भी प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों ने हरा दिया था. इसी युद्ध के बाद जहांगीर के देखते-देखते कंपनी ने मैसूर को भी हड़प लिया और हैदराबाद के निजाम को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया. हालांकि वह इस बात से खुश होता रहा कि कंपनी ने मराठों-राजपूतों को उखाड़ फेंकने के लिए अभियान चलाया है. हालांकि, उसका दांव उल्टा पड़ गया और ब्रिटिश हुकूमत ने पूरे हिंदुस्तान पर अपना कब्जा कर लिया.


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