नई दिल्लीः कलम की ताकत कुछ लोगों को अक्सर अखरती है. कुछ लोगों को हजम नहीं होता कि उनपर सवाल उठाए जाएं. कुछ को बर्दाश्त नहीं होता कि उनके जुल्मों की कहानियों को सरेआम सबके सामने उछाला जाए. इसलिए वो आवाज को दबाने के लिए गला पकड़ते हैं. मौत का खूनी खेल खेलते हैं.


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लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि राख में अंगारों का अतीत दफ्न होता है, जो चिंगारियों को भड़काता रहता है और कभी कभी ये चिंगारी बन उठती है ज्वालामुखी जो हर वक्त का हिसाब लेती है. पाश ने अपनी एक कविता में सच ही कहा है...


''बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो हॉस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्‍या करोगे?
मैं तो घास हूं, हर चीज़ ढंक लूंगा
हर ढेर पर उग आउंगा.''


ऐसा ही एक विद्रोह आजकल पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी देखने को मिल रहा है. जिस पाकिस्तान में कभी सेना ने तो कभी सरकार ने वहां के पत्रकारों का गला घोंटा. आज वहां के पत्रकार उसी सेना और सरकार के जुल्मों का हिसाब मांग रहे हैं.


पाकिस्तान में इन दिनों पत्रकारों का एक बड़ा बेड़ा सेना के खिलाफ खड़ा हो गया है. इमरान सरकार से असहनीय सवाल पूछ रहा है. लेकिन पत्रकारों की इस बगावत के पीछे छिपी है हत्याओं, शोषण और जुल्म की अनगिनत कहानियां...


शोषण का लंबा इतिहास
दरअसल, पाकिस्तान में पत्रकारों के शोषण का लंबा इतिहास है. जिस किसी पत्रकार ने भी इस देश की सेना के खिलाफ या सरकार की गलत नीतियों का विरोध किया उसका जीना दुश्वार कर दिया जाता है. किसी दिन उसका अपहरण हो जाता है तो कई लोगों के साथ मारपीट करके छोड़ दिया जाता है. कई की तो हत्याएं तक कर दी जाती हैं. कई पत्रकार ऐसे भी हैं जो अगवा हुए और आज तक उनकी कोई जानकारी ही सामने नहीं आ सकी है.


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क्या है ताजा मामला
हाल ही में असद अली टूर नामक एक पत्रकार जो पाकिस्तानी टीवी चैनल 'आज टीवी' के एक लोकप्रिय कार्यक्रम के प्रोड्यूसर हैं और यूट्यूब पर "असद अली टूर अनसेंसर्ड" नाम से अपना चैनल भी चलाते हैं. उन्होंने पुलिस को एक बयान में बताया कि कम से कम तीन अज्ञात बंदूकधारी मंगलवार रात इस्लामाबाद में उनके घर में घुस आए.



हमलावरों ने अली का मुंह बंद कर दिया, हाथ-पांव बांध दिए, उन्हें मारा पीटा और फिर घायल छोड़ कर चले गए. अली का अभी एक अस्पताल में इलाज चल रहा है.


इमरान को आलोचना बर्दाश्त नहीं
दरअसल, टूर पर हुआ हमला 2018 में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार बनने के बाद से पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमलों की श्रृंखला का एक हिस्सा है.


पिछले महीने ही इस्लामाबाद में बंदूकधारियों ने एक और पत्रकार अबसार आलम पर उसके घर के बाहर गोली चला कर उसे घायल कर दिया. यह पत्रकार भी सेना की बेबाक आलोचना के लिए मशहूर हैं.


भारत का बताते हैं एजेंट
वहीं, पिछले साल जुलाई में पत्रकार मतिउल्ला जान का इस्लामाबाद से अपहरण कर लिया गया था. उन्हें किसी अज्ञात ठिकाने पर घंटों यातनाएं दी गईं और उसके बाद एक सुनसान सड़क पर छोड़ दिया गया. बीते सालों में देश में कई पत्रकारों पर हमले हुए हैं लेकिन कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की मांगों के बावजूद कभी भी किसी मामले में ना तो जांच पूरी हुई और ना किसी को हिरासत में लिया गया.



एक आंकड़े के अनुसार हर साल कम से कम 40 पत्रकार और मीडियाकर्मी अपने काम की वजह से मारे जाते हैं. लेकिन दिलचस्प ये है कि पाकिस्तान कई बार ऐसे पत्रकारों को भारत का एजेंट तक कह देता है. उन्हें जासूसी के आरोप में सजा देता है.


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अब हामिद मीर को रोका
ताजा मामला ये है कि पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर को सेना और सरकार के खिलाफ आवाज उठाने और सवाल पूछने के कारण न्यूज पढ़ने से रोक दिया गया है. पाकिस्तान के जिओ न्यूज के लिए काम करने वाले पत्रकार हामिद मीर इन दिनों एक दूसरे पत्रकार की गिरफ्तारी के खिलाफ जमकर आवाज उठा रहे थे.



कुछ दिनों पहले उन्होंने एक रैली का भी नेतृत्व किया था जिसमें उन्होंने इमरान खान सरकार और सेना के खिलाफ तीखी बयानबाजी की थी.


अब बढ़ रहा है विवाद


पिछले कुछ समय से जिस तरह से पाकिस्तान में पत्रकारों का गला दबाया जा रहा है और उनकी तरफ से बोलने वालों के साथ जिस तरह का सुलूक किया जा रहा है उससे अब विरोध बढ़ने लगा है. हामिद मीर पर सख्ती करने के बाद से पाकिस्तान के कई मीडियाकर्मियों ने सेना और इमरान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.


क्यों ऐसे पत्रकारों से चिढ़ती है पाक सेना


दरअसल पाकिस्तानी सेना के ऐसे बेबाक पत्रकारों से चिढ़ने के कई कारण हैं. जानकार बताते हैं कि पाकिस्तान की सेना में भ्रष्टाचार घर कर गया है. सेना का पूरा महकमा कारोबार में लगा हुआ है.



इनपर जब कोई सवाल उठाता है तो उन्हें चिढ़ मचती है. जब ये पत्रकार पीओके, अफगानिस्तान से सटे सीमाई इलाकों में सेना के शोषण को उजागर करता है तब उनपर हमले होते हैं. या फिर जब ये पत्रकार सरकार के एजेंडे का विरोध करते हैं तो उन्हें निशाना बनाया जाता है.


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