नई दिल्लीः विश्वभर में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह खतरनाक समय है. यूक्रेन पर हमला कर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने वैश्विक शांति और लोकतंत्र को कायम रखने वाले सिद्धांतों पर भी सीधा हमला किया है. अगर संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर आम सहमति को खत्म करने के तानाशाही शक्तियों के प्रयास ताकत के बल पर शासित दुनिया में बदलने में सफल हो जाते हैं तो निश्चित ही हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित नहीं हैं इसलिए आज हम चुप रहकर नहीं बैठ सकते, न्याय के पक्ष में सब खड़े हो यह समय की मांग है.


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पुतिन लंबे समय से यूक्रेन पर हमले की योजना बना रहे थे, उन्होंने व्यवस्थित तरीके से डेढ़ लाख से अधिक सैनिकों, सैन्य साजो-सामान और फील्ड अस्पतालों को यूक्रेन की सीमा पर तैनात कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. रूसी राष्ट्रपति ने अपनी मनगढ़ंत सुरक्षा चिंताओं को दूर करने और अनावश्यक संघर्ष एवं मानवीय पीड़ा को टालने के हर ईमानदार प्रयास को खारिज कर दिया था.


सैन्य हमले को सही ठहरा रहा रूस
रूसी सरकार के साइबर ऑपरेशन को सबने देखा, सबने मॉस्को में राजनीतिक नौटंकी का मंचन होते हुए भी देखा और रूसी सेना के हमले को सही ठहराने के लिए यूक्रेन और नाटो के बारे में किये गये निराधार दावों को भी सुना. रूस अब भी यूक्रेन में जनसंहार को रोकने की आवश्यकता का झूठा दावा करते हुए अपने सैन्य हमले को सही ठहरा रहा है. रूस को पहले भी 2014 में यूक्रेन पर और 2008 में जॉर्जिया पर हमले के दौरान इन युक्तियों का इस्तेमाल करते सब देख चुके हैं.


हिंसा पर उतारू हैं रूसी राष्ट्रपति पुतिन
आज यह स्थापित हो चुका है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बर्बर हिंसा पर उतारू हो चुके हैं, जिससे समूचे यूक्रेन में मौत और विनाश का तांडव होता हुआ दिखाई दे रहा है. रूसी सेना के हमलों के दौरान विश्व ने यूक्रेनी नागरिकों को जान-बूझकर निशाना बनाने समेत विभिन्न अत्याचारों के बारे में कई विश्वसनीय रिपोर्टें देखी हैं. 


रूसी सेना के इन हमलों में हजारों निर्दोष यूक्रेनी नागरिक हताहत हुए हैं. रूस की सेनाओं ने जिन स्थलों पर हमले किए हैं उनमें से कई जगहों को नागरिकों की ओर से इस्तेमाल की जा रहीं जगहों के रूप में आसानी से पहचाना जा सकता था. ऐसी जगहों में मारियुपोल स्थित प्रसूति अस्पताल और थिएटर भी शामिल हैं.


बच्चों-महिलाओं को भी नहीं बख्शा जा रहा
45 दिनों से अधिक समय से चल रहे रूसी सेना के बर्बर हमलों के जारी रहने से हर रोज महिलाओं और बच्चों सहित हताहत होने वाले निर्दोष यूक्रेनी नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. यह उल्लेखनीय है कि यूक्रेन के लोगों ने 30 साल आजादी के साथ बिताए हैं और उन्होंने दिखा दिया है कि वे अपने देश को पीछे ले जाने की किसी की भी कोशिश को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. 


आज जो कुछ भी हो रहा है, उसके ऊपर दुनिया करीब से नजर रख रही है. यूक्रेन ने साफ किया है कि वो इन अत्याचारों के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने के लिए आपराधिक मुकदमे चलाने के साथ-साथ हर उपलब्ध उपाय का इस्तेमाल करेंगे.


अमेरिका तथा अन्य कई देश यूक्रेनी शरणार्थियों की जरूरतों को पूरा करने तथा अहम जीवनरक्षक सामग्रियों की आपूर्ति करने का काम कर रहे हैं. यूक्रेन, रूस की सैन्य आक्रामकता का सामना करने वाला कोई अकेला देश नहीं है. रूस का प्रतिरोध कर रही यूक्रेन की सेना की तरह ही भारत के सैनिक भी एक विदेशी शक्ति के अकारण हमले में मारे जा चुके हैं. 


अपने मित्र देशों के साथ खड़ा रहा अमेरिका
दोनों ही मामलों में अमेरिका अपने मित्र देशों के साथ खड़ा रहा है. गलवान घाटी में हुए हमले के दौरान अमेरिका ने चीन की आक्रामकता के खिलाफ भारत के प्रयासों के समर्थन में भारत के साथ अभूतपूर्व घनिष्ठता के साथ काम किया था. ऐसी घटनाओं और रवैयों के मद्देनजर पूरे विश्व को इस क्षण में एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए, जब तानाशाही शासन नियम आधारित उस व्यवस्था को कमजोर करने की धमकी दे रहे हैं, जिसे अमेरिका, भारत और अन्य लोकतांत्रिक देशों ने स्वतंत्रता के समर्थन के लिए स्थापित किया है. 


हमें उन देशों के खिलाफ अपनी रक्षा करने और उनकी कार्रवाइयों को रोकने का काम जारी रखना चाहिए, जो अपने पड़ोसी देशों को धमकाते हैं और विधिसम्मत शासन व्यवस्था को कमजोर करते हैं.


रूस के राष्ट्रपति पुतिन सैन्य, आर्थिक या राजनीतिक दबाव से मुक्त रहते हुए अपना रास्ता खुद चुनने के संप्रभु राष्ट्रों के अधिकार में हमारे साझा भरोसे को कम करने में विफल साबित हुए हैं. अमेरिका न केवल यूरोप में, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनियाभर में, इन अधिकारों और अपने साझेदारों के समर्थन से पीछे नहीं हटेगा. 


जब इस दौर का इतिहास लिखा जायेगा, तो उसमें इस बात का उल्लेख अवश्य होगा कि एक अकारण, अन्यायपूर्ण और पूर्वनियोजित हमले को शुरू करने के रूसी राष्ट्रपति पुतिन के फैसले ने नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर लोकतांत्रिक राष्ट्रों को और भी अधिक एकजुट कर दिया.


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