Afghanistan: तालिबान राज में देश की 90 लाख बच्चियों की शिक्षा का क्या होगा?
तालिबान के दौर में स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या शून्य थी, लेकिन पिछले 20 साल में ये संख्या बढ़कर 90 लाख पहुंच गई.
टोरंटोः अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है. इस कब्जे के साथ ही दुनियाभर के लोग सकते में हैं. 1996 से लेकर 2001 तक जिस क्रूरता के साथ तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया था, उसकी यादें फिर से ताजा होने लगी हैं. पांबंदियों और निर्ममता के कई उदाहरण तालिबान की पहचान रहे हैं. लेकिन तालिबान की सबसे डरावनी तस्वीर है महिलाओं के खिलाफ उसकी सोच. जिसकी झलक फिर से अफगानिस्तान में देखने को मिल रही है.
तालिबान क्यों महिलाओं के लिए इतना खतरनाक है और अब फिर से अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने पर महिलाओं पर कैसी पाबंदी होगी. साथ ही तालिबान की गैरमौजूदगी में महिलाओं की स्थिति कितनी बदली थी. इन तमाम बातों को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा.लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर देश की उन 90 लाख बच्चियों का क्या होगा जो स्कूलों में पढ़ती हैं.
हमेशा से ऐसा नहीं रहा था महिलाओं का हाल
वैसे तो इस छोटे से देश ने कई रंग देखें हैं. लेकिन हमेशा से इसके हाल ऐसे रहे हैं. खासकर यहां की महिलाओं का. (Afghanistan Education Before the Taliban). खासकर 70 के दशक में अफगानिस्तान अपनी खूबसूरती और प्रगतिशील सोच के काफी फेमस था. यहां पढ़ाई और फैशन के क्षेत्र में महिलाओं से दोयम दर्जे की बात नहीं होती थी. लेकिन आज के समय में वो बिना बुर्के के नहीं रह सकतीं. अफगानिस्तान में महिलाओं की पुरानी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.
यही नहीं अफगान महिलाओं को पहली बार 1919 में मतदान करने की आजादी मिली थी.1960 के दशक में पर्दा प्रथा को समाप्त कर दिया गया था. साथ ही एक नया संविधान राजनीतिक भागीदारी सहित जीवन के कई क्षेत्रों में समानता लाया. लेकिन फिर रूस की सेना ने जब अफगानिस्तान में धाबा बोला तो सबकुछ बदल गया. उसके बाद जब तालिबानियों ने कब्जा जमाया तो महिलाओं की जिंदगी यहां नर्क बन गई.
क्या थी महिलाओं की स्थिति
तालिबान ने 1996 में जब अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया तो पहले खूब सुधार किए. लेकिन फिर धीरे-धीरे इस्लामिक कट्टरता के नाम पर उसने महिलाओं की आजादी ही छीन ली. महिलाओं के लिए स्कूल जाने, टीवी देखने तक पर पाबंदी लगा दी. यहां तक कि उन्हें घर से बाहर निकलने पर बैन लगा दिया गया. कहा गया कि अगर महिलाएं घर से बाहर निकलती हैं तो उन्हें किसी मर्द के साथ रहना होगा और पूरे शरीर को ढकने वाला बुर्का पहनना होगा. उनकी नौकरी पर पाबंदी लगा दी गई.
तालिबान के जाने पर कितना बदलाव हुआ
तालिबान का राज समाप्त होने पर धीरे-धीरे ही सही लेकिन अफगानिस्तान रूढ़िवादी सोच से बाहर निकल रहा था. महिलाएं पढ़ाई और खेल, संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ रही थीं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तालिबान के दौर में स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या शून्य थी, लेकिन पिछले 20 साल में ये संख्या बढ़कर 90 लाख पहुंच गई. अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात की यूनिवर्सिटी में महिलाओं की तादाद 50 प्रतिशत है. कई फिल्मों और खेलों में महिलाओं ने शानदार काम किया है. लेकिन अब डर है कि महिलाओं की आजादी मौन में दबा दी जाएगी.
तालिबान की कथनी और करनी
अभी जब अफगानिस्तान सत्ता संभालने को तैयार है तो उसका कहना है कि महिलाओं को पढ़ाई से नहीं रोका जाएगा. लेकिन तालिबान की कथनी और करनी का अंतर जगजाहिर है. खबरों की मानें तो तालिबान नेताओं ने स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ ‘‘विवाह’’ के लिए 15 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों और 45 वर्ष से कम उम्र की विधवाओं की लिस्ट देने को कहा है. तालिबान के कहर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन महीनों में ही अफगानिस्तान से 9 लाख लोग विस्थापित हुए हैं.
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.