नई दिल्ली: ऐसा खुलासा हो रहा  है कि कोरोना वायरस को तैयार करने की प्रक्रिया भारतीय जमीन पर हुई थी. इसमें चीन के साथ भारत और अमेरिका के वैज्ञानिक भी शामिल थे. खबर ये भी है कि भारतीय वैज्ञानिकों को धोखे में रखकर सैंपलिंग की गई थी.


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नागालैंड में गुप्त रिसर्च
खबर है कि चीन के वैज्ञानिकों ने उत्तर पूर्वी राज्य नागालैंड में किफिरे जिले के मिमी गांव में गुप्त रिसर्च किया किया था. 



यहां के 18 से 50 साल के 85 लोगों पर परीक्षण किया गया. नागालैंड के इस गांव में बेहद गोपनीय तरीके से ये शोध किया गया. जिसका उद्देश्य ये बताया गया कि क्या इंसानों का इम्यून भी वायरस से लड़ने में चमगादड़ों जितना विकसित किया जा सकता है.


इस वजह से चुना गया नागालैंड का मिमी गांव 
दरअसल नागालैंड का मिमी गांव चीन की सीमा के काफी नजदीक है. इस इलाके के जंगलों में ऐसे आदिवासी रहते हैं जो चमगादड़ों का शिकार करते हैं और उसका भोजन के रूप में इस्तेमाल भी करते हैं. ऐसा माना जाता है इन आदिवासियों का इम्यून सिस्टम भी चमगादड़ों की तरह ही वायरस ले लड़ने के लिए काफी मजबूत है.


लिहाजा चीन ने मिमी गांव में रिसर्च करने की ठानी. इसके लिए उसने अमेरिका और भारत के कुछ वैज्ञानिकों को ये कहकर साथ लिया कि इस शोध से खतरनाक वायरस का मुकाबला करने की तकनीक विकसित की जा सकती है.


नागालैंड के मिमी गांव इलाके में सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ आते हैं और अब तक की वैज्ञानिक शोध से ये साबित हो चुका है कि चमगादड़ खुद बिना प्रभावित हुए इबोला, सार्स या कोरोना के वायरस को अपने शरीर में लंबे समय तक रख सकते हैं.. इसलिए दावा किया जाता है कि इस शोध का मकसद इंसान के इम्यून को चमगादड़ों जितना विकसित करना था..


अमेरिकी रक्षा मंत्रालय से कराई फंडिंग 
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक चीन ने इस काम के लिए बेहद शातिर प्लान तैयार किया. किसी को शक ना हो इसलिए उसने इस रिसर्च में अमेरिका और सिंगापुर के वैज्ञानिकों को भी शामिल कर लिया.


यही नहीं इस काम में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की डिफेन्स थ्रेट रिडक्शन एजेन्सी यानी DTRA के फंड का भी इस्तेमाल किया गया. 


दावा है कि इस गोपनीय शोध-अभियान में अमेरिका के यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ युनिवर्सिटी ऑफ द हेल्थ साइंसेज़ और सिंगापुर के ‘ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी के वैज्ञानिक शामिल थे. कुछ भारतीय संस्थाओं का नाम भी इस कड़ी में लिया जा रहा है. लेकिन इनके बारे में विस्तार से रिपोर्ट आनी अभी बाकी है. 


इस शोध के परिणाम कई जगह छपे थे
चीन के इस शोध-परीक्षण के परिणामों पर पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस के नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेज़ जर्नल में बाकायदा रिपोर्ट भी छप रही थी. पूरा जर्नल आप यहां क्लिक करके देख सकते हैं.  ये जर्नल बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के पैसे से चलती है.


इसी रिपोर्ट के आधार पर बिल गेट्स ने कहा था कि ऐसे वायरस से महामारी फैलने पर दुनिया में लाखों लोग मारे जा सकते हैं.  


जाहिर है बिल गेट्स का इशारा कहीं न कहीं कोरोना जैसे वायरस की तरफ ही था जो अब पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है. इसकी वजह है चमगादड़ों के जरिये इंसानों पर होने वाले वो शोध जिसका एक हिस्सा नगालैंड के मिमी जैसे गांव में किए जाने के भी दावे हो रहे हैं.


पूरे मामले से इस तरह पर्दा उठा
बिल गेट्स की रिसर्च मैगजीन में ये शोध रिपोर्ट छपने के बाद भारत सरकार हरकत में आई. इस शोध के लिए  भारत सरकार से इसकी कोई औपचारिक इजाजत नहीं ली गई थी. ये रिसर्च साल 2017 में की गई थी. जिसके बारे में खुलासा होने पर भारत सरकार ने संज्ञान लिया और जांच कराई. देश के प्रतिष्ठित अखबार द हिंदू में रिपोर्ट भी छापी गई थी. यहां क्लिक करके आप इस रिपोर्ट के बारे में पढ़ सकते हैं.



ये जांच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की पांच सदस्यों की टीम ने की थी. जिसने यह पाया कि नागालैंड के मिमी गांव में सरकार की इजाजत के बिना गुप्त शोध परीक्षण का काम चल रहा था.


चीन की नीयत शुरू से खराब थी
एक वरिष्ठ पत्रकार ने दावा किया है कि अमेरिका के हावर्ड यूनिवर्सिटी से चुराये सैंपल्स और नगालैंड में किए गए शोध के आधार पर चीन की वुहान यूनिवर्सिटी में कोरोना वायरस डेवलप किया गया.
उनका वीडियो आप यहां क्लिक करके देख सकते हैं. 


साथ ही ये भी दावा किया जा रहा है कि वहीं पर सैंपल की जार गिर कर टूट गई. जिसके बाद ये वायरस इंसान की कैद से आजाद होकर पूरी दुनिया में फैल गया.