नई दिल्ली: Sheikh Hasina And Indira Gandhi: यह बात 30 जुलाई, 1975 की है. बांग्लादेश से एक पिता अपनी दो बेटियों को विदा कर रहा है, ससुराल नहीं, बल्कि उनकी जान को खतरा देखते हुए उन्हें जर्मनी भेज रहा है. बड़ी बेटी 28 साल की है, जबकि छोटी 20 की. करीब 16 दिन बाद, 15 अगस्त को खबर आती है कि उनके पिता की बांग्लादेश में हत्या कर दी गई है. दोनों बेटियां फूट-फूटकर रोने लगती हैं. मगर इस बात की गनीमत मान रही थीं कि उनके पिता ने जाते-जाते भी उन्हें सुरक्षित स्थान पर भेज दिया. लेकिन जैसे ही जर्मनी में ये बात फैली तो  दोनों लड़कियों और उनके पति से यह ठीहा छिनने की कवायद तेज हो गई. उस वक्त किसी को अंदाजा न रहा होगा कि बेघर हुई दोनों लड़कियों में से एक किसी दिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बन सकती है. 


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'मुजीबुर्रहमान की बेटियां शरण चाहती हैं'
ऊपर बताया गया वाकया बांग्लादेश में 5वीं बार पीएम बनने जा रहीं शेख हसीना का है. जिस वक्त उनके पिता मुजीबुर्रहमान की हत्या हुई, तब हसीना केवल 28 साल की थीं. जब हसीना को शरण देने के लिए कई देशों ने हाथ खड़े कर लिए थे, तब भारत कदम बढ़ाया. भारत में इमरजेंसी का दौर चल रहा था. इंदिरा गांधी परेशानियों से घिरी हुईं थीं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि मुजीबुर्रहमान की दो बेटियां शरण चाह रही हैं, तो उन्होंने तुरंत हामी भर दी. उन्हें भारत बुला लिया गया. 


इंदिरा गांधी से पहली मुलाकात
हसीना ने इंदिरा गांधी से पहली ही मुलाक़ात में पूछा- 'क्या आपको पता है कि 15 अगस्त को बांग्लादेश में परिवार के साथ क्या हुआ?' इस पर वहां मौजूद एक अफसर ने बताया कि आपके परिवार के सभी 18 सदस्यों की हत्या कर दी गई है. इनमें हसीना का 10 साल का भाई भी शामिल था. यह सुनकर हसीना की चीख निकल पड़ी. इंदिरा गांधी आगे बढीं और उन्होंने हसीना को गले लगा लिया. इंदिरा ने कहा कि आपके नुकसान की भरपाई तो नहीं हो सकती. लेकिन आपका एक बेटा और बेटी हैं. आज से आप अपने बेटे में अपने पिता और बेटी में अपनी मां को देखिए. उस वक्त भारत समेत दुनिया के कई लोग हैरान थे कि इंदिरा गांधी इमरजेंसी के दौर में भी एक अनजान लड़की की मदद क्यों कर रही हैं. किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि यह एक मदद बरसों तक भारत और बांग्लादेश के रिश्तों को बनाए रखेगी. 


मिला मकान, 6 साल तक रहीं
शेख हसीना को भारत में रहने के लिए एक इंडिया गेट के करीब पंडारा पार्क में एक फ्लैट दिया गया. यहां वो परिवार के साथ रहती थीं. उन्हें सख्त हिदायत थी को वो बाहर के किसी शख्स से न मिलें. घर में एक टीवी रखा गया था, जिस पर केवल दूरदर्शन चलता था. वह भी सिर्फ दो घंटे के लिए. इसके बाद इंदिरा गांधी ने शेख हसीना के पति डॉक्टर वाजेद परमाणु ऊर्जा विभाग में फेलोशिप दी. 6 साल तक यहां रहने के बाद वो बांग्लादेश लौट गईं और नए सिरे से राजनीति की शुरुआत की. साल 1996 में शेख हसीना पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं.


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