नई दिल्ली: म्यांमार की राजधानी में एक विशेष अदालत ने देश की अपदस्थ नेता आंग सान सू की को लोगों को उकसाने और कोरोना वायरस संबंधी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने का दोषी पाते हुए सोमवार को चार साल कैद की सजा सुनाई. एक कानूनी अधिकारी ने यह जानकारी दी. 


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आंग सान को हो सकती है 100 साल की सजा


देश की सत्ता पर एक फरवरी को सेना द्वारा कब्जा करने के बाद से, 76 वर्षीय नोबेल पुरस्कार विजेता पर चलाए जा रहे कई मुकदमों में से पहले मामले में यह सजा मिली है. 


सैन्य तख्तापलट ने उनकी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी की सरकार को अपना पांच साल का दूसरा कार्यकाल शुरू करने से रोक दिया था. 


उनके खिलाफ एक अन्य मामले में फैसला अगले सप्ताह आ सकता है. अगर वह सभी मामलों में दोषी पाई जाती हैं, तो उन्हें 100 साल से अधिक की जेल की सजा हो सकती है. 


कानूनी अधिकारी ने कहा कि अदालत ने सोमवार को यह स्पष्ट नहीं किया कि सू की को इनके लिए जेल भेजा जाएगा या उन्हें नजरबंद रखा जाएगा. 


लोकतंत्र के लिए अपने लंबे संघर्ष में, उन्होंने 1989 से शुरू करते हुए अब तक 15 साल तक नजरबंदी में बिताए हैं. 


उकसाने का मामला, उनकी पार्टी के फेसबुक पेज पर पोस्ट किए गए बयान से जुड़ा हुआ है, जब कि उन्हें और पार्टी के अन्य नेताओं को सेना द्वारा पहले ही हिरासत में ले लिया गया था. 


सू पर लगा है मतदान धोखाधड़ी का आरोप


कोरोना वायरस प्रतिबंध उल्लंघन का आरोप पिछले साल नवंबर में चुनाव से पहले एक अभियान में उनकी उपस्थिति से जुड़ा था. चुनाव में उनकी पार्टी ने भारी जीत हासिल की थी. 


सेना, जिसकी सहयोगी पार्टी चुनाव में कई सीटें हार गई, उसने बड़े पैमाने पर मतदान धोखाधड़ी का आरोप लगाया था, लेकिन स्वतंत्र चुनाव पर्यवेक्षकों ने किसी भी बड़ी अनियमितता की बात नहीं कही. 


सू की के मुकदमे की सुनवाईयां मीडिया और दर्शकों के लिए बंद हैं, और उनके वकीलों, जो कार्यवाही पर जानकारी का एकमात्र स्रोत हैं, उन्हें अक्टूबर में जानकारी जारी करने से मना करने के आदेश दिए गए थे. 


सू की के खिलाफ मामलों को व्यापक रूप से उन्हें बदनाम करने और अगले चुनाव में उनके भाग लेने से रोकने के लिए साजिश के रूप में देखा जाता है. देश का संविधान किसी को भी दोषी ठहराकर जेल भेजे जाने के बाद उच्च पद हासिल करने या जन प्रतिनिधि बनने से रोकता है. 


सैन्य तख्तापलट के 10 महीने बाद भी सैन्य शासन का मजबूती से विरोध जारी है और इस फैसले से तनाव और भी बढ़ सकता है. 


सैन्य सरकार के खिलाफ रविवार को विरोध मार्च निकाला गया और सू की और उनकी सरकार के हिरासत में लिए गए अन्य सदस्यों की रिहाई की मांग की गई. 


अपुष्ट खबरों के मुताबिक सेना का एक ट्रक यांगून में मार्च में शामिल 30 युवा लोगों के बीच जानबूझकर घुस गया और इस घटना में कम से कम तीन प्रदर्शनकारी मारे गए. 


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