नई दिल्ली: अफगानिस्तान में पांच साल से कम उम्र के 20 लाख से अधिक बच्चे तीव्र कुपोषण से पीड़ित हैं और उनमें से 6 लाख वर्तमान में गंभीर कुपोषण (एक्युट मालन्यूट्रिशन) से पीड़ित हैं, जो बच्चों में कुपोषण का सबसे खतरनाक रूप है. यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट से इसकी जानकारी मिली है.


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आपको बता दें कि यमन और दक्षिण सूडान के साथ, अफगानिस्तान गंभीर तीव्र कुपोषण से पीड़ित पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सबसे अधिक संख्या वाले देशों में से एक है.



इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में, यूनिसेफ, जो अफगानिस्तान में कुपोषित बच्चों के लिए चिकित्सीय भोजन का उपयोग करने वाला एकमात्र प्रदाता है, अब तक सीमित आपूर्ति (275,000) के कारण गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों में से केवल 50 प्रतिशत से कम को लक्षित कर सका है.


रिपोर्ट के अनुसार निरंतर हिंसा, जलवायु संकट (सूखा और अचानक बाढ़), कई विस्थापन, बढ़ती खाद्य असुरक्षा और अनुचित भोजन की आदतों की वजह से स्थिति जटिल है.


चिंताजनक हैं हालात
टोलो न्यूज ने अफगानिस्तान में यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ सलाम अल-जनाबी के हवाले से कहा कि आज पूरे अफगानिस्तान में, लाखों बच्चों को स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं की सख्त जरूरत है. अफगानिस्तान में लगभग 14 मिलियन लोग आज खाद्य असुरक्षित हैं. उनमें से लगभग 35 लाख बच्चे, जिनके बारे में हम उम्मीद करते हैं कि वे अपने आसपास तीव्र कुपोषण से पीड़ित होंगे.



उन्होंने कहा कि यूनिसेफ और डब्ल्यूएफपी पिछले दो महीनों से अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं. करीब 40,000 बच्चों को गंभीर कुपोषण से बचाव के लिए का इलाज मुहैया कराया गया.


अफगानिस्तान में सबसे हालिया पोषण सर्वेक्षणों के निष्कर्ष यह भी दिखाते हैं कि 34 प्रांतों में से 22 वर्तमान में तीव्र कुपोषण की आपातकालीन सीमा से ऊपर हैं. अफगानिस्तान में पोषण पर यूनिसेफ का कार्यक्रम 13 मिलियन डॉलर में से केवल 50 प्रतिशत वित्त पोषित है.


बच्चों की चिंता किसी को नहीं
ये सारे आंकड़े और संकट चंद लाइनों में ज्यों के त्यों सामने पड़े हुए हैं. बेशक, जमीनी हकीकत के सामने ये बहुत कम हैं. लेकिन, जंगलीपना देखिए कि ऐसे दर्दनाक हालात के बावजूद हमारे बीच गुड तालिबान-बैड तालिबान जैसी बहसें सामने आती हैं. खुद तालिबान भी न जाने किस बेशर्म मुंह से खुद को बदला हुआ बताता है. उसकी इस दोमुंही फितरत की असलियत भी सामने है.


हेल्थ सेक्टर बिल्कुल ठप
तालिबान राज में हेल्थ सेक्टर बिल्कुल ठप पड़ा है और इसे दोबारा शुरू करने का कोई ब्लूप्रिंट इस गोली-बंदूक वाली सत्ता के पास नहीं है. उल्टा किया ये है कि महिलाएं खासकर कि गर्भवतियां अपना इलाज सिर्फ महिला डॉक्टर से करा सकती हैं. पुरुषों को इसकी इजाजत नहीं है. अस्पतालों में खास सुविधाओं की बात छोड़िए, जरूरी और आम सुविधाएं भी नहीं है. लाइट नहीं है, जनरेटर में तेल नहीं है, एंबुलेंस ठप हैं और जच्चा के लिए जरूरी दवाएं भी नदारद हैं.


ऐसे में बच्चे का सुरक्षित जन्म हो पाना तो नामुमकिन है, लेकिन उनका मर जाना सबसे आसान. ये आज के अफगानिस्तान की हकीकत है. इस हकीकत से कैसे पार पाना है न डॉक्टर जानते हैं, न बच्चों के परिवार और न ही तालिबान, खैर उससे कोई उम्मीद भी कहां है.


यानी बात साफ है बच्चों के लिए काम करने वाली सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा जारी की जा रहीं चेतावनियों से अफगानिस्तान और दुनिया की दूसरी सरकारें बेखबर हैं. संकट के इस काल में बच्चे सबसे आसान शिकार बन रहे हैं.


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