नई दिल्ली: सालों तक दुनिया की नजर से छिपे तालिबान के नेता अचानक मीडिया के सामने आए और दावा किया कि उनकी हुकुमत में महिलाओं का सम्मान होगा. महिलाओं को दफ्तर जाने की छूट होगी. महिलाएं घर की चहारदीवारी से बाहर काम कर सकेंगी. तालिबान को करीब से देखने वाले इन दावों पर कभी भरोसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि तालिबान का जन्म ही इस सिद्धांत पर हुआ था कि वो एक दिन अफगानिस्तान में शरिया कानून स्थापित करेगा.


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"तालिबान शरिया कानून स्थापित करेगा"


इसके लिए कितनी भी कुर्बानी क्यों ना देनी पड़े, इसके लिए कितना भी खून क्यों ना बहाना पड़े, लेकिन हर हाल में तालिबान शरिया कानून स्थापित करेगा. ये एक कल्पना ही हो सकती है कि तालिबान अपनी आस्था और उसूलों को ताक पर रखकर एक ऐसी सरकार बनाए जिसमें महिलाओं को भी समान हक दिया जाएगा. मीडिया के सामने उदारवाद का मुखौटा पहनकर तालिबान सिर्फ इस कोशिश में है कि उसे दुनिया के ज्यादा से ज्यादा देश मान्यता दें, और नजरिया बदलें.


तालिबान पर संदेहभरी नजरें


तालिबान को अभी संदेह की नजरों से देखा जा रहा है. भारत भी उनमें से एक है और तालिबान को लेकर सबसे बड़ी परेशानी भारत के लिए है. भारत के लिए मुसीबत सिर्फ निवेश और वहां भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी आशंका है पाकिस्तान और तालिबान की नजदीकी को लेकर. भारत सालों से आतंक झेलता आया है, ये आतंकी पाकिस्तान के पाले-पोसे रहे हैं और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में इन्हें ट्रेनिंग दी जाती रही है, लेकिन अब पाकिस्तान को तालिबान का खुलेआम समर्थन मिल रहा है इससे भारत के लिए बड़ा खतरा मंडराने लगा है.


तालिबान के 85 हजार आतंकियों की फौज के पास अब अमेरिकी अत्याधुनिक हथियार हैं, अमेरिकी फौज की छोड़ी गई बख्तरबंद गाड़ियां हैं जिससे तालिबान दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी संगठन बन चुका है. भारत विरोधी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान बड़े आराम से अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कर सकता है.


अमेरिका के साथ समझौते में दिलाया था भरोसा


दोहा में तालिबान और अमेरिका के बीच हुए समझौते में तालिबान ने भरोसा दिलाया है कि उसकी जमीन पर आतंकी गतिविधियों को इजाजत नहीं दी जाएगी, लेकिन इस समझौते से भारत को फायदा होगा या नहीं इसकी कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. 1999 में  IC-814 हाईजैक को भारत कभी भूल नहीं सकता है. जब तालिबान ने पाकिस्तानी आतंकियों के लिए अपने एयरपोर्ट खोल दिए थे.


पाकिस्तान और तालिबान के नजदीकी ताल्लुकात


पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के भी तालिबान से नजदीकी ताल्लुकात हैं, ISI के कई एजेंट लगातार तालिबान के संपर्क में रहे हैं इसलिए अब अफगानिस्तान की जमीन से ISI को भारत के खिलाफ साजिश करने की खुली छूट मिल सकती है. तालिबान की फंडिंग का बड़ा हिस्सा हक्कानी नेटवर्क से आता है, हक्कानी नेटवर्क को लश्कर-ए-तैयबा का पूरा समर्थन है इसलिए तालिबान के रहते हुए इनसे निपटना भी भारतीय खुफिया एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है.


भारत और अफगान के रिश्ते


भारत और अफगानिस्तान के बीच सांस्कृतिक तौर पर प्राचीन रिश्ते रहे हैं, इसे बनाए रखने के लिए ही भारत ने अफगानिस्तान में बड़ा निवेश किया था, लेकिन तालिबान की वजह से इस रिश्ते को बड़ा झटका लगा है. हलांकि अफगानिस्तान में बदलते हालात को देखते हुए है भारत ने कूटनीतिक तौर पर तालिबान से बातचीत की थी, लेकिन इसमें देर हो चुकी है क्योंकि भारत को फैसला लेना है कि वो तालिबान पर क्या रूख अपनाता है.


अफगानिस्तान में लड़ाई थमने का नाम नहीं


अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा किया है, लेकिन वहां लड़ाई थमने वाली नहीं है. क्योंकि तालिबानी विरोधी कई गुट अभी भी सक्रिय हैं, इसकी ताजा मिसाल है अफगानिस्तान के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह, जिन्होंने दावा किया है कि अशरफ गनी की गैरमौजूदगी में वे अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं, सालेह इस वक्त अफगानिस्तान में ही मौजूद हैं उनके संपर्क में अफगान नेता हैं जो तालिबान के नियंत्रण के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं.


भारत के लिए जरूरत है तालिबान से बात करना


‘शेर-ए-पंजशीर’ के नाम से मशहूर अफगान नेता अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने भी तालिबान के खिलाफ जंग का ऐलान किया है और अमरुल्ला सालेह भी मसूद के साथ हैं. ऐसी हालत में तालिबान विरोधी सक्रिय होते हैं तो पाकिस्तान दावा कर सकता है कि तालिबान विरोधी साजिश में भारत का हाथ है. पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि भारत के साथ अफगानिस्तान के रिश्ते सुधरें,  इसलिए भारत के लिए तालिबान के साथ सीधी बात करना हालात की जरुरत बन गई है.


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