Chandigarh News/मनोज जोशी: आज गौरीशंकर सेवादल गौशाला सेक्टर 45 चंडीगढ़ में मां तुलसी एवं भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में विवाह बड़े धूमधाम से कराया गया. समारोह में हजारों की भक्तजन समस्त परिवार सहित इस भगवान नारायण एवं मां तुलसी की शादी में साक्षात सभी लोग विराजमान रहे. सभी भक्त जनों ने विशाल भंडारा का प्रसाद ग्रहण किया. 


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इस शुभ अवसर पर गौरीशंकर सेवादल के सदस्य सुमित शर्मा जी, विनोद कुमार जी, मनोहर लाल सैनी, भुवनेश महाजन, सुरेंद्र गोपाल इत्यादि ने बताया कि गौरीशंकर सेवा दल में सुबह से ही शुभ लग्न अनुसार विवाह का भव्य रूप प्रातः स्वागत किया गया और भजन कीर्तन इत्यादि में मंत्रमुग्ध होकर सभी ने भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया. 


तुलसी विवाह की कहानी 
शास्त्रों एवं पुराणों में कहा गया है कि एक बार दैत्य जालंधर ने देवताओं को बार-बार युद्ध के लिए अग्रेषित किया और वहां भगवान विष्णु को भी युद्ध के लिए ललकार करने लगा. जब भगवान विष्णु स्वयं दैत्य राज के साथ युद्ध करने लगे तो काफी संघर्ष से भगवान के सभी प्रयासों के बाद भी जालंधर परास्त नहीं हुआ. अपनी इस विफलता को देखते हुए श्री हरि ने विचार किया की यह दैत्य जालंधर आखिर मर क्यों नहीं रहा है. तब पता चला की दैत्य राज की रूपवती पत्नी वृंदा का ही जप तप एवं एकादशी के व्रत के फल से ही जालंधर के मृत्यु का अवरोध बन रहा है. 


जब तक उनके जप-तप के बल की छाया होगा तब तक राक्षस को परास्त नहीं किया जा सकता. इस कारण भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया और  वृद्धा की तपस्या को भंग कर दिया. भगवान विष्णु ने इस कार्य में छल कपट दोनों का प्रयोग किया. इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर. युद्ध में विजय प्राप्त की पर जब वृद्धा को भगवान के छल पूर्वक तप को समाप्त करने के बारे में पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुई और श्री हरि को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओगे. तब भगवान विष्णु ने यह श्राप को स्वीकार किया और श्री हरि के मन में वृंदा के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया. 


तब उन्होंने वृंदा से कहा कि हे वृंदा तुम वृक्ष बन कर मुझे अवश्य प्राप्त करोगी. वृंदा तुलसी रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई व भगवान शालिग्राम बने और इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी-शालिग्राम उत्पन हुए. देवउठनी से 6 महीने तक देवताओं का दिन प्रारंभ हो जाता है तथा तुलसी का भगवान श्री हरि विष्णु शालिग्राम स्वरूप में प्रतीकात्मक विभव जो भी करता है उसे बैकुंठ को समस्त सुख ऐश्वर्य एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है और जो भक्त जन श्री नारायण के इस विवाह में सम्मिलित होते हैं वह अवश्य अवश्यमेघ कोटि फल की प्राप्ति करते है.