अद्भुत हिमाचल की सैर: हमारी खास सीरिज अद्भुत हिमाचल की सैर में हम आपको पत्थर बरसाने वाले मेले के बारे में बताएंगे. दीपावली के अगले दिन ये पत्थर मेला मनाया जाता हैं. 


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देवभूमि हिमाचल का पत्थर मेला 
शिमला से 26 किलोमीटर दूर धामी में कई शताब्दियों से यह अनोखी परंपरा चली आ रही है. देवभूमि हिमाचल का पत्थर मेला कई मायने में खास है. इस मेले की खासियत यह है कि यहां दो समुदाय के लोग एक दूसरे पर पत्थर मारते हैं. पत्थर की चोट से जैसे ही किसी व्यक्ति का खून निकलता है, मेला वहीं पर संपन्न मान लिया जाता है.


 



सदियों से चली आ रही परंपरा 
मान्यता है कि धामी रियासत में मां भीमा काली के मंदिर में हर वर्ष इसी दिन मानव बलि दी जाती थी. लेकिन, धामी रियासत के राजा राणा की रानी इस मानव बलि के खिलाफ थी. बलि प्रथा पर रोक लगाने के लिए रानी मंदिर के साथ लगते चबूतरे यानि चौरे पर सती हो गई थी. जिसके बाद इस परंपरा ने जन्म लिया. 


इस खेल को खेलने के लिए लोग दो समूहों में बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर पत्थर से वार करते हैं. परंपरा के अनुसार जब किसी भी व्यक्ति का सिर लहूलुहान हो जाता हैं. तब खेल खत्म हो जाता है. पत्थर लगने के बाद खून निकलने पर लोग खुशी से झूमने लगते हैं और खून को मां भीमा काली के मंदिर में चढ़ाया जाता है.


नरसिंह मंदिर में करते हैं पूजा 
मेले वाले दिन सबसे पहले राज परिवार के सदस्य व राज पुरोहित भगवान श्री नरसिंह मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. उसके बाद ढोल-नगाड़ों के साथ हजारों लोग चौरा पर पहुंचते हैं जहां ये खेल खेला जाता हैं. मेले के दौरान स्थानीय प्रशासन की तरफ से एंबुलेंस व मेडिकल टीम का बंदोबस्त भी होता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE MEDIA इसकी पुष्टि नहीं करता है)