समीक्षा कुमारी/शिमला: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में विचाराधीन होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को लेकर प्रदेश सरकार बनाम ओबेरॉय ग्रुप मामले में आज फिर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई होनी है. कोर्ट में आज वारंट ऑफ पोजेशन पर बहस होगी. सरकार ने इस मामले में एप्लिकेशन देकर होटल पर कब्जा मांगा है. 


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बता दें, सरकार और ओबेरॉय ग्रुप के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था, लेकिन पिछले 25-30 वर्षों से हिमाचल सरकार को रेवेन्यू-इक्विटी नहीं दी गई. इससे सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ. सरकार का कहना है कि ओबेरॉय ग्रुप में लगभग 120 करोड़ रुपये हिमाचल को देने थे, लेकिन नहीं दिए गए. ऐसे में सरकार को काफी नुकसान हुआ. 


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बता दें, वाइल्ड फ्लावर पहले HPTDC के पास ही था, लेकिन साल 1993 में आग लगने से यह जलकर राख हो गया. इसके बाद यहां नया होटल बनाने के लिए राज्य सरकार ने ओबेरॉय ग्रुप की ईस्ट इंडिया होटल कंपनी के साथ करार किया, जिसके अनुसार कंपनी को चार के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था, लेकिन ऐसा न करने पर कंपनी को 2 करोड़ रुपये जुर्माना के रूप में हर साल राज्य सरकार को अदा करने थे. 


 


करार के 6 साल बीत जाने के बाद भी कंपनी पूरी तरह होटल को तैयार नहीं कर पाई. इसके बाद साल 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया और सरकार के इस फैसले को कंपनी ने लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दे दी. हालांकि बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था. ऐसे में सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी. 


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इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने इस मामले को निपटाने के लिए मध्यस्थ के पास भेजा दिया. यहां मध्यस्थ ने सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कंपनी के साथ हुए करार को रद्द कर दिया और सरकार को संपत्ति वापस लेने का हकदार ठहराया. यह विवाद अभी खत्म नहीं हुआ. मध्यस्थ के इस फैसले के बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने बैंच के समक्ष चुनौती दे दी और तब से लेकर यह मामला लगातार तूल पकड़े हुए है. 


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