विपन शर्मा/धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर विश्व विख्यात है. यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. मां का यह धाम नगरकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है. यहां मां भगवान शिव के रूप में भैरव नाथ के साथ विराजमान हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस जगह माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था. इस मंदिर का वर्णन दुर्गा स्तुति में किया गया है. मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है. इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा देखने लायक होती है. 


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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में स्थित नगरकोट धाम माता ब्रजेश्वरी देवी का सर्वश्रेष्ठ स्थान है. मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का बायां वक्ष गिरा था. जनसाधारण में ये कांगड़े वाली देवी के नाम से विख्यात हैं. ब्रजेश्वरी देवी मंदिर का पांडवों ने उद्धार किया था. बाद में सुशर्मा नाम के राजा द्वारा इसे फिर से स्थापित किया गया था. महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं इस मंदिर में आकर माता रानी को स्वर्ण छत्र अर्पित किया था.


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साल 1905 में आए भूकंप में इस मंदिर का अधिकांश हिस्सा नष्ट हो गया था. तब पुराने ढांचे के आधार पर ही मंदिर को नया रूप दिया गया. कांगड़ा नगर चौक से 3 किलोमीटर की दूरी पर पर्वतीय खंड के साथ में कांगड़ा दुर्ग क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में तीन शिखर हैं. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने विवरण में नगरकोट की ब्रजेश्वरी देवी का वर्णन किया है. यह मंदिर न सिर्फ अपनी विशालता, बल्कि उत्कृष्ट शिल्प सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध रहा है. 


मंदिर के प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही मंदिर प्रांगण के ठीक सामने दीवार पर ताखों में ध्यानू भक्त का स्थान है, जिसके दोनों तरफ शेर बने हुए हैं. मंदिर के पीछे सूर्य देवता, भैरव व वटवृक्ष हैं, वहीं दूसरी तरफ मां तारा देवी, शीतला माता मंदिर और दशविद्या भवन स्थित हैं. मंदिर के पुजारी रामेश्वर नाथ ने जानकारी देते हुए बताया कि यहां के भैरव किसी भी प्रकार के अनिष्ट की सूचना पहले से ही दे देते हैं. उन्होंने बताया कि जब इस क्षेत्र में कुछ भी अनर्थ होने वाला होता है तो भैरव की आंखों से आंसू गिरते प्रतीत होते हैं. 


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यहां का मकर संक्रांति महोत्सव बहुत खास होता है, जो एक सप्ताह तक चलता है. मान्यता है कि सतयुग में राक्षसों का वध करके ब्रजेश्वरी देवी ने महायुद्ध में विजय प्राप्त की थी, तभी सभी देवी-देवताओं ने उनकी स्तुति की और देवी के शरीर पर जहां-जहां चोट व घाव बने थे, उस पर घी का लेपन किया.


उनके शरीर पर मक्खन लगाकर उन्हें शीतलता प्रदान की. वह मकर संक्रांति का पुण्य दिन था, तभी से यह परंपरा मानते हुए हर वर्ष यहां मकर संक्रांति के दिन माता के ऊपर पांच मन देसी घी का लेपन कर मक्खन, मेवों, मौसमी फलों से माता की पूजा की जाती है. रंग-बिरंगे फूलों व लताओं से देवी का शृंगार किया जाता है. यह क्रम एक सप्ताह तक चलता है. इस महोत्सव को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं.


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