विपन कुमार/धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला में हिमालय और आपदा प्रबंधन में भू-गतिकी पर राष्ट्रीय कार्यशाला सोमवार को शुरू हुई. हिमालय क्षेत्र में भू-गतिकी के महत्वपूर्ण मुद्दों और आपदा प्रबंधन के लिए इसके निहितार्थों पर विचार-विमर्श करने के लिए दुनियाभर के 60 से अधिक विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और शोधकर्ता इसमें हिस्सा लेने पहुंचे हैं. कार्यशाला का आयोजन स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायर्नमेंटल साइंसेज, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश और जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की जा रही है. 


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कार्यशाला का उद्घाटन कुलपति, प्रोफेसर एसपी बंसल ने किया. इस अवसर पर जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रोफेसर एचके गुप्ता और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के निदेशक डीसी राणा, आईएएस, प्रमुख रूप से उपस्थित रहे. जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका के अध्यक्ष प्रोफेसर क्रिस्टोफर चक एम बेली स्वास्थ्य कारणों से नहीं आ सके, हालांकि प्रोफेसर क्रिस्टोफर विमान में सवार हो गए थे, लेकिन उन्हें हेल्थ के चलते फ्लाइट से उतरना पड़ा. केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश धर्मशाला के वीसी प्रोफेसर सत प्रकाश बंसल ने कहा कि कार्यशाला में 60 के करीब डेलीगेटस आए हैं. यहां आपदा पर मंथन होगा और एक व्हाइट पेपर तैयार किया जाएगा जो हिमाचल और केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. 


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हिमाचल प्रदेश में इस बार जिस तरह की आपदा देखी गई है, उसे लेकर पहले यह सोचा गया कि फोरलेन बन रहे हैं या हाईवे हैं, वहां प्रकृति से छेड़छाड़ हुई है, जिसकी वजह से यह आपदा आई है, लेकिन जिस तरह से बार-बार भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं हुई हैं, उसे लेकर प्रदेश सरकार भी उचित कदम उठा रही है. ऐसी आपदाओं को कम करने के लिए क्या प्रयास किए जाएं. प्राकृतिक आपदाओं को लेकर पूर्व सूचना की दिशा में कार्य करके उन्हें कम किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर मैन मेड आपदा पर हम सौ फीसदी काबू पा सकते हैं.


राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के निदेशक डीसी राणा ने कहा कि कार्यशाला का मेन फोकस भूकंप और भूस्खलन है. हिमाचल भूकंप और भूस्खलन की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील है. वैज्ञानिक और शोधार्थी सहित पॉलिसी मेकर्स के बीच में डायलॉग रहना चाहिए, जिससे जो भी रिसर्च हैं जो जानकारियां वैज्ञानिकों के पास हैं, वह फील्ड तक पहुंचे और उन्हें लागू करके आपदा के प्रभाव को कम किया जा सके.


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जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष  प्रोफेसर एचके गुप्ता ने कहा कि 21वीं शताब्दी के अभी केवल 22 वर्ष पूरे हुए हैं. हम 23वें वर्ष में हैं. इन 22 वर्षों में भूकंप और भूकंप जनित सुनामी से जितनी जानें गई हैं, 20वीं सदी में उतनी क्षति नहीं हुई. यह सब टेक्रोनिकल और साइंटिफिक डिवेलपमेंट की वजह से है जो भी रिसर्च हो रही है, उसे हम जनता तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं.


उन्होंने कहा कि हमें भूकंपों के संग रहना है, कैसे रहना है, हमें यह सीखना होगा. कुछ ऐसे भी उपाय हैं, जिनके द्वारा यह संभव है. ऐसे भवन बनाए जाने चाहिए, जो कि भूकंपरोधी हैं. भूकंप के समय फायर स्टेशन, स्कूल की क्षति नहीं होनी चाहिए. यह संभव है. इन सब पर तीन दिन में चर्चा की जाएगी. उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि 3 दिन के मंथन से एक अच्छा पत्र बनेगा और इस पर रिसर्च करके हम हिमाचल को भूस्खलन और भूकंप से बचा सकते हैं. 


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