ज्ञान प्रकाश/पांवटा साहिब: सिरमौर जिले का खतवाड़ गांव धीरे-धीरे गहरी खाई की तरफ खिसकता जा रहा है. गांव के दो तरफ महज 200 और 100 मीटर की दूरी पर गहरी खाइयां बन गई हैं. भारी बरसात की वजह से खाइयों का मलवा नाले की तरफ और गांव खाईयों की तरफ खिसक रहा है, जिसकी वजह से गांव के लगभग 25 घर टूटने की कगार पर पहुंच गए हैं जबकि दर्जन भर मकान और सैकड़ों बीघा उपजाऊ जमीन पहले ही खाई में समा चुकी है. 


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खतवाड़ा गांव में यह स्थिति पिछले 30 सालों से बनी हुई है, लेकिन सरकार ने अभी तक गांव को बचाने और ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. एक गांव धीरे-धीरे गहरी खाई की तरफ खिसकता जा रहा है और घर टूटते जा रहे हैं. कुछ मकान पहले जमीदोज हो चुके हैं, कुछ खतरे की जद में आ गए हैं. भारी बरसात के समय में यहां ग्रामीणों को रातों को नींद नहीं आ पाती. मकान टूट कर गहरी खाई में समाने का यह सिलसिला पिछले कई सालों से चल रहा है. 


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सिरमौर जिले के बनोर पंचायत के खतवाड़ गांव में हर घर में दरारें आ गई हैं. यह सभी घर लोगों के रहने के लिए असुरक्षित हो गए हैं. घर टूटने का कारण गांव के दोनो तरफ बन रही गहरी खाईयां हैं. टूटते-टूटते यह खाई या घरों से महज 100 से 200 मीटर की दूरी तक आ गई हैं. ग्रामीणों की समस्या यह है कि उनके पास ना तो रहने को सुरक्षित मकान हैं और ना ही गुजर-बसर करने के लिए जमीने हैं. मजबूरी में यह ग्रामीण दरारों से भरे, टूटने को तैयार इन्हीं घरों में रहने को मजबूर हैं.


खतवाड़ गांव में यह समस्या नई नहीं है. पिछले 3 दशकों से यहां पर यह सिलसिला लगातार जारी है. कई परिवार बर्बाद हो गए हैं और यहां से पलायन कर चुके हैं. ग्रामीणों के मुताबिक यह मानव निर्मित समस्या है. ग्रामीणों का कहना है यहां से कुछ ही दूरी पर कुछ चूना पत्थर खदानें चल रही हैं. इन खदानों का मलबा साल भर बेतरतीब ढंग से नालों में फेंक दिया जाता है.


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जब बरसात आती है तो यह मलबा पानी के साथ बह कर गांव के नीचे भूमि कटाव करता है, जिसकी वजह से हर साल यहां बरसात में ढलानों से मलबा खिसकता है. यह मलबा बड़ी खाई का रूप लेता जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि स्थानीय प्रशासन से लेकर केंद्रीय मंत्रालयों तक हर जगह मामले की शिकायत की गई है.


ग्रामीण उनके पुनर्वास की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक ना तो चूना पत्थर खदानों पर अंकुश लगा है और ना ही उनके पुनर्वास और नुकसान की भरपाई हो पाई है. ऐसे में ग्रामीणों की समस्या यह है कि आखिर जाएं तो जाएं कहां.


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