Budhi Diwali festival: पूरे देश में दीपावली का त्योहार 24 अक्टूबर को धूमधाम से मनाया जा चुका है, लेकिन हिमाचल के सिरमौर में हाटी समुदाय के लोग दिवाली के एक महीने बाद दिवाली मनाते हैं. बता दें, 23 नवंबर से सिरमौर में एक सफ्ताह के लिए बूढ़ी दिवाली मनाई जाएगी. हालांकि, इस त्योहार की शुरुआत आज यानी 24 नवंबर से शुरू हो रही है. 


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बूढ़ी दिवाली के चलते लोग एक सफ्ताह तक खाने-पीने और नाच गाने में व्यस्त रहेंगे. गांव-गांव में पारंपरिक लोक नृत्य होंगे जिसकी शुरुआत मशाल जलाकर होती है. बता दें, सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं को बखूबी से निभा रहा है. यहां 154 से अधिक पंचायतों में बूढ़ी दिवाली मनाने की अनूठी परंपरा है. 


दीपावली से एक महीने बाद यहां अमावस्या की रात को बूढ़ी दिवाली को पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. इस त्योहार पर परोसे जाने वाले खास व्यंजन मुड़ा और शाकुली है. पर्व के लिए लोग अपने घरो की लिपाई-पुताई कराते हैं. बता दें, बूढ़ी दिवाली का पारंपरिक मुड़ा है जो कि गेंहू को उबालकर सूखाने के बाद कड़ाई में भूनकर तैयार किया जाता है. इस मूड़े के साथ बताशे, अखरोट, और मुरमुरे आदि मिलाए जाते हैं. 


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जानकारी के मुताबिक, बूढ़ी दिवाली के दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में घास और लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह पर एकत्रित होते हैं. अंधेरे में ही माला नृत्य गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है. जिसके बाद कुछ घंटों तक टीले व धार पर लोक नृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग  वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते हैं. 


मान्यता है कि दीवाली के संबंध में क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि दीपावली के बाद सर्दी का मौसम शुरू हो जाता है. किसानों को अपनी फसल और पशुओं का चारा एकत्रित करते हैं. इसलिए एक महीने में सारा काम करके लोग आराम से बूढ़ी दिवाली मनाते हैं. 


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