कृषि विभाग की इस परियोजना और तकनीक से जुड़ा ऊना का ये किसान, आज कमा रहा 5 से 6 लाख रुपये
Una News: ऊना में लोअर बढे़ड़ा के एक किसान ने सीआरपीएफ से सेवानिवृत होने के बाद खेतीबाड़ी व पशुपालन को अपना रोजगार का जरिया बनाया. आज वह प्रति वर्ष औसतन लगभग 5 से 6 लाख रुपये कमा रहे हैं.
राकेश मल्ही/ऊना: हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में लोअर बढेड़ा गांव निवासी 50 वर्षीय रघुवीर सिंह के लिए कृषि व पशुपालन आर्थिकी का अहम जरिया बना है. अर्धसैन्य बल सीआरपीएफ में लगभग 22 वर्षों तक सेवा करने के बाद रघुवीर सिंह ने अपनी पुश्तैनी जमीन को संभाला और कृषि के साथ-साथ पशुपालन को भी आर्थिकी का आधार बनाया है.
साल 2016 में सीआरपीएफ से सेवानिवृत होने के बाद पिछले 6 से 7 वर्षों के दौरान वे समय-समय पर सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कृषि व पशुपालन विकास योजनाओं के साथ जुड़ते रहे और आज वह एक प्रगतिशील किसान होने की दिशा में आगे बढ़े हैं. रघुवीर सिंह ने बताया कि सबसे पहले वे कृषि विभाग की जाइका परियोजना से जुड़े और फिर कृषि की नई तकनीकों का प्रशिक्षण प्राप्त किया. इसके साथ ही मिश्रित खेती की दिशा में भी कदम बढ़ाया.
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रघुवीर सिंह ने बताया कि वे वर्तमान में मिश्रित खेती कर रहे हैं, जिसमें मक्की, गेहूं, आलू, गन्ना के साथ-साथ विभिन्न तरह की सब्जियों का भी उत्पादन शामिल है. उन्होंने बताया कि अन्य किसानों के साथ मक्की की अग्रिम तैयार होने वाली फसल को बीजा है. अग्रिम मक्की का बीजारोपण तीन चरणों में किया है, जिसमें पहला चरण मार्च, दूसरा अप्रैल और तीसरा मई में किया.
रघुवीर सिंह ने बताया कि पहले चरण की कटाई जून माह में की जा रही है जबकि दूसरे चरण की कटाई जुलाई और तीसरा चरण अगस्त माह में पूरा होगा. उनका कहना है कि समय से पहले मक्की की फसल तैयार होने से जहां बाजार में अच्छा दाम मिल रहा है वहीं उत्पादन क्षमता में भी वद्धि हुई है. रघुवीर सिंह ने कहा कि खेतीबाड़ी से उन्हें प्रति वर्ष औसतन लगभग 5 से 6 लाख रुपये की आय प्राप्त हो रही है.
उन्होंने बताया कि मिश्रित खेती के चलते उन्हें साल भर विभिन्न फसलों से आय प्राप्त होती रहती है. कृषि विभाग के माध्यम से उन्हें उन्नत खेती के बारे में प्रशिक्षण भी मिला है. इसके अलावा जाइका परियोजना के माध्यम से भी मिश्रित खेती के बारे आवश्यक प्रशिक्षण हासिल हुआ है. साथ ही विभागीय अधिकारियों का भी समय-समय पर मार्गदर्शन मिलता रहता है.
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रघुवीर सिंह ने बताया कि वे कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी कर रहे हैं. उन्होंने गाय और भैंस भी पाली हुई हैं, जिनसे प्राप्त होने वाले दुग्ध उत्पादों से भी उन्हें औसतन प्रतिवर्ष 2 से ढ़ाई लाख रुपये की आमदन हो रही है. इसके अलावा पशुओं के गोबर से वे प्राकृतिक खाद भी तैयार कर रहे हैं. रासायनिक खाद की बजाय प्राकृतिक खाद फसलों के लिए अच्छी है. वहीं इससे तैयार फसलें सेहतमंद भी होती हैं.
इसके साथ ही प्राकृतिक खाद के चलते फसलों की लागत भी घटती है. उन्होंने कहा कि अगर सच्ची लगन और कड़ी मेहनत के साथ कृषि व्यवसाय को भी अपनाया जाए तो इससे न केवल बेहतर आमदन अर्जित की जा सकती है, बल्कि अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का अहम आधार है. कृषि की नई और आधुनिक तकनीकों को अपनाते हुए इससे जुडे़ रहना चाहिए. उन्होंने जिला व प्रदेश के शिक्षित युवाओं से भी कृषि की आधुनिक तकनीकों को अपनाते हुए इससे जुड़ने का आहवान किया.
वहीं उपनिदेशक कृषि ऊना कुलभूषण धीमान ने बताया कि जिला ऊना में मक्की की अग्रिम फसल के प्रति रूझान बढ़ रहा है. विभाग भी ऐसे किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर उन्हें तकनीकी सहयोग प्रदान कर रहा है. इसके साथ ही बताया कि अग्रिम मक्की फसल के किसानों को होशियारपुर मंडी में विक्रय करके अच्छे दाम प्राप्त हो रहे हैं. ऊना के लोअर बढेड़ा निवासी रघुवीर सिंह मक्की की अग्रिम फसल से अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं. इसके अलावा वह पिछले काफी समय से जापान वित्त पोषित जाइका परियोजना से भी जुड़े रहे हैं. मिश्रित खेती अपनाकर आय के अतिरिक्त स्त्रोत सृजित कर रहे हैं.
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