समीक्षा कुमार/शिमला: हिमाचल के शिमला की पहचान रिज मैदान स्थित क्राइस्ट चर्च में करोना के 2 साल बाद क्रिसमस के मौके पर रौनक दिखेगी. इसकी शुरुआत 150 साल पुरानी कॉल बेल बजाकर होगी. क्राइस्ट चर्च उतर भारत का दूसरा सबसे पुराना चर्च है. 1857 में इसे नियो गोथिक शैली में बनाया गया था.


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कोरोना काल के बाद यह पहला मौका है जब परंपरा अनुसार आराधना होगी. 25 दिसंबर को क्रिसमस के मौके पर यहां बड़ी संख्या में लोग आते है. क्रिएस्ट चर्च को जंहा शिमला का माइल स्टोन माना जाता है, तो वहीं यहां प्रार्थना के लिए 150 साल पहले इंग्लैंड से लाई कॉल बेल का भी अपना ही महत्व है. इसे प्रार्थना से पहले बजाया जाता है. 


यह बेल कोई साधरण घंटी नहीं बल्कि मैटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से हैं. इन पाइप पर संगीत के सात सुर की ध्वनि आती है. इन पाइप पर हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है. यह रस्सी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से खींचकर बजाई जाती है.  हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले यह बेल बजाई जाती है. 


जानकारी के मुताबिक,  ईसाइ समुदाय के लोगों को प्रार्थना शुरू होने वाली है इसकी सूचना देने के लिए इसे बजाया जाता है. ब्रटिश काल के समय अंग्रेजों के आवास शहर में अलग अलग स्थानों पर होते थे.  बेल के माध्यम से सूचित किया जाता था कि प्रार्थना शुरू होने वाली है.  उस समय इसकी आवाज तारादेवी तक सुनाई देती थी. 


क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जाता है. चर्च के इंचार्ज सोहन लाल ने कहा कि इसे मरम्मत किया जा रहा है हर रविवार को प्रार्थना से पांच मिनट पहले इसे बजाया जाता है.  उन्होंने बताया कि 9 सितंबर 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी थी.  1857 में इसका काम पूरा हो गया. स्थापना के 25 साल बाद इंग्लैंड से इस बेल को शिमला लाया गया था.  1982 में यह बेल खराब हो गई थी.  जिसे 40 साल बाद 2019 में दोबारा ठीक करवाया गया. 


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