धर्मेंद्र सिंह/खन्ना: विजयदशमी पर पूरे भारत में रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाद के पुतले को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर विजयदशमी के पावन पर्व पर पंजाब के जिला लुधियाना के शहर पायल में चार वेदों के ज्ञाता रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि उसकी विधिवत पूजा की जाती है और यह पूजा पूरा दिन चलती रहती है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जानकारों की मानें, तो यह प्रथा 1835 से चली आ रही है, जिसे दूबे बिरादरी के लोग निभाते आ रहे हैं. इस बिरादरी के लोग देश-विदेश से यहां आकर रामलीला और दशहरा मेला का आयोजन करते हैं और रावण की विधिवत पूजा करते है. इसके साथ ही यहां बने 177 वर्ष पुराने मंदिर में भगवान श्रीराम चंद्र, सीता माता, लक्ष्मण और हनुमान की पूजा की भी जाती है. 


ये भी पढे़ं- NIT Hamirpur में छात्र की संदिग्ध मौत मामले में पुलिस ने 3 लोगों को किया गिरफ्तार


लुधियाना के पायल में रावण की 25 फीट की विशाल प्रतिमा स्थापित है. लोग विजयदशमी के दिन यहां आकर रावण की पूजा करते हैं. रावण भले ही बुराई का प्रतीक माना जाता हो और विजयदशमी पर उसके पुतले जलाए जाते हों, लेकिन यहां विजयदशमी के दिन भगवान श्रीराम के साथ रावण की भी पूजा की जाती है. 


लुधियाना के पायल में 1835 से दुबे वंशज की ओर से विजय दशमी को रावण की पूजा की जाती है. विजय दशमी से पहले दुबे वंशजो की तरफ से यहां विधिवत तरीके से रामलीला भी की जाती है. इस संबंध में दुबे परिवार के अखिल प्रकाश दुबे और विनोद दुबे ने बताया कि इस मंदिर को 1835 में उनके पूर्वजों ने बनवाया था तभी से ही उनके परिवारिक सदस्य पंजाब के अलग-अलग शहरों और विदेश से यहां आकर रामलीला और दशहरा मेला का आयोजन करते हैं.


ये भी पढे़ं- Himachal Pradesh में नगरोटा सूरियां के पौंग क्षेत्र को बनाया जाएगा खूबसूरत पर्यटन


दशहरा पर्व पर देश में रावण दहन होगा और यहां रावण की पूजा होगी. यहां रावण की प्रतिमा को शराब चढ़ाई जाएगी और बकरे की सांकेतिक बलि देकर उसके खून से रावण का तिलक किया जाएगा. मान्यताओं के अनुसार, जिस व्यक्ति को औलाद नहीं होती है अगर वह सच्चे मन से यहां माथा टेकता है तो उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है.   


WATCH LIVE TV