Tulsi Poojan: मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए क्यों की जाती है तुलसी की पूजा, जानें कैसे हुई इस पौधे की उत्पत्ति?
Tulsi Poojan: सनातन धर्म में तुलसी जी की पूजा का विशेष महत्व माना गया है. ज्यादातर लोग सुबह तुलसी जी को जल चढ़ाकर और शाम के वक्त उनके समक्ष घी का दिया जलाकर उनकी पूजा करते हैं, लेकिन आप में से ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्हें यह मालूम है कि तुलसी नामक इस पौधे के उत्पत्ति कैसे हुई.
नई दिल्ली: यह तो आप सभी को मालूम है कि पेड़-पौधों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है. पेड़-पौधे ही हैं जिनकी वजह से हम सांस ले पाते हैं. इतना ही नहीं बहुत से पेड़-पौधे ऐसे भी हैं जिनमें देवी-देवताओं का वास माना है और उनकी पूजा की जाती है. इन्हीं में से एक है तुलसी का पौधा, जिसे तुलसी जी और तुलसी मां भी कहा जाता है. सनातन धर्म में तुलसी की पूजा का खास महत्व माना जाता है. लोग हर दिन सुबह शाम तुलसी की पूजा-आराधना करते है.
भगवान विष्णु की अर्धांगनी है तुलसी जी
मान्यता है कि भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए हर दिन तुलसी को जल चढ़ाना चाहिए और शाम के वक्त दीपक जलाकर आरती करनी चाहिए. इससे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की हमेशा कृपा बनी रहती है. इसके साथ ही घर में सुख शांति बनी रहती है. धार्मिक ग्रंथों में तुलसी जी को भगवान विष्णु जी की अर्धांगनी बताया गया है, जो मां लक्ष्मी का स्वरूप हैं.
लड़की का ही रूप थी तुलसी
पौराणिक ग्रंथों की मानें तो तुलसी जी का जन्म पहले एक लड़की के रूप में हुआ था, जिसका नाम वृंदा था. उस समय उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था. वे बचपन से ही भगवान विष्णु की परम भक्त थी. जब वृंदा बड़ी हुई तो कुल की परंपरा के अनुसार उसका विवाह जलंधर नाम के दानव से करा दिया गया जो समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा ने लिया था संकल्प
एक बार दानवों और देवताओं के बीच युद्ध हुआ. ऐसे में जब वृंदा का पति जलंधर युद्ध में जाने लगा तो वृंदा ने कहा कि जब तक आप युद्ध से सही सलामत वापस नहीं आ जाएंगे तब तक मैं आपकी रक्षा के लिए पूजा करुंगी. इसके बाद जलंधर युद्ध में चला गया और वृंदा पूजा करती रही. वृंदा की पूजा शक्ति से कोई भी देवता जलंधर को हरा नहीं सका, जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंच गए और उन्होंने भगवान को इस सब के बारे में बताया. देवातओं की बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि वृंदा मेरी परम भक्त है मुझे उसके साथ गलत नहीं कर सकता. ये सुनकर देवता विष्णु जी से प्रार्थना करते हुए बोले कि वे कोई दूसरा उपाय बता दें, जिससे उस राक्षस को मारा जा सके.
.ये भी पढे़ं- Rashifal: धनु राशि के जातक ध्यानपूर्वक करें लेन-देन, जानें क्या है आज का राशिफल?
वृंदा का संकल्प टूटते ही हो गई जलंधर की मौत
इसके बाद भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के सामने पहुंच गए, जैसे ही वृंदा ने भगवान को अपने पति के रूप में देखा वह तुरंत पूजा से उठ गई और फिर क्या था उसका संकल्प टूट गया. इस बीच देवताओं ने युद्ध में जलंधर को मारकर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जो महल में वृंदा के सामने आकर गिरा. जब वृंदा ने जलंधर का सिर कटा देखा तो वह हैरान रह गई और सोचने लगी कि जब ये उसके पति का सिर है तो जो उसके सामने खड़ा है वो कौन है?
ऐसे हुई तुलसी की उत्पत्ति
वृंदा ने सामने खड़े जलंधर रूप धारण किए विष्णु भगवान से पूछा कि आप कौन हैं. वृंदा का सावल सुनकर भगवान अपने विष्णु रूप में आ गए और चुपचाप खड़े रहे, जिसके बाद वृंदा ने गुस्से में आकर भगवान को श्राप दे दिया. वृंदा ने श्राप देते हुए कहा कि आप पत्थर बन जाओ और वृंदा के श्राप से भगवान तुरंत ही पत्थर बन गए. विष्णु जी का ये हाल देख लक्ष्मी जी रोने लगीं. लक्ष्मी जी को रोते देख वृंदा ने अपना श्राप वापस लिया, जिससे भगवान सामान्य स्थिति में आ गए और वृंदा जलंधर का सिर लेकर सति (पति की चिता के साथ खुद जल जाना) हो गई, जिसके बाद उनकी राख से एक पौधा निकला.
क्यों की जाती है शालीग्राम और तुलसी की एक साथ पूजा
इस पौधे को देख भगवान विष्णु ने कहा कि आज से इस पौधे का नाम 'तुलसी' होगा और मेरा एक पत्थर रूप भी होगा, जिसे 'शालीग्राम' के नाम जाना जाएगा. इस पत्थर और तुलसी दोनों की एक साथ पूजा की जाएगी. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैं बिना तुलसी के अपना भोग स्वीकार नहीं करूंगा. तब से सभी तुलसी जी की पूजा की जाने लगी और कार्तिक मास की देव-उठावनी एकादशी के दिन शालीग्राम जी के साथ तुलसी जी का विवाह कराया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. जी न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता.)