Allama Iqbal Birthday: "खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले  
                                       खुदा बंदे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है"


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यह मशहूर शेर मोहम्मद इक़बाल का है. 20वीं शताबदी के महान शायर अल्लामा इक़बाल की शायरी को आज भी भारत और पाकिस्तान समेत दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पसंद किया जाता है. अल्लामा इक़बाल को देश की आजादी में अहम योगदान के लिए जाना जाता है, हालांकि पाकिस्तान बनाने का समर्थन करने के लिए उनकी काफी आलोचना भी होती है. लेकिन इसके बावजूद दुनिया उन्हें एक लेखक, शायर और दार्शनिक के तौर पर जानती और पहचानती है. आज अल्लामा इकबाल का जन्मदिन है, और इस मौक पर उर्दू डे मनाया जाता है. ऐसे में हम आपको उर्दू के इस आला-तरीन शायर सर अल्लमा इकबाल के बारे में तफसील से बताने वाले हैं. तो आइये जानते हैं.


पंजाब में जन्में थे इकबाल


इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1877 में पंजाब के सियालकोट में हुआ था. उस दौरान भारत में अग्रेजों का राज था. रिपोर्ट्स के मुताबिक उनके परिवार ने अपना नसब नामा (वंशावली) कश्मीरी पंडितों (सप्रू वंश के ) से बताई, जिन्होंने 15वीं शताबदी में इस्लाम धर्म अपना लिया था और वह कुलगाम के एक दक्षिण कश्मीरी गांव से ताल्लुक रखते थे. इकबाल के पिता, शेख नूर मुहम्मद पेशे से एक एक दर्जी थे. वह पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन एक मज़हबी शख्स थे. इकबाल की मां इमाम बीबी, एक हाउस वाइफ थीं, जो कश्मीर के साम्ब्रियल से ताल्लुक रखती थीं.


कैसे हुई अल्लामा इक़बाल की पढ़ाई?


अल्लमा इक़बाल जब चार साल के थे तो उन्हें मस्जिद में कुरान पढ़ने के लिए भेज दिया गया. उन्होंने अपने शिक्षक, मदरसे के प्रमुख और सियालकोट के स्कॉच मिशन कॉलेज में अरबी के प्रोफेसर सैयद मीर हसन से अरबी भाषा सीखी, जहां उन्होंने 1893 में मैट्रिक किया. उन्होंने 1895 में आर्ट्स के साथ इंटरमीडिएट पास किया. इसी साल उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी में एडमिशन  लिया, जहां से उन्होंने फिलोसफी. इंग्लिश और अरबी में ग्रेजुएशन की.

अल्लामा इक़बाल ने की चार शादियां


 अल्लामा इक़बाल ने चार शादियां की थीं, उन्होंने पहली शादी 1895 में हुई थी. उनकी बीवी का नाम करीम बीबी था, जिनकी उम्र 18 साल थी. यह शादी लंबे समय तक नहीं चल पाई और उन्होंने 1910-1930 के बीच करीम बीबी को तलाक दे दिया. हालांकि वह उन्हें पूरी उम्र आर्थिक सपोर्ट करते रहे. इसके बाद अल्लमा इकबाल ने दूसरी शादी हकीम नूरुद्दीन नाम की एक महिला से की. इस शादी के बाद उन्होंने दो और शादियां की थीं.


खिलाफत मूवमेंट का समर्थन


अल्लामा इक़बाल खिलाफत आंदोलन में सक्रिय थे, और जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापकों में से थे, जिसे अक्टूबर 1920 में अलीगढ़ में स्थापित किया गया था. उन्हें महात्मा गांधी के जरिए जामिया मिलिया इस्लामिया के पहले कुलपति बनने का प्रस्ताव भी दिया गया था, जिसे उन्होंने नकार दिया था. बता दें खिलाफत आंदोलन ब्रिटिश साम्राजय के खिलाफ मुसलमानों के जरिए शुरू किया गया एक आंदोलन था. इस आंदोलन का मकसद सभी मुसलमानों को एक साथ लाना था और ऑटोमन एंपायर की रक्षा करना था.


इक़बाल ने लड़ा चुनाव


नवंबर 1926 में, दोस्तों और समर्थकों के प्रोत्साहन से, इकबाल ने लाहौर के मुस्लिम जिले से पंजाब विधानसभा की एक सीट के लिए चुनाव लड़ा और अपने प्रतिद्वंद्वी को 3,177 वोटों के अंतर से हराया. जहां अल्लामा इक़बाल 'सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तान हमारा' जैसे तराने दे रहे थे, उधर उनके मन में मुसलमानों के लिए एक अलग देश का ख्याल भी पनप रहा था.


भारत में अल्लामा इक़बाल की आलोचना


भारत में एक धड़ा ऐसा भी है जो  अल्लामा इक़बाल की आलोचना करता है, उन्हें टू नेशन थ्योरी देने वाले अहम लोगों में गिना जाता है. अल्लामा इक़बाल ने पाकिस्तान बनाने की हिमायत की थी. इसके अलावा उनकी भगवान राम को इमाम-ए-हिंद का खिताब देने के लिए भी आलोचना होती है. दक्षिण पंथी समूह इस बात के लिए आलोचना करता है कि भगवान् राम की इकबाल ने एक इमाम से  तुलना की, जबकि इमाम मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने वाला एक मामूली सा कर्मचारी होता है. जिसे हिन्दू भगवान् मानते हैं, इकबाल ने उन्हें महज एक इमाम माना है और वो भी सिर्फ हिन्दुस्तान का..